Book Title: Dwait Samrajya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काज्ञत्वमेतस्यकोवावारयितुंक्षमः // 99 // यदिस्यात्सर्वकर्तासजीवानांस्यादकता॥जीवास्युर्यदिकर्तारोऽन्यथासिद्धस्त्वदीश्वरः // 100 // घटादयःकुलाला-|| सा० दिकर्तृकानेश्वरंप्रति // साकांक्षाअंकुराधास्तुभवन्त्वीश्वरकर्टकाः // 101 // सर्वात्मत्वासर्वकर्तासर्वज्ञःसुशकोमम // त्वयैवाविद्ययास्वस्मिन्जगदारोपितंखलु ॥१०२॥अज्ञानबाधात्तद्वाधस्त्वमीशोभगवांस्ततः॥ माण्डूक्येप्राज्ञमात्मानंप्रकत्येशत्वमुच्यते // 103 ॥अपिदुर्घटमीशखंघटनीयंविचारतः // ईशानन्त्यंभवेदस्मिन्मतेचेत्कथमस्तितव ॥१०४॥संख्यातःपरिमाणादाद्वितीयेत्विष्टमेवनः॥संख्यो|पाधिग्रहग्राह्यानेशानन्त्यायकल्पते॥१०५॥ दशावतारभेदेननविष्णोर्दशतायथा // दशानामपिविष्णुत्वंविष्णोरेकत्वमप्यथ॥१०६ ॥एवंजीवानन्त्यमपिगतंहस्तान्चता||र्किकातत्रतत्रव्यक्तचितातत्तद्रोगोहियुज्यते॥१०७॥नतेनभोगसांकर्यनवाज्ञानस्यसं|| || // 6 // करातेनभुक्तंमयानेतिनवक्तुंशक्यतत्वया॥१०८॥यतस्त्वमेवभोक्तासिसर्वोपाधिषुचै For Private and Personal Use Only

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