Book Title: Dwait Samrajya
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || सा० // 5 // उभयत्रैकसंकल्पोनित्यश्चेदीश्वरेभवेत्॥नित्यत्वंचनमिथ्यात्वविरुद्धंदृष्टमीश्वरे॥७९॥ त्वसंकल्प कल्पितश्चेत्कल्पनाकल्पितानवा ॥आयेऽनवस्थादोषःस्याद्वितीयेनित्यतेशवत् // 80 // यादृगीश्वरसंकल्पस्तादृगेवतवापिहि // यादृक्तवास्तिसंकल्पईखरस्यापितादृशः // 81 // नासदासीदितिश्रुत्याप्रलयेसर्वनास्तिता // श्रूयतेऽतः |परेशस्यनसंकल्पस्तदास्तिहि // 82 // लयेलयस्यसंकल्पइतिचेनलयस्तदा / कुतः सर्जनसंकल्पस्तदानींसंभवेद्वद // 83 // अतःकल्पितसंकल्पोमिथ्यैवभवतीखरे॥ उक्तयुक्त्याकल्पितोऽपिनभवेन्मास्तुकाक्षतिः॥८४॥नेश्वरसाधयामोऽद्यभेदमात्रनिवारकाः॥विषयेस्वप्रतुल्येचसत्यवार्तानयुज्यते॥८५॥ सर्वज्ञसर्वकर्तृत्वेजीवसाधारणेमते॥ अतोनेवरभेदस्तेब्रह्मभेदोऽपिनास्तिते॥८६ // सर्वज्ञत्वव्यापकत्वमल्पज्ञत्वस्यविद्यते॥ नातोविरोधशंकापिकुतोजीवेशयोर्भिदा॥ 87 // सत्यंज्ञानमनन्तेतिब्रह्म लक्षणयोगतः ॥ब्रह्मत्वमास्तांसर्वान्तर्यामितामयिनास्त्यतः॥ ८८॥ईशत्वंदुर्घट // 5 // For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70