Book Title: Dwait Samrajya
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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सा० अ० सारमितिलक्षितेबुद्धेरप्रवेशात्सर्वचिंतांपरिहायतूष्णीमवस्थानवाक्यार्थबोधस्वरूपंफ-|| लंच // ननुअदृष्टमित्यादिविशेषणैरुक्तेपिवृत्तिव्याप्त्यभावेएकात्मप्रत्ययसारमिति // 27 // विशेषणेनावश्यकोवृत्तिव्याप्त्यंगीकारः // अतएवाविद्याबाधोपियुक्तःइतिचेन्न / सूर्यकिरणेषुमृगजलवध्यस्तयाबुद्धयाधिष्ठानआत्मानविषयीकर्तुशक्यते // यथासूयकिरणाःस्वाध्यस्तजलै शीतलीक्रियन्तेभिन्नसत्ताकत्वात् // अतएवप्रतिबिम्बाभासवादौनिराकृतौ // नहिमृगजलेसूर्यप्रतिबिंबआभासोवासंभवति // ननुअध्यस्तस्याप्याकाशनीलिनःप्रतिबिंबदर्शनादिन्नसत्तायामपिबुद्धौवास्तवसतोप्यात्मनःपतिबिंबाभासौसंभवेतामितिचेन // आकाशनीलिम्नःसोपाधिकभ्रमत्वेनाप्रलयमनिवृत्ते र्व्यावहारिकतुल्यत्वेनव्यावहारिकत्वेनैववासमसत्ताकत्वेनप्रतिबिंब अतएवनमृगजले तत्प्रतिबिंबोदृष्टः // ननुवृत्तिव्याप्यनंगीकारेऽविद्याबाधोनुपपन्नइतिचेन // यत्र-॥२७॥ विषयविषयिभावोवास्तवस्स्यात्तत्रविषययाथार्थ्यज्ञानेनाविद्यायायापनंयुक्तंयत्रतुवि For Private and Personal Use Only

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