Book Title: Dwait Samrajya
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ിരിരിരിരിരിരിരിരിരിരിരിരിരിരിരി A 11 : || | 1 PM || ഭാരത് ലാലാലായി // अथाद्वैतसाम्राज्यप्रारंभः॥ ാലാരംഭഭാരഭര്. For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // श्रीगणेशाय नमः // ॐ सर्ववादविदूरायस्वप्रकाशैकदीप्तये // नित्यमुक्तायशान्तायप्रतीचेब्रह्मणेनमः // 1 // यत्कृतेक्षाक्षणेनैवब्रह्मैवाहमितिप्रथा // तस्मै श्रीसच्चिदानंदमूर्तयेगुरवेनमः // 2 // श्रीमद्राजारामयतीन्द्रान्कविचन्द्रान्विबहादिदिरदक्षोभेषुमृगेन्द्रान् // आपन्नार्तित्राणेकरुणारससान्द्रान्वन्देविहगौरवदीक्षागततन्द्रान् // 3 // तच्छिष्या प्रथिताश्वसन्तिबहुशोऽप्यासेतुसीताचलंतेषांमौलिमणीयमानचरणाबालाभिधा शास्त्रिणः // विद्याभिस्त्वनवद्यहृद्यकविभिर्गण्याश्चवाग्देवतास्वेतेषांस्मृतिरेवमंगलमिमग्रंथंनयेत्पूर्णताम्॥ 4 ॥आबाल्याच्छात्रवेत्तृत्वाद्वालशास्यभिधाजुषाम् ॥भवेन्ममसहायश्चेद्ग्रन्थोऽयंविपुलीभवेत् ॥५॥ऋतेगुरूपसत्तिनज्ञानकस्यापिजायते // अतोवसिष्ठशिष्यायरामायास्तुनमोनमः॥६॥द्वैतादैतविचारकौतुकवशादिध्वस्तभेदःसुधीरद्वैतेपरिनिष्ठितःपरशिवःक्वाप्यस्तितस्मैनमः // |दैतध्वान्तसमुन्मिपट्टगपरोमध्वादिनक्तंचरोभूयिष्ठःश्रुतियुक्तिभृतिरजसाप्रोत्सार्यतेफू For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // // स्कृतैः // 7 // नकोपःकर्तव्योभवतिमहतांबालचरितेमुहुर्दष्वाद्धाचरणमिहबालोऽ- सा० |पियतते // नतत्कर्तुशक्तस्तदपिमहतांप्रीत्युदयतस्तदंकेसंवेशंफलमभिमतंचापिल|भते॥८॥इहखलुयथार्थप्रतिपत्तिहेतुश्रुतितात्पर्यदैतनिन्दनाद्वैतदर्शनस्यमोक्षफलश्रवणादद्वितीयेब्रह्मण्येवेतिराद्वान्तोषाण्टापथिकः॥ तत्रद्वैतवादिनःपछयंते॥ॐ श्रीः दैतस्यसाधकंदैतमुताद्वैतंसखेवद // आत्माश्रयत्वमायेस्यादेककोटिप्रसंगतः // 1 // द्वितीयेस्वविरुद्धस्यसाधकरवंभवेत्कथम्॥नचण्डभानुस्तमसिमानंभवितुमर्हति॥२॥ यत्सत्त्वेयदभावस्यनियतत्वंविरोधितत् // भानुसत्त्वेतमःसत्त्वंकेनदृष्टंक्षितौवद // 3 // प्रत्यक्षादिप्रमाणानिदैतेसन्तीतिचेद्दद ॥मानानिकेनसिद्धानिकिंतस्याप्यस्तिसाधकम् ॥४॥अनवस्थादिदोषःस्यान्मानान्तरपरिग्रहे॥मानासिद्धानिचेत्तानिभ्रमोऽयमिति भण्यते॥५॥ भ्रमसिद्धेनयत्साध्यसोऽपिभ्रमइतीष्यताम् // 6 // प्रमाणागोचराणाचे त्सत्त्वंवन्ध्यासुतोऽपिसन् ॥प्रमाणगोचरत्वचेदुक्तदोषेनिमज्जसि // 7 // स्वतःप्रमाण For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूतेनसर्वस्यानुभवेनहि॥प्रमाणानिहिसिध्यन्तितैःसिइंदैतमक्षतम् // 8 // इतिचेदनु भूतिस्तुनप्रामाण्यप्रयोजिका॥ मेयस्यापिचमानत्वंभवेत्तवमतेतदा // 9 // येनरूपेणयज्ज्ञातंतत्तथेतिविनिश्चयः // कर्तुनशक्यतेक्वापिरज्जुःसर्पायतेनहि // १०॥मेयसिद्धयैवमानत्वंमानसिद्धथैवमेयता॥ अन्योन्याश्रयदोषेणनसिध्येदुनयंतव // 11 // भ्रमप्रमासमानस्यानुभवस्यनकस्यचित् // 12 // साधकत्वंभवेनूनमतोमाना न्तरंवद // मानाभावात्प्रमाणानामसिद्धिरितिहेतुना // द्वैतासिद्धिर्यदिश्वेत्तावकीनमतेऽपिहि // किंमानमहयेऽस्मिश्चेहन्ध्यायास्तनयोऽपिकः // 13 // यदिस्यातनयस्तस्याःकथंवन्ध्येतिगीयते॥तनयेऽपिचवन्ध्याचेत्प्रश्नोऽयमुपपद्यते // 14 // मानमेयादिविरहेमीमांसामानगोचरा॥उपहासायतेभूयाइन्ध्यासुतइवाधुना॥१५॥ मानाभावादद्वयस्यनसिद्धिरितिचेत्तदा // पुत्राभावानसिद्धिःस्याहन्ध्यायाअपितेमते // १६॥पुत्राभावःस्वरूपंचेन्मानाभावोऽपितस्यतत् ॥शून्यवादप्रसंगश्वेच्छून्यदैत For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० स्यमेमतम् // १७॥प्रमाणाभावतोद्वैतंशून्यमेवसमाविशेद ॥नाढतशून्यतासातुभ-|| वेन्मानादिसंभवे // 18 // यदन्यस्यप्रमाणानिनसहेतकथंनुतत् // स्वस्मिन्सहेत // 2 // |मानानिविवस्वानिवतत्तमः॥१९॥तस्मात्तूष्णींतिष्ठवत्सतदेवाद्वैतमिष्यते // नाज्ञाननाशोमानस्यानंगीकारेभवेत्तव // 20 // यत्रस्यान्मानसम्पर्कस्तत्राज्ञानविनश्यति॥ इतिचेन्मानसम्पर्क कुत्रदृष्टस्त्वयावद // 21 // असिद्धानांहिमानानामसिद्धविषयेघुचेत् // सम्पर्क नातिवन्ध्यायाःसुतोमृगजलोमिषु॥२२ // सात्वात्वमपितत्रैवब्रह्म मानीकरोषिहि // मृगवारिजलैश्चेत्स्युःशीताभानुमरीचयः॥२३॥ तदात्वन्मतमानेनब्रह्मापिविषयीकृतम् ॥मानमेयायभावेतुसुषुप्तिस्तेमतेस्थिता // 24 // सत्यंतदा सुषुप्तिःस्याचदिमानादिगोचरे // निश्चयेसतिविश्रान्ति तथेयंस्थितिमता॥२५॥ अवस्थात्रयसद्भावोमानाभावानसिध्यति॥ इतिबोधःसुषुप्तिश्चेज्जन्मतेसफलीकृतम्। | // 2 // // 26 // विचारागस्यसम्पीतदैतनानिमहोदधौ॥चिन्तामणिर्मोक्षनामाकरएवस्थित For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तव॥२७॥मानानंगीकारपक्षेव्यवहारउपप्लतः॥स्यान्चेत्त्वदंगीकरणान्मदनंगीकृतेरथ॥२८॥प्रवृत्तोवानिरुद्दोवाकिंवसावज्ञगोचरः॥ मयासहविचारेणत्वदीयोयदिरध्यते॥२९॥तर्हित्वमद्यमुक्तोऽसिश्रुत्याप्यंगीकृतोभवान्॥ पश्येत्केनचकंजिद्विजानीयाचकेनकम्॥३०॥ यत्रनान्यत्पश्यतीतिश्रुत्याप्रोक्तनिरोधनमव्यवहारेस्तिचेगरिकरुणाभवतस्तदा॥३१॥अंगीकुरुष्वमानानिततोजीवंतुजंतवः॥ अद्वैतनाम्निदीप्तेऽनौदैतिभिःशलभैरिवापक्षद्वयविलोपेनभस्मसायतेऽधुना॥३२॥सचेन्नशाम्यतिकदाचन दृश्यदुःखंदृश्येत्वशाम्यतिनबोद्धरिकेवलत्वम् // दृश्येत्वसंभवतिबोद्धरिबोद्धृक्षावःशाम्येत्स्थितोऽपिहितदस्यविमोक्षमाहुः॥३३॥अस्तुमानंभ्रमोऽस्माकंयथातवमतेश्रुतिः मानमद्वैतकेतद्वैतेमानानितानिहि // 34 // इतिचेच्छृणुवेदस्यद्वैताभावेहिमानता॥ |नतहतियतोवक्तियतोवाचोनिवर्तनम्॥३५॥दैतव्यावृत्तिपर्यन्तंवदेस्यव्याप्रतिभवेत्॥ तनिवृत्तौनिर्विशेषंशिष्यतेकेवलंपरम्॥३६॥शशिसंबंधशून्यापिशाखाशशिविबोधने | For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 3 // दारंनमानंतद्वत्स्याद्वैताभावःपरात्मनि // 37 // असंगस्यचसम्बन्धोद्वैतेनाथेतरेणवा॥ सा० कथंभवेदतोवक्तिश्रुतिरव्यवहार्यताम्॥३८॥ अतस्त्वमेवचोद्योऽसिव्यवहारः कथंतव॥ उपपनोनचेदस्मदिष्टंसिद्धंसुखीभव॥३९॥द्वैताभावेश्रुतिमानमुररीकुर्वतस्तव ॥मानमेयव्यवहृतौनप्रश्नोऽस्त्युपपत्तिमान् // 40 // इतिचेद्दयवहारोऽसौत्वयैवांगीकृतस्ततः // वन्मतेनोत्तरंदत्तंवद्वोधायनमेक्षतिः॥४१॥ ननुमत्संमतेवेदेद्वैतमप्युक्तमस्तिहि // तदेवमेमतंयस्मात्प्रत्यक्षमनुभूयते // 42 // इतिचेहिजगतोब्रह्मणोभेदउच्यते॥ उतजीवादथान्योन्यंक्वकस्माद्भेदसंभ्रमः // 43 // ऐतदात्म्यमिदंसर्वसर्वब्रह्मेतिवा क्यतः॥प्रपंचब्रह्मणोःदोनिरस्तोऽस्तिनवावद॥४४॥ नभेदःसृष्टिवाक्यार्थोभिन्नसृष्टेरसंभवात् // यस्माद्भिन्नंयच्चलोकेतस्यकार्यनतद्भवेत् // 45 // स्तम्भकुम्भादिवत्तस्मात्प्रकृतीपंचमीस्मर॥अतएवधुवाद्यौरियादिश्रुतिसमन्वयः॥४६॥ द्यवादीनांच-|| कार्यत्वात्कार्याणांनाशदर्शनात् // स्वतोध्रुवत्वायोगेनब्रह्मणाऽदइष्यताम् // 47 // For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मैवध्रुवशब्दार्थ परंध्रुवमितिश्रुतेः॥ यस्मादभिनयच्चस्यात्तस्यकार्यनतद्भवेत् // 48 // यथामृनमृदःकार्यमितिचेबुद्धिमान्भवान् // अभिन्नत्वंचकार्यस्यश्रुत्यैवांगीकृतंयतः // 49 // भवतापितदेष्टव्यंश्रुत्येकशरणेनहि // अभिन्नत्वविरोधेनकार्यत्वंनेष्यतेयदि // 50 // तदाभ्रमानुवादेनकृतार्थाःश्रुतयोऽनघाः॥ किंचप्रत्यक्षमानेनभेब्रुवचरेणहि // 51 // प्रमाणान्तरसिद्धत्वादनुवादित्वमिष्यताम् ॥भेदेऽभेदेऽपिकार्यत्वंनोपपत्रं कथंचन // 52 // व्याप्तिद्वयविरोधेनभ्रमइत्येववास्तवम् ॥आरोपितस्याधिष्ठानाभेदोरज्जुभुजंगवत् // 53 // हित्वाधिष्ठानमारोप्यमप्रसिद्धयतस्ततः ॥अधिष्ठानेसगारोप्योदोनास्तिकथंचन॥५४॥हित्वेदमर्थरजतंनप्रतीयेतकेनचित् ॥अतएवविजतीयभेदोऽपिचनिराकृतः॥५५॥हाटकस्थस्यरौप्यस्यभेदेऽप्यारोपितस्यतु // नभेदोस्तीदमर्थेहिचैकासत्तातयोर्यतः॥५६॥आरोपितंहाटकस्थमितिचेच्छृणुबुद्धिमन्अत्यत्वंकथंतत्रनिर्वाह्यभवतावद // 5 // अत्रत्यत्वंशुक्तिगतंरजतेभातिचेहद॥आप For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पस्थादिदभिन्नमभिन्नवास्तिरूपकम्॥५८॥ अभिन्नंचेदापणस्थेवत्यत्वमुररीकृतम् // सा० चायंरजतारोपःकित्वत्रत्यत्वकस्यसः॥५९॥नतेनसंप्रयोगोऽस्तिनारोपस्तप्रयुज्यते॥ भिन्नचेत्नमेवेदमिदमर्थमृतेनहि // 60 // तस्मानतस्यभेदोऽस्तीदमर्थेशुक्तिखण्डके॥ धर्मारोपेऽपिधर्मोऽयंवास्तवाद्भिद्यतेनवा // 6 // द्वितीयेवास्तवंतत्स्यात्प्रथमेऽभिनवंभवेत् ॥समागतानिर्वचनीयख्यातिर्ममसंमता॥६२॥ आरोपितत्वाभानेनभ्रांतस्या||भेदविभ्रमः // तस्याभिलापशब्दस्यनधर्मेलक्षणाभवेत् // 63 // नधान्तेर्गौरवंदो॥षःस्वयंदोषोयतोभ्रमः // धर्मारोपेऽपिनोभेदस्तद्ग्रहग्राह्यतायतः ॥६४॥संसर्गारो पपक्षोऽपित्तोत्तरइतिस्मर॥तस्मानब्रह्मजगतो”दोवक्तुंहियुज्यते॥६५॥ ब्रह्माभेदानजीवस्यभेदोऽस्तिजगतासह // सुपर्णऋतपानाख्यश्रुतिभ्यांभेदउच्यते॥६६॥ इतिचेदहिकस्त्वंभोजीवोब्रह्माथवेश्वरः // जीघश्चेदीश्वरागिनोब्रह्मणोवाथमेवद // 4 // // 67 // भिन्नश्चेदीश्वराब्रूहिकोभेदहेतुरंजसा॥ सर्वज्ञत्वादयोधर्माऐश्वरामयिनेतिचेव For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 68 // सर्वज्ञईश्वरइतिब्रुवताज्ञातएवहि // सर्वशब्दार्थकोनोचेद्यर्यताबुध्नशब्द वत् // 69 // प्रातिस्विकंनजानामीतिचेच्छब्दार्थविद्भवान् // नवावदायेयत्किचिदक्तिजानातितद्भवान् // 70 // नचेत्त्वमीश्वरेकंवाधर्मसाधयितुंप्रभुः // यदि सर्वज्ञताजीवेवदकिंमेमनःस्थितम् ॥७१॥इतिचत्प्रश्नविषयस्तकिंचेत्सकिमर्थकः // काकिंशब्दार्थइतिनप्रश्नःकिंतूत्तरंहितव ॥७२॥अस्तुसर्वज्ञतास्माकंसर्वकर्तृत्वकंकथम् // इतिचेच्छक्यसर्वस्यकर्तृत्वंत्वयिचेश्वरे॥७३॥ अशक्यसर्वकर्तृत्वनेश्वरेनापिचवयि॥नित्यसिद्धासर्जनेनयुक्तंशक्यविशेषणम्॥७४॥सत्यसंकल्पताचेशेमयिनास्तीतिचेबद॥संकल्पेवाथविषयेक्ववासत्यविशेषणम् // 75 // त्वत्संकल्पेऽपिसत्यत्वं नचेत्तत्रापिनास्तितत् // येनैवहेतुनामिथ्यात्वत्संकल्पोविचारितः // 76 // तेनैवहेतुनामिथ्यासभवेदीश्वरस्यहि // कल्पितत्वंयदाहेतुरुभयत्रसमोऽस्तिसः॥७७॥ईशसंकल्पसंशान्त्यालयश्रुतिसमन्वयः॥पुनःसंकल्पजननात्सृष्टिश्रुतिसमन्वयः॥७८॥ For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || सा० // 5 // उभयत्रैकसंकल्पोनित्यश्चेदीश्वरेभवेत्॥नित्यत्वंचनमिथ्यात्वविरुद्धंदृष्टमीश्वरे॥७९॥ त्वसंकल्प कल्पितश्चेत्कल्पनाकल्पितानवा ॥आयेऽनवस्थादोषःस्याद्वितीयेनित्यतेशवत् // 80 // यादृगीश्वरसंकल्पस्तादृगेवतवापिहि // यादृक्तवास्तिसंकल्पईखरस्यापितादृशः // 81 // नासदासीदितिश्रुत्याप्रलयेसर्वनास्तिता // श्रूयतेऽतः |परेशस्यनसंकल्पस्तदास्तिहि // 82 // लयेलयस्यसंकल्पइतिचेनलयस्तदा / कुतः सर्जनसंकल्पस्तदानींसंभवेद्वद // 83 // अतःकल्पितसंकल्पोमिथ्यैवभवतीखरे॥ उक्तयुक्त्याकल्पितोऽपिनभवेन्मास्तुकाक्षतिः॥८४॥नेश्वरसाधयामोऽद्यभेदमात्रनिवारकाः॥विषयेस्वप्रतुल्येचसत्यवार्तानयुज्यते॥८५॥ सर्वज्ञसर्वकर्तृत्वेजीवसाधारणेमते॥ अतोनेवरभेदस्तेब्रह्मभेदोऽपिनास्तिते॥८६ // सर्वज्ञत्वव्यापकत्वमल्पज्ञत्वस्यविद्यते॥ नातोविरोधशंकापिकुतोजीवेशयोर्भिदा॥ 87 // सत्यंज्ञानमनन्तेतिब्रह्म लक्षणयोगतः ॥ब्रह्मत्वमास्तांसर्वान्तर्यामितामयिनास्त्यतः॥ ८८॥ईशत्वंदुर्घट // 5 // For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |मन्येइतिचेच्छृणुबुद्धिमन् ॥सर्वान्तर्यामिताकातेययेशत्वंहिदुर्घटम् // 89 // व्यवहार नियंतृत्वमुतसत्ताप्रदाता॥ अधिष्ठानस्यधर्मोऽयंयाचसत्ताप्रदाता॥९०॥ यत्सत्तयेश्वरोऽयंतेसत्तावानस्वतस्तथा॥ स्वीयदेहेन्द्रियादीनांनियंतृत्वंतवापिहि॥९॥ प्रतिस्थलंविभिन्नत्वात्सर्वार्थोऽनेकधाभवेत् // यत्किंचित्प्रकृतंतत्तुसर्वशब्दार्थइष्यते // 92 // स्वसर्वदेहेन्द्रियादेनियंतृत्वंयतस्त्वयि ॥अतःमुघटमीशत्वंचिंतांमावहमा वह // 93 // किंचेश्वरः सर्वकर्ताभेदवादेकथं भवेत् // यच्चजीवकृतंतत्तुनेश्वरेणकृतं तव // 94 // तदभावानसर्वस्यकर्तास्यात्तदभावतः // नस्यात्सर्वज्ञतातस्यसन्तिमितापिच // 95 // अतोनेश्वरासद्धिस्तेकथंभेदःप्रसाध्यते // यदिजीवकृततेनकृतं स्यात्तत्कृतंकुतः॥९६॥ नचजीवकृतंतस्मात्सर्वेषामपिचेशता // क्षियंकुरादिकईवंधर्मिग्राहकमानतः॥९७॥ तावत्येवहिविज्ञत्वेकल्प्येसर्वज्ञताकुतः॥ एतावताल्पकर्तृत्वान्जीवकोटौनिवेशितः॥९८॥अधिकज्ञत्वकर्तृत्वेनेश्वरत्वप्रयोजके // आंशि For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काज्ञत्वमेतस्यकोवावारयितुंक्षमः // 99 // यदिस्यात्सर्वकर्तासजीवानांस्यादकता॥जीवास्युर्यदिकर्तारोऽन्यथासिद्धस्त्वदीश्वरः // 100 // घटादयःकुलाला-|| सा० दिकर्तृकानेश्वरंप्रति // साकांक्षाअंकुराधास्तुभवन्त्वीश्वरकर्टकाः // 101 // सर्वात्मत्वासर्वकर्तासर्वज्ञःसुशकोमम // त्वयैवाविद्ययास्वस्मिन्जगदारोपितंखलु ॥१०२॥अज्ञानबाधात्तद्वाधस्त्वमीशोभगवांस्ततः॥ माण्डूक्येप्राज्ञमात्मानंप्रकत्येशत्वमुच्यते // 103 ॥अपिदुर्घटमीशखंघटनीयंविचारतः // ईशानन्त्यंभवेदस्मिन्मतेचेत्कथमस्तितव ॥१०४॥संख्यातःपरिमाणादाद्वितीयेत्विष्टमेवनः॥संख्यो|पाधिग्रहग्राह्यानेशानन्त्यायकल्पते॥१०५॥ दशावतारभेदेननविष्णोर्दशतायथा // दशानामपिविष्णुत्वंविष्णोरेकत्वमप्यथ॥१०६ ॥एवंजीवानन्त्यमपिगतंहस्तान्चता||र्किकातत्रतत्रव्यक्तचितातत्तद्रोगोहियुज्यते॥१०७॥नतेनभोगसांकर्यनवाज्ञानस्यसं|| || // 6 // करातेनभुक्तंमयानेतिनवक्तुंशक्यतत्वया॥१०८॥यतस्त्वमेवभोक्तासिसर्वोपाधिषुचै For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलः // अविद्ययाध्यास्यदातेंद्रियैर्भुक्त्वासिभोगवान् // 109 // सर्वोपाधिनियंत्र वात्सर्वज्ञत्वाच्चसर्जनात् // ईशत्वंतवभोक्तृत्वादज्ञवाज्जीवतापिच॥११०॥ यइमं मध्वदेत्यत्रजीवंप्रक्रम्यचाग्रतः // ईशानभूतभव्यस्येत्यभेदोक्तिःसमंजसा // 11 // असंगोदासीनचितईशितृत्वंनयुज्यते // अतईशानशब्दस्यचेश्वरोऽर्थोनशुद्धचित् // // 12 // एतच्छब्देनोमयस्याध्यासाधिष्ठानमुच्यते // तदेवपृष्टंब्रह्मेतितच्छब्देनोप संहृतम् // 13 // जीवेशयोरभेदश्चेल्लक्षणातत्त्वमादिषु॥कथमाश्रीयतेयुष्मत्पूर्वाचा यर्विचारय // 14 // तत्रहेतुद्दयंविद्वित्वदध्यस्ताहिभिन्नता // शुद्धेब्रह्मणिशब्दानां शक्त्ययोगोद्वितीयकः // 15 // वदध्यस्ताभिन्नतातुलद्वोधप्रतिबंधिका // अतस्त्वबोधनायैवलक्षणाप्रोच्यतेबुधैः // 16 // सर्वनाम्नांलक्षणानतैर्थिकेष्टेतिचेच्छृणु॥ ब्रह्मशक्यंनकस्यापिशब्दस्यभवितुंक्षमम् // 17 // निर्धर्मकत्वाच्छबलमीक्षादिजग तःप्रभुः ॥तदर्थस्त्वंपदार्थोऽपिदेहेंद्रियगणान्वितः॥ 18 // अशोधितत्वाच्छोधेतुत For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 7 // योरैक्यंसुषुप्तके // अविद्योपाधिकोजीवोमायोपाधिमहेश्वरः॥१९॥ उपाधिभेदादन- स योनैकत्वमितिचेच्छृणु॥अविद्यैवहिमायास्यावचनानहरूपतः॥१२०॥अविद्यावरकत्वेनाव्याकृतंबीजरूपतः // तदेवाज्ञानमित्युक्तंप्रमाबाध्यत्वयोगतः // 21 // देहेंद्रियगणाध्यक्षःसौषुप्तानविभिद्यते // योऽहंसुप्तोऽभवंपूर्वसोऽहंव्यवहृतौस्थितः // 22 // |इतिसार्वजनीनेयंप्रत्यभिज्ञाप्रदृश्यते // बीजावस्थांयआपनोध्यस्येदंजगदात्मकः // // 23 // पुनर्ग्रसित्वाबीजाख्यइत्थमेवाप्रमंस्थितः // कूर्मागानिप्रविष्टानिकूर्मप्रोतानिकूर्मकः // 24 // प्रसारेमुखपादादिव्यवहारोनकूर्मभित् // जगत्तथाविष्टबीजं बीजमुक्तंचनिर्गमे // 25 // घटःपटोजीवईशइत्यादिव्यवहारभूः // आदृत्यकूर्म दृष्टांतसत्कार्यमुपपादितम् // 26 // सर्वाधारकालइतिवदतापीदमुच्यताम् // सत्कार्यवादोनोकस्मानांगीकृतइतिस्वयम्॥२७॥विशेषोऽन्यत्रयदृष्टंतदन्यत्रस्थितं | // 7 // तव // नित्यजात्यायाश्रयत्वेतत्तद्वयवहृतिर्भवेत् // 28 // आस्तामेतच्चसर्वात्मात्व For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेवजगदीश्वरः // पृथग्देहाभिमानेनाच्छादितेश्वरतातव॥२९॥ विचारेत्वीश्वरत्वं तेकोवावारयितुंक्षमः // नियंपरोक्षईशस्तुजीवोनित्यापरोक्षकः // 130 // तयोरैक्यंकथंचेत्तेतथाध्यासोविचारतः // त्वदध्यासाच्छक्त्ययोगाद्ब्रह्मप्रकरणादपि // 31 // लक्षणातत्त्वमोर्युक्तातथैवासिपदस्यच // लकारार्थानन्वयेनवाक्यंलक्षणयार्थवर // 32 // तदर्थोऽन्वेत्यभेदेनत्वमर्थेनत्वमर्थकः॥ असर्थेनाप्यभेदेननान्यसंसर्गसंभ||वः // 33 // अभेदस्तुनसंसर्गस्तत्त्वेषष्ठीभवेद्यतः // विशेषणेविशेष्येचधर्मत्यागाद खंडता // 34 ॥धर्मिमात्रस्यैकसत्तारूपोऽभेदोनखंडकृत् // येत्वभेदेऽपिखंडत्वभीत्याऽभेदत्यजंतिहि // 35 // धर्मिमात्रोपस्थितिरित्याहुर्मान्यायतोबुधाः // उपस्थिते प्रमात्वंचपदानांवाक्यतापिच // 36 // कथंनिर्वाह्यतेब्रह्मपदादपिभवेत्पमा // मानाभावश्चतत्त्यागेनचमानमखंडता॥३७॥ यतोबोधस्वरूपंतत्फलंबोधस्यवाभवेत् // घटोघटइतीवात्रनाभेदश्चेदलंशृणु॥३८॥ तत्त्वंपदाभ्यांशबलावी For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |शजीवावुपस्थितौ // अनेकरूपतस्तस्मात्रोक्तदृष्टांतसंगतिः॥३९॥ नोपस्थित्यंतरं-|| सा० |तत्रधर्मत्यागेऽपिचहयोः ॥लक्षणाव्यवहारस्तुधर्मत्यागेनयुज्यते // 140 // नचवृत्त्यंतरंयेनरूपांतरमभीप्सितम् // संसर्गोवाविशिष्टोवावाक्यार्थोनात्रसंमतः // 41 // अखंडैकरसत्वेनवाक्यार्थोविदुषांमतः // प्रत्यग्बोधोयआभातिसोदयानंदलक्षणः॥ // 42 // अद्दयानंदरूपश्चप्रत्यग्बोधैकलक्षणः॥इत्थमन्योन्यतादात्म्यप्रतिपत्तिर्यदाभवेत् // 43 // अब्रह्मत्वंत्वमर्थस्यव्यावर्तेततदेवहि॥ इतिश्लोकत्रयेणार्यावाक्य|त्तावखंडताम् // 44 // अभेदंचाभेदबोधफलंचाहुर्मनीषिणः // त्वमर्थस्यचधात्वर्थेनाभेदेऽपिनकर्मता // 45 // फलाविशेषितासत्ताधात्वर्थोव्यापृतिर्नहि // आरोपितव्यापृतित्वादातुसंज्ञानबाध्यते // 46 // उपाध्यभिव्यक्तियोगादारोपोपिऽहि युज्यते // उपाध्यभिव्यक्तिकर्तृब्रह्माभेदावटादिच // 47 // कर्तृस्याद्ब्रह्मविख्यातं / // 8 // सत्तामात्रमितिश्रुतौ // अस्तीत्येवोपलब्धस्यतत्त्वभावःप्रसीदति ॥४८॥इतिश्रुति For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रतःसत्तानव्यापारोविकारतः // तत्त्वभावविरोधाचतस्मात्रैवास्तिकर्मता // 49 // साधुत्वायैवपुरुषोयुष्मच्छब्दसमन्वयात् // पुरुषार्थोस्तुचैकत्वंसत्तायामन्वितंभवेत् // 150 // इतिकेचित्तनयुक्तंनसंख्यानिर्विशेषके // एकमेवाहयमितिकथमादौविशेषणम् // 55 // इतिचेदद्वितीयत्वंसंख्यापक्षेविरुध्यते // संख्यापिसद्वितीयत्वादद्वयेनविरुध्यते ॥५२॥विरोधादुभयोरेवकारोपिचविरुध्यते॥ तस्माद्भेदत्रयाभावोवाक्यार्थोन्वेतिवैसता // 53 // अभावात्सद्वितीयत्वंनाभावोनाश्रयात्पृथक् // निर्विशेषप्रकरणाल्लक्षणातत्त्वमोरपि // 54 // जडकारणताबोधबाधायेक्षादिसंकथा॥ कार्यकारणभेदापहत्यैसर्वात्मताकथा // 55 // आरोपितत्वमीक्षादेःसतिसत्यविशेषणात् // एकज्ञप्तेःसर्ववित्तिसिद्धयेतत्वमोःकथा // 55 // महावाक्यार्थबोधस्यप्रमात्वान्मोक्षयुक्तता // ननुचाव्याकृतभेदत्रयाभावोहियुज्यते // 56 // तस्माचशबलंब्रह्मप्रकृतंनतुशुद्धसत्॥इतिचेत्सत्यमितिचतव्यावृत्त्यर्थमिष्यते॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. // 9 // कालांतरेबाध्यतेतद्विचारेणापिबाध्यते॥कथंस्यात्सत्यतातस्यब्रह्मैवप्रकृतंततः॥५८॥ सा० पदवयंलक्षयित्वाऽस्यर्थेनैक्यंवदंतिये // तेषामभिप्रायएषोस्यर्थोऽभेदानभिद्यते // // 59 // एकसत्तात्वभेदःस्यात्तव्यक्तित्वंतदेवहि ॥नेयंवैशेषिकीसत्ताजात्यादिष्वपि भासनात् // 160 // संसर्गेचैकताभानंनब्रह्मदैतकारणम् ॥संसगैकत्वमुभयोःसामरस्यप्रयोजकम् // 61 // तथाग्रहश्चेद्भवतुचैकत्वमुपलक्षणम् // अस्यर्थस्यचसंसर्ग रूपभानेपिनक्षतिः॥६२॥अभेदोनित्यइत्यादौतथोदाहृतिदर्शनात् // लक्ष्यत्रयैक्य बोधोयनवाचांविषयोभवेत् // 63 // निर्मिवस्तुकेनापिसुशकंनाभिभाषितुम् // अतिव्युत्पन्नमतिनावाक्यार्थोबुध्यतेतथा // 64 // वक्तुंनशक्यतेतस्मानसत्तन्नास दुच्यते // इत्याहभगवान्साक्षात्सर्वज्ञोप्यर्जुनप्रति॥ 65 // इत्थंलक्षणयास्तंभकुंभयोरेकताभवेत् // इतिचेद्धर्मिभेदेननैकतास्तिसमंजसा // 66 // भिन्नरूपो // 9 // पस्थितस्यधर्मिणस्त्वैक्यमिष्यते // यत्रधर्मियंतत्रकथमैक्यंभवेहद // 67 // || For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मिभेदेप्यभेदश्चेल्लक्षणोक्तिर्नयुक्तिभाक् // अत्रप्रकरणादेकंब्रह्मसद्धर्मितत्रहि // 68 // ईक्षादिकर्ताभगवानज्ञोभोक्ताचजीवकः // आरोपितौतयोरैक्यतत्त्वमित्याहचश्रुति // 69 // आरोपितत्वमैक्यस्यबोधासिध्यतितत्त्वमोः // अविरोधःकुतोनस्यादिति चेच्छंक्यतेत्वया // १७॥विरोधंनवयंब्रूमस्त्वयाध्यस्तोस्तिसुस्थिरः // प्रकृतार्थ परामर्शितत्पदंलक्षितंभवेत् // 71 // लक्षणात्वंपदस्यात्रनप्रयोजनमर्हति॥ घटत्वा दिविशिष्टस्यमृदभेदोयथातथा // 72 // सविशेषेनिर्विशेषाभेदोभवतिसांप्रतः॥ इतिचेत्परिणामोयंजीवोनब्रह्मणोभवेत् // 73 // तथाचेत्कालवशतोनाशोनास्तिक जीववत् // नापिधर्म्यतरंजीवस्तत्वमैक्यविरोधतः // 74 // नैक्यज्ञानमुपासार्थ सर्वज्ञानविरोधतः // अतोविव”जीवोनबाधाभेदेमृषाभवेत् // 75 // नस्यान्मोक्षसुखंतस्यमृषात्वाच्छोकमावहेत् // धर्मत्यागाद्धर्मिणैक्यसिध्यर्थलक्षणात्वमः // // 76 // तदैवमुख्यमैक्यस्यादहंब्रह्मेत्यबाधितम् // देहादिवनजीवोयंधHध्यस्तो For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 10 // स्तिचित्प्रो // 77 // किंतुप्राणादियोगेनजीवत्वाध्यासइष्यते // औपाधिकत्वा|न्मिथ्यातद्ब्रह्मत्वंवास्तवंमतम् // 78 // उपाधीनांतुमिथ्यात्वंवाचारम्भणवाक्यतः॥ तस्मादीश्वरभेदोनब्रह्मभेदोपिनास्तिते॥७९॥ वासुपर्णेत्यादिमत्रास्त्वद्भमेणवसार्थाः // प्रत्यक्षवदकीदृक्तेकंदमवगाहते // १८॥जीवेशयोश्चेज्जीवेशीनेंद्रियार्थी स्वयंप्रभौ // कथंभेदस्तयोःस्वीयप्रत्यक्षपथमर्हति // 81 // येनेंद्रियेणयग्राह्यंतत्रभेदोपितेनवै // विरुद्धधर्माक्रांतिश्चनहेतुरुपयुज्यते // 82 // नचप्रात्यक्षिकंज्ञानं हेतूपन्यासमर्हति // हेतूपन्यासतोभेदःसाध्यश्चेदनुमाभवेत् // 83 // दृष्टांत स्तत्रवक्तव्योघटादिःसर्वएवहि // घटादिसर्वभिन्नत्वादभेदोपिनवेत्तदा // 84 // व्यतिरेकेघटादिस्तुदृष्टान्तःस्वयमूह्यताम् // किंचेश्वरोजीवभिन्नःसर्वज्ञत्वादितित्वया // 85 // वक्तुंनशक्यतेतत्रदृष्टांताभावयोगतः // एवंजीवेपीशभेदोऽज्ञत्वावेतोरपि त्वया // 86 // दुःसाधोहेतुनातेनाभेदोपिस्याद्यथाक्रमम् // विरुद्धधर्मसिद्धिश्च // 10 // For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भेदसिध्याभवेत्तव // 87 // भेदसिद्धिस्तदेवस्याविरुद्धाक्रांतिसंभवः // किंचजीवाभिन्नईशोज्ञत्वाद्रामादिवद्भवेत्॥८८॥इत्थमेवेश्वराभिनोजीवोपिभवितुंक्षमः॥ईश्वरेप्यज्ञतापत्तिरितिवक्तुंनशक्यते।।८९॥सर्वात्मत्वादज्ञतापियुक्तैवपरमात्मनः॥१९०॥ सर्वज्ञताल्पज्ञतयोविरोधोनकथंचन / सर्वज्ञत्वव्यापकत्वमल्पज्ञत्वस्यदृश्यते // 91 // स्वाध्यस्तसर्ववेत्तृत्वंसर्वस्यापिहिविद्यते // खानध्यस्तानभिज्ञत्वमपिसर्वस्यविद्यते // 92 // यदीखरोजीवभिन्नस्त्वमेवांगीकरोषितत्॥ 93 // यद्यभिन्नस्तदास्वीयमताविप्रच्युतोभवान् // यत्रेश्वरेजीवभेदःसाध्यस्तैवेत्सिवानवा // 94 // आयेकिं विषयत्वेनाथवाखत्वेनवावद // विषयत्वेतुमिथ्यात्वंस्खत्वेभेदःकथं भवेत् // 95 // नवेत्सिद्भेदसिद्धिःकथंवाक्रियतेत्वया॥अनेनैवप्रकारेणजीवभेदोऽपिधिकृतः // 96 // उपाधिभेदग्राह्यत्वाज्जीवभेदोनवास्तवः // मणिभेदानसूत्रस्यभेदोमालासुदृश्यते // 1 चेदितिशेषः For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० सा० // 11 // // 97 // मणिवैचित्र्ययोगेनचेत्सूत्रेभेदविभ्रमः // मिथ्यैवभवितुंयुक्त केवलेतददर्शनात् // ९८॥स्वमेजाग्रतिदृष्टोऽपिभेदोनास्तिसुषुप्तके ॥जीवस्तस्मादेकएवसर्वोपाधिविलासवान् // 99. // नोपाधिसंपरित्यागःसुषुप्तेप्यस्तियेनहि // जीवस्यकेवलीभावोयेनस्यानेदविभ्रमः॥२००॥ इतिचेदस्तितोपाधे केनदृष्टासुषुप्तके // त्वये तरेणवाचाद्येसुषुप्तिस्तेकथं भवेत् // 1 // द्रष्टोपाधेस्त्वयादृष्टोनवाबूहिसुषुप्तके // कथंसुषुप्तिर्दृष्टश्चेन्नचेत्सत्तोपधेः कथम् // 2 // मदीयसुप्तिसमयेयोजाग्रत्तत्कथावशात् // उपाधिसत्ताचेत्तर्हितज्जाग्रत्केनसिध्यति // 3 // तज्जागृतिस्त्वयादृष्टा चेत्त्वंजाग्रनसुप्तिमान् // तस्मात्तादृक्त्वदध्यासस्तस्मात्सत्यंजगन्नहि // 4 // अध्य स्तंजगदादायनकिंचित्तवसिध्यति॥महान्हदेयथावन्हि—माभासानसिध्यति // 5 // मानमेयव्यवहृतेःसंभवाभावतःखलु // अध्यस्तत्वंत्वयेष्टव्यंनचारंभादिसंभवः॥६॥ // 11 // कार्यकारणयोर्भदआरंभेसंमतोनवा // नचेदप्रत्यक्षतास्यादप्रत्यक्षाण्वभेदतः // 7 // For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुल्य सांख्येऽप्ययंदोषःकिंचापरमिमंशृणु॥ स्वकार्यत्वंस्खहेतुत्वंनैकधर्मिणिसंभवेत् | // 8 // आद्येनकारणकार्यमितिवक्तुंनयुज्यते // मृत्कार्यस्यकपालस्यघटकारण तायतः // 9 // घटहेतोःकपालस्यमृत्कार्यत्वस्यदर्शनात् // नकार्यकारणमिति नवक्तुंसुशकंतव // 10 // यत्तच्छब्दनिवेशेतुदोषोननुगमोभवेत् // कार्यकारण तावच्छेदकरूपेणचेद्दिा // 11 // अवच्छेदकधर्मस्यभेदःस्यानतुधर्मिणः॥ अवच्छेदकधर्मस्यभेदोऽपिचनसिध्यति // 12 // उभयावच्छेदकत्वंकपालत्वस्यदृश्यते॥ यत्तच्छब्दनिवेशेतुदोषोननुगमोभवेत् // 13 // अस्तुवाधर्मभेदोऽयंनर्मिद्वैतसाध-/ कम् // कपालकंनकलशइतिख्यायाविभिन्नता // 14 // कल्पनीयेतिचेकेनावच्छिन्नाप्रतियोगिता // कपालकलशलाभ्यांचेत्त्वदुक्तोनसिध्यति // 15 // योप लक्षितत्वंतुप्रत्येकस्यापिविद्यते // कार्यसकारणाद्भिनमितिवक्तुंनशक्यते // 16 // 1 कार्यकारणयोः For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० कार्यमेवस्वशब्दार्थउक्तदोषःस्थितस्ततः // तस्माद्भिन्नमभिन्नवाकार्यवक्तुंहिदुःशकम् सा० | // 17 // तस्मान्मिथ्यैवविश्वंस्यात्कस्यवासाधकंभवेत् // अकार्यचेत्सर्वयत्नवैय्य॥१२॥ •पत्तिरापतेत् // 18 // विश्वनिष्ठञ्चमिथ्यात्वंसत्यंमिथ्याथवावद // आद्यदैतं द्वितीयेतुजगत्सत्यत्वमापतेत् ॥१९॥इतिचेच्छृण्वनिर्वाच्यस्थितोधर्मोऽपितादृशः॥ वंध्यापुत्रस्थिताधर्मास्तादृशाएवनान्यथा // यावन्मिथ्यावस्तुभाविमिथ्यात्वंदृश्यवस्तुनः // 220 // मिथ्यात्वस्यापिमिथ्यात्वेसत्यत्वंनहिसिध्यति // तथासत्यविरोधित्वंतथातुच्छविरोधिता // 21 // सदसद्भिन्नभिन्नत्वेसदसपदूतास्थिरा // इदमेवत्वनिर्वाच्यमुच्यतेब्रह्मवादिभिः॥२२॥मिथ्यावस्तुनिवृत्त्यैवनिवृत्तंयद्भवेत्ततः॥न?तमप्रसिद्धत्वादन्योन्यंशूक्तिरौप्यवत् ॥२३॥किमत्रबहुनोक्तेनग्राह्यसंभावनानहि॥ यत्किंचिदृह्यतेतत्तुज्ञानयोगेनगृह्यते // 24 // ज्ञानेज्ञेयस्यसंबंधोविषयित्वनचापरः॥ // 12 // तञ्चवरूपंज्ञानस्यसर्वतैर्थिकसंमतम् // 25 // भिन्नत्वेकल्पनीयंस्यात्सम्बन्धान्त For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रमप्यथ // अनवस्थादिदोषःस्याज्ज्ञानाभिन्नंजगत्ततः // 26 // ज्ञानंज्ञेयमितिद्देधापदार्थोस्तिनचेतरः // इतरत्वेतुच्छतास्याज्ज्ञानत्वेतुमदिष्टता॥२७॥ज्ञेयत्वेज्ञानसम्बन्धोनस्यात्तस्मानतेगतिः॥ इदमेवहितादात्म्यंज्ञानस्यज्ञेयवर्गक॥२८॥ यत्स्वातिरिक्तसम्बन्धासम्भवोऽस्तिविचारिते॥ज्ञानस्याखण्डरूपस्यनिर्विकल्पस्यनोभवेत् // 29 // जगदिकल्पनारूपंतस्मान्मिथ्याजगत्स्मर // तच्चज्ञानंस्वप्रकाशंसर्वग्राहकतायतः // 230 // ग्राह्यबाधेसर्वशास्त्रतात्पर्यज्ञेयमादरात् // नचशास्त्रसहस्रेणपदार्थःक्रियतेऽन्यथा // 31 // तस्मादेकार्थतायुक्ताशास्त्राणांबुधसंमता // यथार्थवक्तावेदोऽसौनानात्वंधिकरोतिहि // 32 // प्रशंसतिनचद्वैतमद्वैतंचप्रशंसति॥ तस्माद्यथाधिकारंहिशास्त्रवृत्तिःसमंजसा // 33 // स्वयंप्रकाशेप्रज्ञानेसर्वप्रत्यक्स्वरूपके // सर्वावभासकेभेदोनकथंचनयुज्यते // 34 // भेदग्रहश्चानुयोगिप्रतियोगिग्रहोद्भवः // स्वप्रकाशस्यग्राह्यत्वाभावानेदग्रहोनहि // 35 // ज्ञानंचयदिभिद्यतभे For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० सा० // 13 // ||दस्यग्राहकोस्तिकः // गृहीतायदिभिद्यतजडौगृह्णातिकिंकथम् // 36 // ज्ञानस्य जडतापत्तिग्राह्यत्वाचघटादिवत् // गृहीताज्ञानभिन्नत्वाज्जडएवभवेत्खलु // 37 // |जडोऽपिचगृहीताचेवटादीनांचतद्भवेत् // उभयोर्जडताचेत्स्याज्जगदांध्यं भवेत्तदा // // 238 // स्वयंप्रकाशताक्वापिमंतव्याभवताततः // यश्चस्वयंप्रकाश स्यात्तज्ज्ञानं स्वयमुच्यते // 39 // परप्रकाशआत्माचेज्ज्ञानवानहमित्यपि // नवक्तुंशक्यतेतेन घटतुल्यजडेनहि ॥२४०॥जडोपिचेत्तथाविंद्याद्घटोपिगुणवानहम् // इतिविद्याच ननुसज्ञानाभावानवेत्तिचेत् // 41 // त्वयिज्ञानकेनसिद्धज्ञानेनाथेतरेणवा॥आये स्वसाधकेज्ञानेदोषआत्माश्रयो भवेत् // 42 // अनवस्थादिदोषःस्याज्ज्ञानांतरपरिग्रहे // द्वितीयेतद्वितीयंतुस्वेनान्येनोतसिद्धिशाक्॥४३॥ पक्षद्वयेप्युक्तदोषास्तस्मा दात्मास्वयंप्रभः // ज्ञानरूपोनित्यसिद्धोभ्युपगंतव्यएवते॥४४॥उत्पद्यतेचात्ममनः संयोगाग्ज्ञानमात्मनि // इत्याहतस्यचांध्यस्यान्मध्येज्ञानविनाशतः // 45 // || // 13 // For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानांतरोत्पत्तिनाश्यंज्ञानचेन्नोपपत्तिमत् // प्रासंयोगात्तदुत्पत्तिःसंयोगांतरतोथवा // 46 // आधेतुसर्वज्ञानानांयौगपyभवेत्तव // द्वितीयेप्यणुमात्रेतुनसंयोगांतरोद्भवः // 47 // स्वावच्छेदेनसंयोगांतररोधित्वयोगतः॥निष्प्रदेशेचात्मनिचनसंचारस्यसंभवः // 48 // संयोगश्चविभागश्चयेनस्तःसोपपत्तिकौ // सप्रदेशत्वपक्षेतुनित्यत्वंनात्मनोभवेत् // 49 // निष्प्रदेशेपिचाकाशेयथास्तपक्षिणांगतिः ॥मनोगतिस्तथाचेत्किमाकाशंदृश्यतेत्वया // 50 // येनदृष्टांतसिद्धिःस्याकिंचसंचारसंभवः॥ मनसोनभवेक्वापिपादपक्षाद्यभावतः // 51 // सुषुप्तौचरमज्ञाननाशोनस्यात्कथंचन // पुरीतदातरज्ञानानाशोनैवोपपत्तिमान् // 52 // सामानाधिकरण्यस्याभावाकिंचादराच्छृणु // भावावगाहितज्ञानमुताभावावगाहिवा // 53 ॥आयेनस्यासुषुप्तिःसाहितीयेप्रतियोगिनम् // विनिर्मुच्याभाववित्तिर्नदृष्टाक्वापिकेनचित्॥५४॥ प्रतियोगिझानपक्षेनसुषुप्तिर्भवेत्तुसा // येनेंद्रियेणयद्ग्राह्यंतदभावोपितेनहि // 55 // For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० इत्थंनियमसद्भावादभावग्रहणकथम् // इंद्रियाणांहिसंयोगेजागृतिःस्यानसुप्तता // सा० // 56 // तस्माच्चचरमज्ञाननाशोनैवोपपद्यते // पुरीतदंतःसंयोगानाशश्चेज्ज्ञान॥१४॥ नाश्यता // 57 // गतातथाचरमताकथंसिध्यतितहद // नाशाच्चरमतासिद्धि श्वरमत्वाच्चनाश्यता॥५८॥ इत्थमन्योन्याश्रयतादोषानाशोनसिध्यति // संयोगांतरसिध्यर्थव्यापारश्चेष्यतेनवा // 59 // आयेव्यापारसमयेपूर्वसंयोगनाशतः // ज्ञाननाशोभवेन्मध्यआंध्यंदुरिमेवहि॥२६०॥हितीयेपिचसंयोगांतरासंभवतःखलु॥ ज्ञानोत्पत्तिर्नसिध्येच्चतेनचेयुगपद्भवेत् // 61 // परस्परविरोधेनयुगपन्नाशिताभवेत् // अविरोधेतुतिष्ठेच्चगतानाशीयहेतुता॥६२॥चिद्रूपआत्मनितथासांशेतःकरणेपिच // कालेशोज्ञाननिष्पत्तिःकथंचेच्छृणुतत्क्रमम् // 63 // देहोत्पत्ति // 14 // विनाशाभ्यामात्मोत्पत्तिविनाशकौ // यथातथावुद्धिवृत्तिनाशोत्पत्तिभिरिष्यते // // 64 // तदभिव्यक्तियोगेनव्यवहारोस्तिलौकिकः // अन्यथात्वात्मनित्यत्वंव्य For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वहारंचलौकिकम् // 65 // कथंचनिर्वाहयसितस्मादात्मैवचित्प्रभः // सच्चिदानंद गुणकंब्रह्ममध्वावगछसि // 66 // गुणाद्भिन्नमभिन्नवातद्ब्रह्मप्रतिपादय // भिन्नंचे ज्जडतापत्तिरभिन्नंचेच्चिदेवहि // 67 // चिदिन्नत्वेचजडतासद्भिन्नत्वेचतुच्छता॥ सुखभेदेदुःखतेतिदोषत्रयमुदाहृतम् // 68 // चिदिन्नत्वेपिचिहत्त्वान्नजडत्वंवदे यदि // सद्भिन्नत्वेनतुच्छत्वाच्चिद्वत्तानहिसंभवेत् // 69 // सुखवत्तापितहत्स्यात्तुच्छेसर्वमसंभवि // जीवसाधारणाएतेभवतःसंमतानवा // 270 // जीवसाधारणत्वेतुब्रह्मलक्षणताकथम् // असाधारणपक्षेतुजीवस्यजडतातथा // 71 // तुच्छतादुःखताचेतिमोक्षोऽपिचनसंभवेत् // तल्लक्षणंपूर्णताचेदाकाशस्यापिदृश्यते // 72 // प्रत्यक्त्वंचेदस्तिजीवेनश्रुतंलक्षणांतरम् // ज्ञानानांतारतम्यंचवदन्संपृच्छयतेमया // // 73 // न्यूनाधिकग्राहकत्वमुतसकदेशिता // आद्यगृध्रोदूरदृष्टिस्त्वत्तोधिकतरो भवेत् // 74 // मंद्रियःपंडितश्चबालान्न्यूनतरोभवेत् // द्वितीयेदेशवत्त्वेननाशः For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 15 // स्यादात्मनामपि // 75 // उज्ज्वलानुज्ज्वलत्वेतुनशक्येकल्पितुत्वया॥ तेकिंस्वा- सा० भाविकेनोवास्वभावश्चेदलंशृणु // बालोनपंडितःस्यात्तेनचेहेत्वंतरंभवेत् // 76 // उपाधौतारतम्यस्यानज्ञानेस्यात्कथंचन // विष्णुःसर्वोत्तमइतिवदन्नप्यत्रपृच्छयेत // 77 ॥कोवास्याद्विष्णुशब्दार्थोजडश्चिद्वाथमेवद ॥जडश्चतुर्भुजोदेहोव्यापकोनैवसंभवेत् // 78 // चैतन्येव्यापकेदेहोनकथञ्चनयुज्यते // देहाभावादुत्तमतादुर्निरूपाभवेत्तव // 79 // चिज्जडैक्यवास्तविकंनकथञ्चनसिध्यति // जडस्यचित्त्वापत्तिःस्याचितश्चजडतापिच // 280 // विरोधाभयंनस्यादनिर्वाच्यत्वमापतेव // नतज्जडंकिंतुमायाकल्पितंचिन्मयंभवेत् // 81 // इतिचेत्परिणामेतुविकारित्वंसमापतेत् ॥विवर्तेतुमतात्स्वीयात्प्रच्युतिस्तवसंभवेत् // 82 // सदातनत्वाञ्चकाजपाणिमूर्तिर्नमायिकी॥इतिचेद्रामकृष्णाद्यानूलावाथसदातनाः // 83 // सदातनत्वेऽवतारशब्दोनस्याचतेषुतु ॥नूलत्वेपरिणामोवाविवर्तीवाथमेवद // 84 // For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयेचितोवामूर्तेर्वापरिणामोभवेद // चितस्तुपरिणामेऽपिनाशापत्ते सांपतम्। // 85 // द्वितीयेमूलमूर्तेश्चस्वरूपेणकथंस्थितिः // अचिंत्याशक्तिरीशस्पतयारामादिसंभवः॥ 86 // इतिचेन्मन्मतामायाकुतोनस्वीकृतात्वया // सतीत्वेशक्तितानस्यात्स्तम्भेकुंभेक्वशक्तिता॥ 87 // असतीशश, भाकर्थवास्वीकृतात्वया। उक्तोभयविरुद्धाचेत्सवमायाप्रकीर्तिता // 88 // सयारामादिसृष्टिश्चेज्जगत्सृष्टिःकुतोनहि // रामादीनामभिन्नत्वेजगतोऽपिकुतोनहि // 89 // अभिन्नत्वेतुसर्वास्माह्येकएवहरिस्थितः // कथंसर्वोत्तमत्वंस्यादेकवस्तुनिनिईये // 290 // सर्वपुरुषएवेतिप्रोक्तंपुरुषसूक्तके // बलाबलविचारेतुशिवाद्याअपिचोत्तमाः // 9 // अंशांशितायामपिचभेदोजीवेशयोयदि // अंशांशितानोपपत्राभिन्नत्वात्स्तम्भकुम्भवत् // 92 // किंचभेदंसमाश्रित्यतत्त्वमित्यत्रवाक्यके॥ तस्यत्वमितिमाध्वोऽसौसमासंपाहसादरम् // 93 // समासोनैवयुक्तोऽयंयुष्मदर्थविशेष्यकः॥समासेऽपिच For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 6 // किंवात्रविधेयं ब्रूहिसादरम् // 94 // षष्ट्यर्थश्चेत्समासेषुतादृग्बोधोनयुक्तिमान् // ||| सा० अस्यर्थश्चेदपूर्वत्वंनतस्यास्तीतिसंस्मर // 95 // तदित्यव्ययनिर्देशःषष्ठ्यर्थेचेनयुक्तिमान् // निषादस्थपतिन्यायविरोधात्प्रथमाततः // 96 // सआत्मातत्त्वमित्यत्रनाश्छेदोनसाम्प्रतः // प्रक्रान्तआत्माकथितस्तनिवेत्वनात्मता // 97 // सादृश्यंनसमस्तस्यनञोऽर्थःस्यात्तथैवचेत् // अचन्द्रंमुखमित्यत्रनसादृश्यंप्रतीयते // // 98 // अगौरितिपदाद्यद्गोभिन्नोगोसम्भवेत् // अतदित्यत्रतद्वत्स्यादितिचेदचनैरलम् // 99 // भेदएवहिवाक्यार्थोनसादृश्यंतथापिहि॥ अनात्मत्वेतुजीवस्यवाक्यमेतद्वथाभवेत् // 300 // अनात्माबोधयोग्यश्चकुत्रदृष्टस्त्वयावद ॥अस्त्यध्याहारपक्षेऽपिवाक्यभेदोऽपिगौरवम् // 1 // तस्मादात्मानमेवावेदहंब्रह्मेतिवाक्यतः। विरोधात्सर्वविज्ञानविरोधादेक्यमेवहि // 2 // वाक्यार्थोवर्णनीयस्तेनभेदस्तुकथञ्चन // एकविज्ञानतःसर्वविज्ञानप्रकृतंततः // 3 // तत्रप्रकरणेभेदकथानैवोप || // 16 // For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युज्यते // जडानामीश्वराभेदमुररीकुरुषेनवा // 4 // द्वितीयंभेदनिन्दाया श्रुतत्वानहियुज्यते // आयेमुख्यममुख्यंवाऽअदमंगीकरोषिहि // 5 // मुख्यंचेच्चिवमेतत्यज्जडाभेदकश्चिति // बाधायाञ्चद्भेदहेतुर्नवास्तविकतामियात् // 6 // कथंजीवेशयोर्भेदोवास्तवःस्यादिचारय // वास्तवत्वेनिष्फलं स्यात्सतःसत्यविशेषणम् // 7 // अतोविश्वमृषात्वाययुक्तंसत्यविशेषणम् // दृष्टान्तमृत्तिकेत्येव सत्यमित्युक्तमित्यतः // 8 // दान्तिकेप्यधिष्ठानेयुक्तंसत्यविशेषणम् // भेदहेतो षात्वेनभेदोऽपिचमृषाभवेत् // दुःखीजीवःकथंब्रह्मेतिचेहिष्णुर्यथातव // 9 // || वृन्दासीतावियोगाभ्यांदुःखित्वंश्रूयतेबहु // तन्मिथ्याचेदिदंमिथ्याकुतोनभविता वद // अनयैवदिशाविज्ञःकर्तृत्वादिविचारयेत् // 310 // अन्तर्नियन्तासर्वेशःकथं जीवोभवेदिति // नाशंक्यंनिष्प्रदेशान्तःस्थितेनियमनस्यच // 11 // असंभवादतोजीवोपाधेरन्तर्नियामकः॥ आकाशान्तर्नियंतृत्वकार्यत्वात्सम्भवेद्यथा॥१२॥ For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 17 // घटेमृत्तवापिनजीवेकार्यतानहि // कार्यत्वेनास्तिकमतप्रविष्टस्त्वंविभासिमे // 13 // || सा० प्रच्छन्नबौडाइतिचवृथालोकान्विनिन्दसि // अतोजीवेशयोःदेनकश्चिद्वेतुरस्तिहि // // 14 // जडानामीशभेदश्चेत्सर्वज्ञानंनसिध्यति // सत्यंभिदेतिवाक्यंतनिर्मूलंधूर्तकल्पितम् // 315 // लब्धंचेदपिकुत्रापिनास्माकंकापिचक्षतिः // ब्रह्मैवसत्यशब्दार्थःसत्यंज्ञानमितिश्रुतेः // 16 // तदभेदोभिदायाश्वसर्वब्रह्मेतिवद्भवेत् // ईश्वरोऽहमहंभोगीसिहोऽहंबलवान्सुखी // 17 // इत्यादिवचनैःस्मार्तानासुरान्मन्यतेऽधमः // ईखरोऽहमितिप्रज्ञावतामासुरतायदि ॥१८॥जीवंवास्तवभोक्तारंमन्वानस्यापितद्भवेत् // ईखरोहमितिप्रज्ञावतीशेऽपितदापतेव ॥१९॥ईशस्ययुक्तंजीवानामयुक्ततत्कथंनुतव // जीवेश्वरैक्यमेतावदुक्तंकिनश्रुतंत्वया // २०॥लौकिकेश्वरताहन्तानिषेधुंवचनंहितत् // 21 // त्वामात्मानंपरंमत्वापरमात्मानमेवच // आत्मा-|| प" मारमा // 17 // पुनर्बहिर्मग्यअहोऽज्ञजनताज्ञता // इत्थंब्रह्मापीशभेदमन्वानंधिक्करोतिहि // 22 // For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यसर्वाणिचनामानिबोधयन्तीतिमध्वकः।। स्वीकृत्यनानाशक्तित्वंस्वीकरोतिहिशब्दके॥ 23 // ईशसर्वात्मतायान्तुकस्माद्वेषोनविद्महे ॥आनन्दमात्रावयवोऽनवद्यगुणसागरः // 24 // स्वगतेनचभेदेनवर्जितःपरमेश्वरः॥ ब्रह्मावायुश्चतस्यैवप्रतिबिंबीपुमाकृती // 25 // रमापियोषिदाकारःप्रतिबिंबोहरेरिति॥तारतम्यप्रक्रियायाम्बुबन्मध्वोत्रटच्छयते ॥२६॥आनन्दावयवत्वेतुकथंनोनाशिताभवेत् // यद्यत्साक्यवंवस्तुतत्तवाशीतिनिर्णयात् // 27 // नोचेन्नित्यत्वमस्माकंकोनिवारयितुंक्षमः॥ अस्मनित्यत्वमिष्टंचेकिमीशेनकृतंतव // 28 // किंचस्वगतभेदेनवर्जितत्वंतुदुःशकम् ॥अभेदोऽवयवानांचाथवावयवशून्यता॥२९॥कोऽर्थःस्वमतभेदेनवर्जितत्वस्यतेमते॥आयेहस्तक्रियापादेने।पादक्रियातथा॥३३०॥एवंसर्वक्रियाकर्ताप्रत्येकाव पवोभवेत् // तदनेकत्वक्लप्तिस्तुव्यर्थास्यान्मध्वबुद्धिमन् // 31 // यथास्यापानयोरेक्यंदिवसान्धपतत्रिषु // हस्तत्वादिस्वरूपेणभेदश्चेत्केनभिन्नता // 32 // आ For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 18 // नन्दत्वेनचेल्लोकेपार्थिवत्वेनभिन्नता // नदृष्टातःकोविशेषोविष्णोःस्वाभेदसंश्रये ॥सा० // 33 // अथावयवशून्यत्वेप्रतिज्ञाहानिमाश्रय॥ब्रह्मावायूरमाचेतिप्रतिबिंबाइतिब्रुवन् // 34 // वदतुक्कत्वयादृष्टःप्रतिबिंबोऽयमीदृशः॥ बिंबानुरूपतादृष्टातर्खेवप्र(तिबिम्बता // 35 // वचनानांबलाच्चेत्कियूपआदित्यतामियात् // यावत्स्याद्विम्बसानिध्यन्तावत्तुप्रतिबिम्बकः // 36 // प्रतिक्षणव्याटतानाम्ब्रह्मादीनांप्रतिक्षणम् // विष्णुविश्लेषतोनाशःप्रतिक्षणमहोभवेत् ॥३७॥व्यापकत्वानविश्लेषइतिचेदिहदर्पणे // प्रतिबिम्बस्त्वयाकेनहेतुनाविनिवार्यते // 38 // मुक्तावप्येवमेवैतेब्रह्माद्यास्तारतम्यतः // तिचंतितवसिद्धान्तेमुक्तयाकिन्तैःसमर्जितम् ॥३९॥दुःखहेतौतारतम्येकथंतेसुखभागिनः // निष्कामत्वान्मुक्तयवस्थानतेषांदुःखकारणम् // // 40 // इतिचेत्प्राङ्मुक्तितस्तेस्युस्तुल्याअस्मदादिभिः // मुक्तावदुःखहेतुत्वात्तार-|| तम्यंथेष्यते // 41 // सूक्ष्मचिदचिदिशिष्टंब्रह्मस्थूलचिदचिदिशिष्टंब्रह्मजगव // // 18 // For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूक्ष्मचिचितोर्ब्रह्मशरीरत्वाद्ब्रह्माभेदोवास्तवः // 342 // इत्थंस्थूलयोरपिब्रह्मादः। अणुश्चिद्रपोजीवः // ब्रह्मशरीरत्वाद्ब्रह्माभिन्नःस्वरूपस्वभाववैलक्षण्यादिनाश्चैते इतिरामानुज पाहतत्रैतच्चविचार्यते // सर्वज्ञचितासूक्ष्मेचिदचितौअभिनेइतिवदताऽ चिच्छब्दश्चिच्छब्दोवाकथंप्रयुज्यतेचिदभेदेऽचित्त्वाभावादचिदभेदेचित्त्वा भावाच // प्रकाशतमसोरिवाभेदासम्भवाच्च // अभेदेऽपिकारणत्वासम्भवाद् तथाहि सूक्ष्मचिदचिदिशिष्टंब्रह्मजगत्कारणमितिवदतासूक्ष्म चिदचितोर्जगत्कारणतावच्छेदकत्वमंगीकृतंतत्रप्राथमिकमहत्तत्त्वपरिणामेमूक्ष्मत्वापगमावकारणतावच्छेदकरूपा भावात्कारणाभावादुत्तरपरिणामोनस्यात् // चिदचिदनुवृत्तिवत्सूक्ष्मत्वस्याप्यनुवृत्तावुत्तरोत्तरकार्यस्थूलत्वासम्भवात्स्थूलचिदचिदात्मजगदित्युक्ति संगच्छेत // तत्रस्थूलत्वासम्भवात् // नचापेक्षिकंसूक्ष्मत्वंस्थूलत्वंचसमादायोत्तरोत्तरकारणतामिर्वोदशक्याचरमकार्येब्रह्मवासम्भवात्सर्वब्रह्मेतिवाक्यविरोधः // निरपेक्षमू For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 19 // क्ष्मत्वेनसापेक्षसूक्ष्मत्वस्यविरोधात्तत्सामानाधिकरण्येनतदुत्पत्तेरसम्भवात् // किं- सा० चसापेक्षसूक्ष्मत्वस्यापिकार्यत्वानिरपेक्षसूक्ष्मत्वानुप्रवेशस्यतत्रासम्भवात्सापेक्षसूक्ष्मत्वोत्पत्तिरेवनस्यात् // तदभावेचतत्सामानाधिकरण्येनस्थूलत्वानुत्पत्तेजंगदनुपपनस्यात् // किंचावयवोपचयंविनाप्राग्विद्यमानैरेवावयवैःस्थूलत्वासम्भवात्स्वकारणावयवातिरिक्तावयवासम्भवाज्जगदनुपपन्नमेव // किंचचिज्जडब्रह्मवादिमतेऽचिदंशस्यैवपरिणामाज्जगत्कारणत्वंछत्रिन्यायेनसमुदायेगौपचारिकमापतेव // आपनेचमुख्यकारणत्वंप्रकृतिशब्दवाच्येऽचिदंशेएवपर्यवसनम् // पर्यवसनेचसांख्यमतादविशेष अविशेषेचईक्षणाद्यसंभवाज्जगत्कारणत्वानुपपत्तिः // अनुपपन्नेचछत्रिन्यायेनाप्युपचाराभावाद्ब्रह्मत्वासंभवः // यदिशक्तित्वार्थभिनासत्तानांगीकरोषितर्हिप्रकृतिब्रह्मशक्तिरितिवदताब्रह्मत्वंचिदंशेएवांगीकृतंतत्रचिदभिनायाः | शक्तरचित्त्वासंभवादचितःस्तंभकुंभादिवच्छक्तित्वासंभवात्केवलचिद्रूपत्वेस्वस्यस्वश // 19 // For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्तित्वायोगाच्चानिर्वचनीयामायेयमेवेतिस्वस्यापिमायावादित्वादन्यान्यथार्थवक्तन्विनिन्दन्कुतोनलज्जतिभवान् // किंचजीवोपाधेःस्थूलस्यसर्वब्रह्मेतिवाक्यसमन्वयायमुख्याभेदमंगीकुर्वतास्थूलचिदचितोरप्यभेदांगीकाराज्जीवब्रह्मैक्यंकुतोनस्वी क्रियतेस्वीकृतेचनित्यमुक्तत्वादीश्वरस्यतदभेदाज्जीवस्यापिनित्यमुक्तत्वावधमिथ्यात्वंप्रसज्येत // प्रसक्तेविश्वमिथ्यात्वंविनातदनुपपत्तिः // अनुपपनत्वाहिश्वमिथ्यात्वांगीकारेस्वमतादत्यंतंप्रच्युतोभवान् // किंचस्थूलचिदचितोर्ब्रह्माभेदइत्यत्रस्थूल विशेषणंचिदंशेवाऽचिदंशेवोभयत्रवासमन्वियात् // चिदंशेवोभयत्रवानसम्भवतिपक्षद्वयेपिचिदंशेविकारापत्त्याजडत्वाज्जगदान्ध्यप्रसंगः॥ अचिदंशेचेदप्यविकृतमूक्ष्म|चितोजीवस्येवरस्यवाविकृतस्थूलाभेदस्याध्यासंविनानुपपन्नत्वान्मुख्याभेदोदूरनिर|स्तः // सूक्ष्माचिदंशस्यापिविकारिणोविकृतचिदभेदोमुख्योनुपपन्नः // अनुपपन्ने देऽभेदेचानिर्वचनीयख्यातिःसुस्थिरा // किंचसर्वाणिनामानिचेतनस्यैवाचेतनेषु For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स० सा० // 20 // // 20 // दहादिषुगौणानीतिवदतोदाशरथिरित्यादौचेतनेऽपत्यत्वस्यजन्यत्वव्याप्यस्यानुपपत्तिः // तदुपपत्त्यर्थजन्यत्वांगीकारेनास्तिकमतप्रवेशः // देहगतंजन्यवंआत्मन्यध्यस्ययदिशब्दप्रवृत्तिस्तदागौणत्वंगलेपतितम् // चैत्रादिशब्दानांचैत्राद्यात्मन्येवमुख्यवृत्तिस्वीकुर्वतोद्वितीयचैत्रशब्दार्थआत्मोतान्यः / अन्यश्चेच्चेतननामतानस्यात् आत्माचेद्देवदत्तादिपर्यायतापत्तिः॥चैत्रदेहायुपलक्षितश्चेदत्रापिचैत्रदेहशब्दयोरात्म नैवार्थवत्त्वानदेहोपस्थितिः // देहशब्दस्यदेहेएववृत्त्यंगीकारेपिदेहत्वेनयावदेहानामु पलक्षणत्वेनपुनःपर्यायतापत्तिःचैत्रशब्दवैयर्थ्यापत्तिश्च // चैत्रोहंजानामीतिप्रतीत्यादेहात्मनोरभेदांगीकारप्रयासोनिष्फल चैत्राहंशब्दयोरात्मनैकार्थ्याद // देहवा|चित्वेवभेदहाराशब्दप्रवृत्तेर्गौणता // परिणाम्यपरिणामिनोस्तिवाभेदासंभवादाध्यासिकास वास्तवाभेदांगीकारेदेहनाशेऽनात्मत्वप्रसंगात् // चिदंशपरिशेषेपितस्य मात्मतास्यात् // तवचिदचिदात्मवादित्वात् // कस्यचिज्जडांशस्यपरिशेषेपिआंशि For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनाशस्यदुर्वारत्वात् // यस्मिन्देशेदेह पतेत्तत्रैवतिष्ठेघवघटस्तवमृहत् // शुद्धचि दंशस्यैवात्मतांगीकारेचैत्रोहंजानामीत्यादिप्रतीतिसहस्रेणाप्योदोदुःसाधः // चैबोहंमरिष्यामीतिप्रतीत्याऽऽत्मनाशोप्यंगीकृतःस्यात् // गतंतववैकुंठगमनमुपासनाफलम् // ननुशरीरशरीरिणोःस्वरूपस्वभाववैलक्षण्या दोपितेनभवे लोकान्तरगमनमितिचेन // भेदाभेदयोरन्यतरस्यावास्तवत्वापत्तेः // वास्तवत्वेन्यतरबुद्धिरन्यतरबुद्धिप्रतिबन्नीयात् // अप्रतिबन्धकत्वेसर्वत्रसर्वबुद्धिप्रसंगः // यथाशरीरशरीरिणो:देसत्यप्यभेदमंगीकरोषितथाघटपदयोरप्यभेदेकिंप्रतिबंधकंतब भवेत् // यथाप्रतीतितदंगीकारइतिचेकिमयुक्तास्यान्मेरुःसर्षपइतिप्रतीतिः॥किंच भेदाभेदयोःप्रतियोग्यभावरूपयो सामानाधिकरण्येवटघटाभावयोरपिसामानाधिकरण्यस्यात् // किंचसर्वेशब्दा-प्रकृतिप्रत्यययोगेनाभिधायकतयाप्रसिद्धालोकेतत्तद्याच्यतयामतीयमानतत्तसंस्थानवहस्तुमुखेनतदभिमानिजीवतदंतर्यामिपर्यतसंघा For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 2 // |तस्यवाचकाइत्यपिवदताशब्दशक्तिपर्याप्तिःकिंदेहजीवपरमात्मसमुदायेउतप्रत्येकस्मि- सा० नअथवाऽन्यतमेअथवान्यतमेष्वेकस्मिन्एकस्मिन्नपिकिंदेहेउतजीवेऽथांतर्यामिणि // आयेतत्तद्वाच्यतयेत्यसंगतंआद्यपक्षत्रयेतत्तत्संस्थानववस्तुमुखेनेत्यसंगतम् // चतुर्थे| शक्यतावच्छेदकाभाववाचकत्वापत्तिः // चित्रमेतदन्यशक्त्यान्यप्रतीतिरिति // परमात्मवाचित्वेदेहजीवयोःशब्दादप्रतीत्यापत्तिःदेहजीवान्यतरवाचकत्वपक्षेपिस्वेतरान्यतरप्रतीत्यनापत्तिः // देहादीनांप्रकारत्वेकृष्णश्चैत्रइत्यादौएकदेशान्वयापत्तिः॥ जीव संसारीत्यत्रजीवशब्दस्यजीवान्तर्यामिवाचकत्वेनपरमात्मनिसंसारित्वप्रतीत्यापत्तिः // अन्यथाएकदेशान्वयापत्तिरुक्तैव // जीवशब्देंतर्यामिविनिर्मोकेणशक्यंगीकारेसर्वेशब्दाःपरमात्मवाचकाइतिप्रतिज्ञाहानिः // लक्षणापक्षेत्खनन्तस्थललक्षणा|पेक्षयापरमात्मनिशक्तित्यागएवयुक्तः // अतश्चैत्रादिशब्दानांदेहएवजीवशब्दस्यभो // // 21 // तृचैतन्यएवघटादिशब्दानांतत्तत्संस्थानेएवपरमात्मादिशब्दानांपरमात्मन्येवशक्ति For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युक्ता। किञ्चजीवस्यब्रह्मशरीरतयाब्रह्मात्मत्वंवदतातत्त्वमसीत्यत्रतत्पदंनिरस्तसमस्तदोषमनवधिकातिशयासंख्येयकल्याणगुणास्पदंजगदुदयविभवलयलीलंब्रह्मप्रतिपादयति // समानाधिकरणंत्वंपदंचाचिदिशिष्टंजीवशरीरंब्रह्माचष्टेइतिपदद्दयार्थनिर्णीय|| प्रकारदयविशिष्टैकपरत्वात्सामानाधिकरण्यस्येतिजीवान्तर्यामिब्रह्मणोजगत्कारणबह्माभेदाकथितस्तन्मन्दप्रज्ञरमणीयम् // लंपदस्यजीवान्तर्यामिवाचकत्वाभावात् // अन्यथावंमूर्खइत्यादौब्रह्मणोमूर्खत्वापत्तेः // अन्तर्यामिण सम्बोध्यत्वाभावादसि-|| पदासंगत्यापत्तेः // खेतकेतुजीवस्यैवसम्बोध्यत्वात् // किञ्चशरीरशरीरिणोरभेदवादिनःकिंपतिबन्धकंतत्त्वमसीत्यत्रैवजीवब्रह्मैक्यबोधे // किञ्चनिखयवचिद्रूपस्यजीवस्यान्तःप्रदेशासम्भवात्तदन्तर्यामित्वंब्रह्मणोनसंगच्छते // प्रदेशवयेवपदार्थान्तरपवेशसम्भवात् // अंतर्यामित्वेपिनजीवशरीरत्वंब्रह्मणः // यथानमणिशरीरत्वंमाला||सूत्रस्य // किञ्चतत्त्वमसीत्युपदेशवाक्यंउपदेशोह्यज्ञाननिवृत्तयेभवतिनाज्ञानब्रह्मणि|| For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 22 // त्वयाभ्युपगम्यतेयेनायमुपदेशःसफलीक्रियेत // नापिजीवेभावरूपमज्ञानमंगीक्रिय-|| || सा० तिनाभावरूपमज्ञानंसंभवतिज्ञानवतिज्ञानाभावायोगात् // नचोत्पन्नज्ञानवत्त्वेनाभाव उपपादयितुंशक्यः // नहिज्ञानरूपआत्माज्ञानान्तरमपेक्षेतविषयंप्रकाशयितुंयथा नदीपोदीपान्तरम् // यदिखरूपज्ञानस्यदीपस्यवाविषयप्रकाशनसामर्थ्याभावःतर्हि तन्नज्ञानेनापिदीपः॥ किञ्चात्मसमवेतंज्ञानंज्ञानांतरसापेक्षंविषयप्रकाशनाक्षमवाज्ञानवादात्मज्ञानवदित्यनुमानेनानवस्थाजगदाध्ययो प्रसंगात् // विषयप्रकाशक्षमत्वेनज्ञानांतरापेक्षाज्ञानांतरापेक्षवेविषयप्रकाशाक्षमत्वमित्यन्योन्यविरोधाज्ज्ञानरूपत्वं ज्ञानवत्त्वंचनसिध्येत्तस्माद्भावरूपमज्ञानज्ञानसामान्याविरोधिप्रमाबाध्यंखकार्यपरीक्षाबाध्यवाजीवेस्तीतिभवतेष्टव्यम् // तस्यैवतत्त्वमसीत्युपदेशः // तदैवतत्त्वावेदक वेदांतशास्त्रसाफल्यम् // नह्यज्ञाननिवृत्तिमंतरेणभूतार्थवेदनस्पकिञ्चित्प्रयोजनंसंभ // 22 // कति / किञ्चचिद्रमाणांजीवात्ममामसंकुचितापरिच्छिन्ननिर्मलज्ञानरूपाणामनादि-|| For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मरूपाविद्यावेष्टितानांतत्तत्कर्मानुरूपज्ञानसंकोचविकासौइत्युक्तंतत्रस्वरूप तज्ञाने ऽसंकुचितापरिछिन्नेतिविशेषणाभ्यांविभुत्वंनित्यत्वंचांगीकृतंतच्चआराममात्र पुरुषएषोणुरात्माचेतसावेदितव्य बालाग्रशतभागस्यत्यादिश्रुतिभिरणुजीवांगीकारेणविरुध्यते // नह्यणुर्जीवोऽसंकुचितापरिछिन्नज्ञानरूपोभवितुंयुक्तः // किंचयदविद्यायाः कर्मरूपत्वमुच्यतेतदपिनयुज्यते // नहिशुक्तिसाक्षात्कारस्यशुक्त्यावरककर्मनाशकवंयुज्यते // अप्रायश्चित्तत्वात् // तदंगीकारेपिनयावज्ज्ञानंसंभवतियेनयावदविद्यानाशःस्यात् ॥पदार्थानामानंत्यात् // अनिर्मोक्षप्रसंगः॥ नापिज्ञानसंकोचविकासावुपपद्यते॥परिणामित्वेनजडत्वप्रसंगात् // किञ्चमायांतुप्रकृतिविद्यादजामेकामित्यादिनामायाप्रकृत्यजाशब्दवाच्यस्यपरास्यशक्तिर्विविधैवश्रूयतइतिश्रुत्याशक्तित्वमंगीकृत्यापिब्रह्मशरीरत्वमुच्यते // तदसत् // नहिवन्हिशक्तेर्वन्हिशरीरत्वंदृष्टम् // अ| स्तुवाशरीरंतथापिब्रह्मापिस्वशरीरभूतंप्रधानंतथातथापरिणमय्यवस्वभावमजहदेव || || For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 23 // तत्रतत्रवर्तमानंसत्तांतांसंज्ञालभतइत्युक्तंनसंगच्छते // ब्रह्मशरीरसूक्ष्माचिडाचक-सा० प्रधानशब्दस्यब्रह्मण्येवमुख्यतयाप्रवृत्तत्वात्परिणामस्यापितत्रैवमुख्यतयाप्रतीत्यापत्यास्वस्वभावमजहदित्ययुक्तस्यात् // नहिपरिणममानंकूटस्थमजडंवादृष्टचरम् // स्वस्वभावमित्यत्रैकःस्वशब्दोधिकः // अन्यत्रपरिणामांगीकारेपिकार्याणांस्खोपादाने एवाभेदानचिवस्तुनिब्रह्मणि // ब्रह्मशरीरत्वाद्ब्रह्माभेदइतिचेच्छरीरंशरीरीचेतिवस्तुह यएकंवा // आद्यवस्तुद्वयमभेदश्चेतिविरुद्धम् // द्वितीयेचिदचिदीश्वररूपतत्त्वत्रयगणनाप्रतिपक्षीभवेत् // चिदचितोरीश्वरशरीरत्वात्तदभेदेनेश्वरकतत्त्वापत्तेः // किश्चा नभनन्योअभिचाकशीतीतिमन्त्रवर्णादक्षोभोंगोपाधिभूतशरीरकल्पनायाअयुक्तखाद // यस्यात्माशरीरमित्यादितूपासनार्थमितिमन्तव्यम् // यत्तुरंगाचार्येणसर्व | स्यजगतोब्रह्मशरीरत्वाच्छरीवाचकानांशरीरिण्येवमुख्यतयाप्रवृत्तिदर्शनात्सर्वखल्वि | |तिसामानाधिकरण्यनिर्देशोयुक्तइत्युक्त्वाग्रेसूक्ष्मचिदचिदिशिष्टब्रह्मरुपकारणवाचि // 23 // For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मपदेनस्थूलचिदचिद्विशिष्टब्रह्मरूपकार्यवाचिसर्वपदस्यसामानाधिकरण्यकार्यकारणयोरभेदबोधकंमुख्यमेवोपपन्नतरमित्युक्तंतत्तुरंगहेषणंनतुमानुषभाषणम् // कार्य कारणयोरभेदेशरीवाचकानांशरीरिणिमुख्यप्रवृत्तिदर्शनहेतुकथनासामंजस्यात् // तादृशशब्दप्रवृत्त्यापिस्थूलचिदचिदिशिष्टब्रह्मणः सूक्ष्मचिदचिदिशिष्टब्रह्माभेदोबुद्धः स्यानतुकार्यप्रपंचस्यब्रह्माभेदःसिध्येत् // तच्छरीरत्वात्तदभेदइतिचेत्कार्यकारणयोरभेदबोधकमितिकथनंनयुक्ततामर्हति। किञ्चस्थूलचिदचिहिशिष्टब्रह्मणएवप्रपंचत्वादि त्युक्तंतत्रकिनामब्रह्मत्वंसर्वज्ञचित्वंउतमूक्ष्मचिदचिदिशिष्टताशचित्त्वंअथवास्थूलत||विशिष्टतादृशचित्त्वम् // आयेनतस्यकार्यत्वंसिद्धत्वावअविकारित्वात् // द्वितीये स्थूलतहिशिष्टेऽव्याप्तेःतृतीयेमूक्ष्मतदिशिष्टेअव्याप्तेः // किंचसयंज्ञानमनंतंब्रह्मेति लक्षणवाक्येनमूक्ष्मचिदचितोर्विशेषणतागम्यतेयेनतहिशिष्टेब्रह्मतात्वन्मतास्यात् // नहिशब्दादप्रतीयमानवैशिष्टयंवक्तुंशक्यम् // विशिष्टेब्रह्मत्वेपिकार्यावस्थायांब्रह्म For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० विशेषणेचिदचिदंशेसूक्ष्मत्वाभावेनब्रह्मपदेनान्वयितावच्छेदकरूपेणानुपस्थितेःसर्वब-|| ।सा ह्मेतिवाक्यमनन्वितंतवभवेत् // सुवर्णकुंडलमित्यादौकुण्डलावस्थायामपिसुवर्ण-|| // 24 // वस्यान्वयितावच्छेदकस्यसत्त्वादन्वयोपपत्तिः // दुग्धंदधीत्यत्रदुग्धत्वोपलक्षितंद्र व्यंदुग्धशब्दार्थः // इत्थंमूक्ष्मचिदचितोरुपलक्षणत्वेसर्वज्ञचैतन्यस्यैवकारणत्वादिकारापत्तिः // यत्तुरंगाचार्यःजगद्ब्रह्मणोःशरीरशरीरिक्षावेदेवावब्रह्मणोरूपेमूर्तचामूतचेतिश्रुतिमाहतदयुक्तम् // ब्रह्मत्वसामानाधिकरण्येनमूर्तत्वामूर्तत्वयोर्विधानाद्धस्यदृरूपेपूतिःसुरभिश्चेतिवाक्यानंधदैविध्यवद्ब्रह्मदविध्यापत्तेः // नत्वन्यतरस्यमिथ्यात्वंत्वदिष्टयेनैकमेवाद्वितीयमित्यविरुद्धस्यात् // यत्तुजडभागस्यमिथ्याभूतस्यसर्वशब्दार्थत्वेब्रह्मस्वरूपतादात्म्यासम्भवइत्युक्तंतन // चोरस्थाणुन्यायेनतसम्भवात् // यत्तुयावत्कृत्स्नंब्रह्मात्मकमितिवेदांतार्थज्ञानसम्यङ्गजायतेतावविशेष- || // 24 // णेष्वेवमुख्यवृत्तिरितितत्तुच्छम् ॥सम्यग्ज्ञानोत्तरंशक्तिग्रहस्तदुत्तरंसर्वब्रह्मेतिवाक्या For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थबोधात्सम्यग्ज्ञानमित्यन्योन्याश्रयात् // यत्तुजगद्व्यापारवर्जमितिबादरायणसूत्रमवलंब्यमोक्षदशायामपिव्यापाराव्यापाराभ्यांजीवब्रह्मणोइँदंतेतन // जग यापारकर्तृतावच्छेदकंब्रह्मत्वंनजीवन्मुक्तत्वमितितदर्थसंभवात् // यत्तुसत्यसंकल्पादिगुणकतयाननिर्गुणंब्रह्मेतितन // जगत्सत्यत्वेएवतदुपपत्त्यातदभावात्तदभावः // यत्तुकेवलवाक्यार्थज्ञाननमोक्षोपायः सहसैवमोक्षप्रसंगाकिंतूपासनाकर्मसहितमिति तन्न॥वाक्यार्थज्ञानेनाज्ञानेनिवृत्तेमोक्षेकिंप्रतिबंधकंभवेत् ॥नहिवाक्याद्रज्ज्वधिगमसर्पभयनिवृत्तौकिंचित्प्रतिबंधकंदृष्टचरं॥देहात्मनोरभेदवादित्वान्नास्तिकाग्रेसरचक्रवर्तिनश्चक्रीवतोमतमनादेयतरातस्मादेतन्मतंविहायकेवलकापिलप्रवेशेपिननिस्तारः।। तत्रजगत्कारणंप्रकृतिरितिस्थितं॥तत्रप्रकृतिशब्दस्यकारणवाचित्वात्स्वातिरिक्तकार्य|संभवात्स्वस्यस्वकारणत्वायोगात्स्वस्यान्यस्यवाकारणमितिविकल्पासहिष्णुत्वात्प्रकृतिशब्दोनुपपन्नः॥अप्रकृतौजगत्कारणत्वमनुपपन्नमेव॥प्रधानशब्दवाच्यत्वमप्यप्रक For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेरेवस्यात् // किंचगुणत्रयसाम्यावस्थाया प्रकृतित्वांगीकाराहिकृत्यवस्थायांप्रकृति- सा० // त्वाभावात्प्रकृतिविकृत्योरभेदइत्ययुक्तस्यात्।कपालावस्थायांपिंडावस्थायाइवोत्तरो|त्तरपरिणामेपूर्वावस्थायानाशेपंचविंशतित्वंतत्त्वानामसमंजसंस्यात्॥माध्यमिकपरिणामैःसंख्यापूर्तिश्चद्भवेत्संख्यापूर्ति तूपलभ्येरन्॥प्रकृतेःसावयवत्वेनयत्किंचिदवच्छे देनयत्किञ्चित्परिणामेमहदादीनांप्रकृतिविकृतित्वंदुर्निरूपं।पूर्वावस्थामविनाश्यैवोत्तरकार्यागीकारेऽयमेवविवर्त्तइत्यलंपल्लवीभावेनवाचां // वितर्तपक्षेतुसर्वस्याध्यासिक| त्वेनाध्यस्तस्याधिष्ठानैकरस्येनैकरसेप्रमाणप्रमेयकार्यकारणादिव्यवहारस्यसुतरामनुपपन्नत्वादनुपपनस्यजगतआत्मनःस्वप्रकाशस्यवाचिंतायाअयुक्तत्वान्नैश्चित्यमेवविवेकसिद्धपरमब्रह्मनिष्ठांमन्यतेब्रह्मवादिनः // अध्यस्तस्यजगतोधिष्ठानातिरेकेणसत्वासंभवादध्यासस्यात्मनोन्यत्रासंभवादेतदुभयविज्ञानेनात्मैकत्वविज्ञानेनित्यमुक्तत्वमि-|| // 25 // त्यत्रश्रुतिस्मृतीरुदाहरामः॥सर्वभूतस्थमात्मानंसर्वभूतानिचात्मनि / संपश्यन्ब्रह्म For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमंयातिनान्येनहेतुना // यस्तुसर्वाणिभूतान्यात्मन्येवानुपश्यति। सर्वभूतेषुचात्मानंततोनविजुगुप्सते॥यस्मिन्सर्वाणिभूतान्यात्मैवाभूदिजानतः / तत्रकोमोह कः शोकएकत्वमनुपश्यतः॥ सर्वभूतस्थमात्मानंसर्वभूतानिचात्मनि / ईक्षतेयोगयुक्तात्मासर्वत्रसमदर्शनः // योमांपश्यतिसर्वत्रसर्वचमयिपश्यति / तस्याहंनप्रणश्यामि सचमेनप्रणश्यति ॥सर्वभूतस्थमात्मानंसर्वभूतानिचात्मनि / संपश्यन्नात्मयाजीवै स्वाराज्यमधिगच्छतीति // अध्यस्तस्यजगतोधिष्ठानसन्मात्रत्वेनजलंतरंगेणरज्जुर्भुजंगेनसूर्यकिरणाःकुरंगजलेनेवनस्पृश्यतेअधिष्टानसन्मात्रआत्माजगता // अतएवासंगोह्ययंपुरुषइतिश्रुतिः॥नित्यासंगत्वेननित्यमुक्तेपरमात्मनिजीवन्मुक्तिविदेहमुक्तीभ्र मासचज्ञानपरिपाकतारतम्येनविभातितचज्ञानंप्रमाणप्रमेयादिव्यवहारासंभवादध्यस्तत्वेनाध्यस्तस्याविद्यामयत्वेनाविद्यायाःस्वप्रकाशचिदेकरसेऽहमितिप्रथमानेनावृते|ऽसंभवात्स्वातिरिक्तस्यकस्यचिदप्यसंभवादहमेवाहमितिसहजविश्रांतिः // तत्साध For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 26 // नचनिखिलवेदबीजस्ययावहाक्प्रपंचसारस्यतारस्यार्थविचारः यदिचारेणयावंतोवेदा सा० विचारिताभवंतियदध्ययनेनाधीताभवंतियज्जपेनजप्ताभवंतियेनप्राणवंतोभवंतियदनुसंधानेनयतयोंतेमुक्तामवंतियज्जपमात्रेणब्रह्मलोकमारोहंतियदुपासनयासर्वेप्युपा-||॥२६॥ सिताभवंतियन्माहात्म्यवर्णनेशेषप्रभृतयोविकुंठिताभवंतियदर्थविचारेणबुद्धिमन्तो मुक्तास्तिष्ठति // तदर्थस्तु अखंडैकरसंब्रह्मैव // तत्रप्रणवस्यचत्वारिपदानिताएव मात्राउच्यतेतत्रप्रथममात्रायाविश्वविरादशब्दवाच्योनिखिलःस्थूलप्रपंचस्तद्रष्टाचा थः // द्वितीयमात्रायास्तैजसहिरण्यगर्भशब्दवाच्यःस्वाप्नःसूक्ष्मःप्रपंचोद्रष्टाचार्थः॥ तृतीयमात्रायाअव्याकृतशब्दवाच्यमूलाविद्यातदनुभविताचार्थः // अर्धमात्रारूपस्योंकारस्यनांतःप्रज्ञमित्यादिनिषिद्धसकलविशेषमहमितिसामान्यतःप्रथमानमनुभवमात्रंतुरीयमर्थः // अनुभूयमानस्यांतःप्रज्ञत्वादेर्निषेधेप्यात्मानुभवस्यनिषेधायोगाव // तत्रस्थूलप्रपंचस्यप्रथममात्रार्थस्यद्वितीयमात्रार्थेसूक्ष्मेप्रातिभासिकेऽभेदेना For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न्वयातस्यद्रष्टापिविश्वःसूक्ष्मद्रष्टरितैजसेऽभेदेनान्वेति // सूक्ष्मस्यप्रातिमासिकस्य सौषुप्तेमूलाज्ञानेऽभेदान्वयःतैजसस्यापिमूलाविद्यानुभवितरिप्राज्ञेभेदेन // सौषुप्तमूलाविद्यायाश्चनांतः प्रज्ञमित्यादिलक्षितेतुरीयेबाधसामानाधिकरण्येनतत्रैवप्राज्ञस्य मुख्यसामानाधिकरण्येन // स्थूलस्यस्वाप्नाभेदेनप्रातिभासिकत्वापादनेनप्रातिभासिकस्याविद्यामयत्वेनाविद्यायाःएकरसेब्रह्मणिकथमप्यसंभवादसंभवाविद्यस्वप्रकाशतुरीयाभेदेनावस्थात्रयानुभवितुरसंगनित्यमुक्तत्वमितिविशिष्टवाक्यार्थः // त्रयावसथास्त्रयःस्वप्नाःअयमात्माब्रह्मसर्वानुभूःअसंगोह्ययंपुरुषइत्यादिश्रुतिभ्यः // अवच्छेदकोपाधाववच्छिन्नेचैतन्येचखंडशःशक्त्यंगीकारात्पृथगन्वयेपिनक्षतिः॥ भाग त्यागलक्षणयाऽवच्छिन्नत्वांशपरित्यागेनशुद्धचिदंशस्यापितुर्यान्वयोनविरुध्यते // स्वकार्यपरीक्षयाऽविद्यायानष्टत्वादविद्याकार्याणांपूर्वमेवबाधितत्वात्स्वयंप्रकाशसच्चिदानंदसामान्येतुरीयेऽदृष्टमव्यवहार्यमग्राह्यमलक्षणमचिंत्यमव्यपदेश्यमेकात्मप्रत्यय-|| For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सा० अ० सारमितिलक्षितेबुद्धेरप्रवेशात्सर्वचिंतांपरिहायतूष्णीमवस्थानवाक्यार्थबोधस्वरूपंफ-|| लंच // ननुअदृष्टमित्यादिविशेषणैरुक्तेपिवृत्तिव्याप्त्यभावेएकात्मप्रत्ययसारमिति // 27 // विशेषणेनावश्यकोवृत्तिव्याप्त्यंगीकारः // अतएवाविद्याबाधोपियुक्तःइतिचेन्न / सूर्यकिरणेषुमृगजलवध्यस्तयाबुद्धयाधिष्ठानआत्मानविषयीकर्तुशक्यते // यथासूयकिरणाःस्वाध्यस्तजलै शीतलीक्रियन्तेभिन्नसत्ताकत्वात् // अतएवप्रतिबिम्बाभासवादौनिराकृतौ // नहिमृगजलेसूर्यप्रतिबिंबआभासोवासंभवति // ननुअध्यस्तस्याप्याकाशनीलिनःप्रतिबिंबदर्शनादिन्नसत्तायामपिबुद्धौवास्तवसतोप्यात्मनःपतिबिंबाभासौसंभवेतामितिचेन // आकाशनीलिम्नःसोपाधिकभ्रमत्वेनाप्रलयमनिवृत्ते र्व्यावहारिकतुल्यत्वेनव्यावहारिकत्वेनैववासमसत्ताकत्वेनप्रतिबिंब अतएवनमृगजले तत्प्रतिबिंबोदृष्टः // ननुवृत्तिव्याप्यनंगीकारेऽविद्याबाधोनुपपन्नइतिचेन // यत्र-॥२७॥ विषयविषयिभावोवास्तवस्स्यात्तत्रविषययाथार्थ्यज्ञानेनाविद्यायायापनंयुक्तंयत्रतुवि For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षयविषयिभावोऽविद्ययाकल्पितस्तत्रविषयत्वासंभवादविद्यायाःस्वकार्यासंभवदर्शनेनैवनाशइत्यभ्युपगंतव्यं // अतएवान्यदेवतहिदितादथोअविदितादधीतिश्रुत्याविद्याविद्याविषयत्वंनिरस्तंसंगच्छते // यदिहिकार्यनामकिंचिदपपन्नं भवेत्तदातत्कारणाभ्युपगमोपिसुतरामुपपनोभवेत् यदातुकार्यमधिष्ठानमंतरेणनप्रतिभातिसतश्चस्वरूपनकिंचिदिदतितस्यकार्यत्वासंभवेनकारणाभ्युपगमस्यानवकाशात्कार्यकारणबुइयनुदयएवाविद्यानाश कार्यसहितइत्युच्यतोयथायदग्नेरोहितंरूपंतेजसस्तद्रपंयच्छुक्लंतदपांयत्कृष्णंतदन्नस्यतदपागादग्नेरग्नित्वंइत्यत्राग्निपरीक्षायामग्नेरसंभवादग्न्या-|| पादकाविद्यानाशस्तथाकार्यमात्रेसत्ताप्रकाशयोर्ब्रह्ममात्रत्वेऽसदप्रकाशस्यशशभंगतु ल्यस्यकार्यस्यआपादकाऽविद्यानाशः॥अविद्याऽसंभवएवाविद्यानाशउच्यते // अतएवअविद्यास्तीत्यविद्यायामेवास्तित्वप्रकल्पनमितिसुरेश्वराः // अविद्याकार्यसत्येवाविद्याकल्पनमितितदर्थः // एतावताऽविद्यानाशार्थवृत्तिव्याप्त्यंगीकारोनिष्फलः For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 28 // अंगीकृतायामप्यसंभवस्तस्याइतिफलितं ॥अप्रमेयपरंध्रुवमितिश्रुतेः ॥मानप्रबोधयं || | सा० तंबोधंमानेनयेबुभुत्संते / एधोभिरेवदहनंदग्धुंवांच्छंतितेमहात्मानइत्याचार्याः // यतोवाचोनिवर्ततइतिश्रुतिव्याख्यावसरेस्वस्मिन्स्वप्रवेशायोगादित्यानंदगिरयः // किञ्चब्रह्मणस्तुरीयस्यनिराकारत्वाद्बुद्धिप्रत्यक्त्वाचबुद्धेब्रह्माकारत्वंनामाकारपरित्याग एवपर्यवस्यतिसाचनवृत्ति कुतस्तरांवृत्तिव्याप्तिः // ननुतथालेब्रह्मबोधोनस्यादिति चेन्न // स्वयंबोधरूपस्यनबोधान्तराकांक्षाकिन्तुबोधयोगेनभासमानेषुबोधभेदनिरासेबोधःस्वमात्रोवतिष्ठते // अतएववेदान्तवचनानिविषयविमुखीकरणानीति भाष्यम्॥सतिभेदग्रहेविषयसांमुख्यस्यदुरित्वानिरस्तेचभेदेखमात्रत्वेनविषयसांमुख्यासम्भवात्प्रत्यग्विश्रांतिरार्थिकीतितात्पर्यम्।अत्रतुविश्वतैजसयोःप्राज्ञेस्थूलसूक्ष्मयोःकारणेचाभेदमवगाह्यविशिष्टप्रणवार्थेतुरीयेऽवस्थात्रयभावाभावसाक्षिणिस्वयमह|मात्मानिजमित्यादिशब्दितेऽभेदाकांक्षावत्तामालोक्यतत्संगमसमयेतेनतुरीयेणव्या // 28 // For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सातुरीयमेवभवतिबुद्धिःशब्दश्च॥ यथावन्हियन्त्रमपीप्रज्वलितवन्हिसंगमसमयेएववहिर्भवतिनस्वरूपेणतिष्ठतिनापिवन्हिव्याप्नोतिनाप्युत्थास्यति // तथाचभाष्यम् // क्षीणेतुमकारेबीजभावक्षयादमात्रे ॐकारेगतिर्नविद्यतेक्वचिदित्यर्थःअमात्रोमात्रायस्य नास्तिसोमात्रकारश्चतुर्थस्तुरीयआत्मैवकेवलोभिधानाभिधेयरूपयोर्वाङ्मनसयोः क्षीणत्वादव्यवहार्यःप्रपंचोपशमःशिवोदैतःसंवृत्तःएवंयथोक्तविज्ञानवताप्रयुक्तोंकारस्त्रिमात्रस्त्रिपादआत्मैवसंविशत्यात्मनाखेनैवस्वंपारमार्थिकमात्मानंयएवंवेद।परमार्थदर्शिनांब्रह्मविदांतृतीयंबीजभावंदग्ध्वात्मानंप्रविष्टइतिनपुनर्जायतेतुरीयस्याबीजखात्नहिरज्जुसर्पविवेकेरज्ज्वांप्रविष्ट-सर्पोबुद्धिसंस्कारात्पुनःपूर्ववत्तद्विवेकिनामुत्थास्य तिमन्दमध्यमधियांतुप्रतिपन्नसाधकभावानांसन्मार्गगामिनांसन्यासिनांमात्राणांपा-|| दानांचक्लप्तसामान्यविदायथावदुपास्यमान ॐकारोब्रह्मपतिपत्तयेआलम्बनीभव-|| | तीति // मात्रात्रयस्यसविकल्पविश्वादिबोधनेनोपक्षीणत्वानिर्विकल्पसमस्तोंकारस्या For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 29 // मात्रस्याव्यवहार्यप्रपंचोपशमाह्वयार्थेतुरीयेजाग्रतः स्वप्नाभेदेनमिथ्यात्वेतस्यसौषुप्ते || ||मा० बीजेऽज्ञानेऽभेदेनाविद्यामात्रत्वेज्ञातेतेनैवाविद्यादाहेसमावेश अविद्यादाहेसत्येवाधिष्ठानसाक्षात्कारात् // येतुअधिष्ठानसाक्षात्कारोत्तरमविद्यानाशमिच्छन्ति तेषां सत्यावरणेसाक्षात्कारासंभवः // आवरणसाक्षात्कारयोःसमकालिकत्वासम्भवाद // यत्साक्षादपरोक्षादितिश्रुतेर्नित्यापरोक्षआत्मानस्वसाक्षात्कारेवृत्तिमभिलपतिकिंतुस्खा ध्यस्तनिरासमात्रंमोक्षाय // रज्जुरिवसादिभिर्विकल्प्यमानास्थानत्रयआत्मैकएवांतःप्रज्ञादित्वेनविकल्प्यतेयदातदांतःप्रज्ञादित्वप्रतिषेधविज्ञानप्रमाणव्यापारसमकालमेवात्मन्यनर्थप्रपंचनिवृत्तिलक्षणं परिसमाप्तमिति तुरीयाधिगमेप्रमाणांतरंसाधनांतरं वानमृग्यम्॥रज्जुसर्पविवेकसमकालइवरज्ज्वांसर्पनिवृत्तिफलेसतिरज्ज्वधिगमस्यत्या I // 29 // दिना।तस्मात्प्रतिषेघविज्ञानप्रमाणव्यापारसमकालैवात्मन्यध्यारोपितांतःप्रज्ञत्वाद्यनर्थनिवृत्तिरितिसिद्धमित्यन्तेनभाष्यणनांतःप्रज्ञमितिश्रुतिव्याख्यानपरेणस्पष्टीकृतं॥ For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रज्जुसपर्थलेयोह्यविद्यानिवृत्त्युपायःसएवसाक्षात्कारोपायः तुरीयेतुअविद्यानिवृत्त्यु-/ पायस्यनसाक्षात्कारोपायत्वंतस्यैवनित्यसिद्धसाक्षात्कारस्वरूपत्वात् // परंतुअविद्यानिवृत्युपायेतरोपायानपेक्षत्वंतुल्यमितिदृष्टांतसंगतिः // ननुनित्यापरोक्षवेआव-|| रणासम्भवावअविद्यासंभवइतिचेन्न // आवरणासंभवेप्यहमात्मानंनजानामीतिप्रतीत्यावरणाभिमानोत्पादकाऽविद्यासंभवात् // सैवचयावदिक्षेपहेतुःशास्त्रेणनिवर्तनीया // अस्तुनामशुक्तिरजतस्थलेशुक्तित्वांशमाच्छादयंतीरजतपरीक्षयाबाध्या च // अत्रतुविषयत्वासंभवानिर्विभागेतयाविषयत्वमध्यस्यात्मानंकथंलभेयमितियतमानप्रतिविषयत्वंनास्तीत्येवबोधनीयंनत्वंगीकरणीयंनापिकश्चिदंशआच्छादनीयःसं-| भवतिनिर्विशेषत्वात् // नचब्रह्मत्वमाच्छादितमितिवाच्यम् // सर्वारोपाधिष्ठान त्वमपेक्ष्यब्रह्मशब्दप्रवृत्तेस्तस्यचाविद्यकत्वात् // सिद्धमेतावताऽवस्थात्रयबाधेनतुरीयविश्रांतिःप्रणवार्थविचारेणेति // एकात्मप्रत्ययसारमित्यस्यतुएक-यावनेदशून्यः / For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साक // 30 // आत्मप्रत्ययःआत्माभिन्नचित्प्रकाश सारोयस्मिनित्यर्थः॥ ननुएकजीववादेएकमुक्त्या सर्वमुक्तिप्रसंगावंधमोक्षव्यवस्थानसिध्येदितिचेन्न // इष्टापत्तेः / केनमुक्तेनजीवांतरंदृष्टमितितद्दयवस्थागलेपतितास्यात् // यानिशासर्वभूतानांतस्यांजागर्तिसंयमी / यस्यांजाग्रतिभूतानिसानिशापश्यतोमुनेरितिभगवतामुक्तेषुप्रपंचदर्शनाभावाभिधानाव नमुक्तेषुसाप्रसरति // ननुजगहयवस्थाऽभावेजीवन्मुक्तानांयथेष्टाचारप्रसंगःव्यवस्थायांचजगदुपपत्तिर्वक्तव्याउपपनेचजगतिमोक्षानवकाशप्रसंगइतिचेन // जगद्दयवस्थयासंत्रस्तोजगदतीतपदवीमारुरुक्षुर्मुमुक्षुरध्यात्मशास्त्रप्रवृत्तस्तत्राकात्मानंनिश्चि त्यकथंजगद्दयवस्थायांप्रवर्तेतययायथेष्टाचारश्चपरिहर्तव्योभवेत् // ज्ञाननिष्ठोविरक्तोवामद्भक्तोवानपेक्षकः / सलिंगानाश्रमांस्त्यक्त्वाचरेदविधिगोचरइत्युद्धवंप्र-|| तिभगवदुक्तेर्मुमुक्षुदशायामेवयदाविध्यगोचरत्वंकिमुवक्तव्यंजीवन्मुक्तानाम् // किञ्चा! || // 30 // सकामानांनेच्छासंभवोस्तियेनयथेष्टाचारआपादनीयः // नापिशास्त्रस्येच्छास्तितदु For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशेनविधेरदर्शनात् // तवेच्छायास्त्वकिञ्चित्करत्वात् // नापिज्ञानाज्ञानदशयोः | प्रकृतिविकृतिभावोस्तियेनाज्ञानदशायांविहितानिकर्माणिज्ञानदशायामतिदिश्येरन् अकर्मवाज्ज्ञानदशायाः। नाप्यज्ञानेनाभिमतानिवर्णाश्रमादीनिज्ञानेप्यभिमत्यतथैवाचरितव्यमितिनियमोस्तिनापिलोकनिंदानिवृत्त्यर्थमितिवक्तुंशक्यं / अनात्मज्ञलोकानांमूर्खेषुगणनात् // अविद्यायामंतरेवर्तमानाःस्वयंधीरा पंडितंमन्यमानाः॥ जंघन्यमानाःपरियंतिमूढाअंधेनैवनीयमानायथांधाइतिश्रुतेस्तनिंदायाअप्रयोजकत्वात् // आत्मज्ञेषुतुनिंदास्तुत्योरसंभवात् // किंचसंसारदुःखसंत्रस्तस्यारखंडनिरतिशयसुखलाभेतत्राखंडविश्रांतिरेखार्थिकीनसदाचारोनाचारोवातमाक्रमितुंशक्तः // कदाचिहिश्रांतिप्रतिबंधेपुनःपुनःप्रणवार्थविचारेणविश्वमिथ्यात्वंनिश्चित्यात्मविश्रांतिः संपादनीयाइत्यपिवक्तुमशक्यम्॥ यथाहवसिष्ठः / चिथोमैकांतनिष्ठत्वात्प्रयत्नेनविनासुखम् / नवेत्तिशुद्धबोधात्मायःसविश्रांतउच्यते // सर्वएवपरिक्षीणा संदेहायस्य For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 31 // वस्तुतः / सर्वार्थेषुविवेकनसविश्रातःपरेपदे // यस्यकस्मिंश्चिदप्यर्थेक्वचिद्रसिकता-|| सा० स्तिनो। व्यवहारवतोप्यंतःसविश्रांतउदाहृतः॥ यस्यसर्वेसमारंभाःकामसंकल्पवर्जिताः / यथाप्राप्तविहरतःसविश्रांतइतिस्मृतः॥ अनिमीलितनेत्रस्ययस्यविश्वंप्रलीयते / सक्षीव परमार्थेनहाशेतेसुखमात्मवान् // विनिगीर्यजगत्सर्वपरमांपूर्णतांगतः। आप्तेरमृतंपीत्वाहाशेतेसुखमात्मवान्इत्यादि ॥तत्रविदितवेद्यस्यात्मैकरसिकत्वेनप्र|पंचोपेक्षयाऽऽत्मविश्रांतिरेवस्वभावइतितात्पर्यम् // नत्वाचाराभिनिवेशः। अतएव नैवतस्यकृतेनार्थइत्यादिभगवानपि / अज्ञआचारमेवप्रशंसतिज्ञानेसंदिहानआचारब्रह्मज्ञानंचापरिनिष्ठितस्तुअसंदिग्धंबोधमेवपरीक्षते॥परिनिष्ठितत्वंचअनिकेतत्वकुसंगशुभाशुभकर्मपरित्यागयथाप्राप्तसंतोषयथार्थगुणग्रहणपरदोषानक्षिणगुरुवचनानुसंधानप्रतिपालनाद्भवति // सनिकेतेममत्वंदोष कुसंगेचित्तक्षोभःकर्मणिकर्तृत्वाभि-|| || // 31 // मानःअसंतोषेइच्छाद्धिःगुणाग्रहणेमात्सर्यदोषदर्शनेनीचत्वंगुरुवचनाननुसंधानेज्ञा For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नविस्मृतिः // अदृढपतिपत्तीअनिकेतत्वादयोदृढप्रतिपत्तयेभवंति / दृढप्रतिपत्तौ तुनकिञ्चित्कर्तव्यम् // कृतकृत्यस्थितिरेषाप्रत्यग्विश्रांतिमेत्यशयनंयत् / व्युत्थाने सर्वस्मिन्समतारसिताचनीरसत्वंच // वस्तुतस्तुनकर्मलिप्यतेनरेनकर्मणालिप्यतेपापकेननकर्मणावर्धतेनोकनीयानित्यादिश्रुतिभिरात्मनःकर्मलेपानावेप्यभिनिवेशमात्रमज्ञानांकमणिफलेच / अतएवनकर्मणानप्रजयाधनेनत्यागेनैकेअमृतत्वमानशुरितिश्रुतिरभिनिवेशत्यागंमोक्षहेतुंबोधयतिस्वरूपतःसर्वथात्यागासंभवात् // नहिकेनचिज्जीवतापाषाणीभवितुंशक्यते // अतएवदेहेंद्रियादिषुसत्यसतिवाकर्मणिप्रवृत्तेप्वपिविदुपिनहर्षशोकौ // एवंहवावनतपतिकिमहंसाधुनाकरवंकिमहंपापमकरवमितिश्रुतेः। तथाचविश्वमिथ्यात्वज्ञानविनाकर्मफलहर्षशोकस्पर्शाभावस्यकथमप्युपपादयितुमशवयत्वान्मिथ्यावस्तुनोन्यसत्तयासत्तावतःस्वतःशशशृंगतुल्यस्यान्यस For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 32 // - त्तयासत्तावदित्यपिवक्तुमशक्यस्यव्यवहारविषयत्वासंभवानिर्विषयत्वात्प्रमाणानांस्व- सा० तस्तुच्छत्वाचप्रमाणनिरपेक्षमदैतसाम्राज्यंसिद्धमितिशिवम् // जयसच्चिदानंद // // अद्वैतसाम्राज्यमिदंतुकाश्यांखव्योमनागेंदुमितेशकेच / माघेऽसितेभूतदिनेचकारकृष्णोमुनिस्तुष्टिकृतेबुधानाम् // 1 // इतिश्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यसच्चिदानन्दसरस्वतीचरणकमलमकरन्दास्वादसंतृप्तमनोमिलिन्दकृष्णानन्दसरस्वतीविरचितमद्वैतसाम्राज्यसम्पूर्णम् ॥शुभम् // त्रिपाठीत्युपाहमुजजनशिखामणिबहुराजमान्यमनःसुखरामतनुजेनतनुमुखरामशास्त्रिणा, कामतोपाह हरिशास्त्रिणाच संशोधितम् मुम्बय्यां हरिवरदाख्ये मुद्रणालये बाबाजीअनन्तप्रभुतेण्डुलकरैर्मुद्रायंत्रालयाधिपतिभिर्मुद्रितोऽयं ग्रन्थः|| // 32 // पौषेऽसितेद्वादश्यांभौमे शालिवाहन शके 1813 For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *#和#长################杂於杉杉杉#####於五### ######恭恭 器并於#### 1 CHEIRITHM I ##张若#米苏器苏恭恭杂## For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only