________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युज्यते // जडानामीश्वराभेदमुररीकुरुषेनवा // 4 // द्वितीयंभेदनिन्दाया श्रुतत्वानहियुज्यते // आयेमुख्यममुख्यंवाऽअदमंगीकरोषिहि // 5 // मुख्यंचेच्चिवमेतत्यज्जडाभेदकश्चिति // बाधायाञ्चद्भेदहेतुर्नवास्तविकतामियात् // 6 // कथंजीवेशयोर्भेदोवास्तवःस्यादिचारय // वास्तवत्वेनिष्फलं स्यात्सतःसत्यविशेषणम् // 7 // अतोविश्वमृषात्वाययुक्तंसत्यविशेषणम् // दृष्टान्तमृत्तिकेत्येव सत्यमित्युक्तमित्यतः // 8 // दान्तिकेप्यधिष्ठानेयुक्तंसत्यविशेषणम् // भेदहेतो षात्वेनभेदोऽपिचमृषाभवेत् // दुःखीजीवःकथंब्रह्मेतिचेहिष्णुर्यथातव // 9 // || वृन्दासीतावियोगाभ्यांदुःखित्वंश्रूयतेबहु // तन्मिथ्याचेदिदंमिथ्याकुतोनभविता वद // अनयैवदिशाविज्ञःकर्तृत्वादिविचारयेत् // 310 // अन्तर्नियन्तासर्वेशःकथं जीवोभवेदिति // नाशंक्यंनिष्प्रदेशान्तःस्थितेनियमनस्यच // 11 // असंभवादतोजीवोपाधेरन्तर्नियामकः॥ आकाशान्तर्नियंतृत्वकार्यत्वात्सम्भवेद्यथा॥१२॥ For Private and Personal Use Only