Book Title: Dwait Samrajya
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मिभेदेप्यभेदश्चेल्लक्षणोक्तिर्नयुक्तिभाक् // अत्रप्रकरणादेकंब्रह्मसद्धर्मितत्रहि // 68 // ईक्षादिकर्ताभगवानज्ञोभोक्ताचजीवकः // आरोपितौतयोरैक्यतत्त्वमित्याहचश्रुति // 69 // आरोपितत्वमैक्यस्यबोधासिध्यतितत्त्वमोः // अविरोधःकुतोनस्यादिति चेच्छंक्यतेत्वया // १७॥विरोधंनवयंब्रूमस्त्वयाध्यस्तोस्तिसुस्थिरः // प्रकृतार्थ परामर्शितत्पदंलक्षितंभवेत् // 71 // लक्षणात्वंपदस्यात्रनप्रयोजनमर्हति॥ घटत्वा दिविशिष्टस्यमृदभेदोयथातथा // 72 // सविशेषेनिर्विशेषाभेदोभवतिसांप्रतः॥ इतिचेत्परिणामोयंजीवोनब्रह्मणोभवेत् // 73 // तथाचेत्कालवशतोनाशोनास्तिक जीववत् // नापिधर्म्यतरंजीवस्तत्वमैक्यविरोधतः // 74 // नैक्यज्ञानमुपासार्थ सर्वज्ञानविरोधतः // अतोविव”जीवोनबाधाभेदेमृषाभवेत् // 75 // नस्यान्मोक्षसुखंतस्यमृषात्वाच्छोकमावहेत् // धर्मत्यागाद्धर्मिणैक्यसिध्यर्थलक्षणात्वमः // // 76 // तदैवमुख्यमैक्यस्यादहंब्रह्मेत्यबाधितम् // देहादिवनजीवोयंधHध्यस्तो For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70