Book Title: Dwait Samrajya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानांतरोत्पत्तिनाश्यंज्ञानचेन्नोपपत्तिमत् // प्रासंयोगात्तदुत्पत्तिःसंयोगांतरतोथवा // 46 // आधेतुसर्वज्ञानानांयौगपyभवेत्तव // द्वितीयेप्यणुमात्रेतुनसंयोगांतरोद्भवः // 47 // स्वावच्छेदेनसंयोगांतररोधित्वयोगतः॥निष्प्रदेशेचात्मनिचनसंचारस्यसंभवः // 48 // संयोगश्चविभागश्चयेनस्तःसोपपत्तिकौ // सप्रदेशत्वपक्षेतुनित्यत्वंनात्मनोभवेत् // 49 // निष्प्रदेशेपिचाकाशेयथास्तपक्षिणांगतिः ॥मनोगतिस्तथाचेत्किमाकाशंदृश्यतेत्वया // 50 // येनदृष्टांतसिद्धिःस्याकिंचसंचारसंभवः॥ मनसोनभवेक्वापिपादपक्षाद्यभावतः // 51 // सुषुप्तौचरमज्ञाननाशोनस्यात्कथंचन // पुरीतदातरज्ञानानाशोनैवोपपत्तिमान् // 52 // सामानाधिकरण्यस्याभावाकिंचादराच्छृणु // भावावगाहितज्ञानमुताभावावगाहिवा // 53 ॥आयेनस्यासुषुप्तिःसाहितीयेप्रतियोगिनम् // विनिर्मुच्याभाववित्तिर्नदृष्टाक्वापिकेनचित्॥५४॥ प्रतियोगिझानपक्षेनसुषुप्तिर्भवेत्तुसा // येनेंद्रियेणयद्ग्राह्यंतदभावोपितेनहि // 55 // For Private and Personal Use Only

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