Book Title: Dwait Samrajya
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रमप्यथ // अनवस्थादिदोषःस्याज्ज्ञानाभिन्नंजगत्ततः // 26 // ज्ञानंज्ञेयमितिद्देधापदार्थोस्तिनचेतरः // इतरत्वेतुच्छतास्याज्ज्ञानत्वेतुमदिष्टता॥२७॥ज्ञेयत्वेज्ञानसम्बन्धोनस्यात्तस्मानतेगतिः॥ इदमेवहितादात्म्यंज्ञानस्यज्ञेयवर्गक॥२८॥ यत्स्वातिरिक्तसम्बन्धासम्भवोऽस्तिविचारिते॥ज्ञानस्याखण्डरूपस्यनिर्विकल्पस्यनोभवेत् // 29 // जगदिकल्पनारूपंतस्मान्मिथ्याजगत्स्मर // तच्चज्ञानंस्वप्रकाशंसर्वग्राहकतायतः // 230 // ग्राह्यबाधेसर्वशास्त्रतात्पर्यज्ञेयमादरात् // नचशास्त्रसहस्रेणपदार्थःक्रियतेऽन्यथा // 31 // तस्मादेकार्थतायुक्ताशास्त्राणांबुधसंमता // यथार्थवक्तावेदोऽसौनानात्वंधिकरोतिहि // 32 // प्रशंसतिनचद्वैतमद्वैतंचप्रशंसति॥ तस्माद्यथाधिकारंहिशास्त्रवृत्तिःसमंजसा // 33 // स्वयंप्रकाशेप्रज्ञानेसर्वप्रत्यक्स्वरूपके // सर्वावभासकेभेदोनकथंचनयुज्यते // 34 // भेदग्रहश्चानुयोगिप्रतियोगिग्रहोद्भवः // स्वप्रकाशस्यग्राह्यत्वाभावानेदग्रहोनहि // 35 // ज्ञानंचयदिभिद्यतभे For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70