Book Title: Dwait Samrajya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यसर्वाणिचनामानिबोधयन्तीतिमध्वकः।। स्वीकृत्यनानाशक्तित्वंस्वीकरोतिहिशब्दके॥ 23 // ईशसर्वात्मतायान्तुकस्माद्वेषोनविद्महे ॥आनन्दमात्रावयवोऽनवद्यगुणसागरः // 24 // स्वगतेनचभेदेनवर्जितःपरमेश्वरः॥ ब्रह्मावायुश्चतस्यैवप्रतिबिंबीपुमाकृती // 25 // रमापियोषिदाकारःप्रतिबिंबोहरेरिति॥तारतम्यप्रक्रियायाम्बुबन्मध्वोत्रटच्छयते ॥२६॥आनन्दावयवत्वेतुकथंनोनाशिताभवेत् // यद्यत्साक्यवंवस्तुतत्तवाशीतिनिर्णयात् // 27 // नोचेन्नित्यत्वमस्माकंकोनिवारयितुंक्षमः॥ अस्मनित्यत्वमिष्टंचेकिमीशेनकृतंतव // 28 // किंचस्वगतभेदेनवर्जितत्वंतुदुःशकम् ॥अभेदोऽवयवानांचाथवावयवशून्यता॥२९॥कोऽर्थःस्वमतभेदेनवर्जितत्वस्यतेमते॥आयेहस्तक्रियापादेने।पादक्रियातथा॥३३०॥एवंसर्वक्रियाकर्ताप्रत्येकाव पवोभवेत् // तदनेकत्वक्लप्तिस्तुव्यर्थास्यान्मध्वबुद्धिमन् // 31 // यथास्यापानयोरेक्यंदिवसान्धपतत्रिषु // हस्तत्वादिस्वरूपेणभेदश्चेत्केनभिन्नता // 32 // आ For Private and Personal Use Only

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