Book Title: Dwait Samrajya
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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 23 // तत्रतत्रवर्तमानंसत्तांतांसंज्ञालभतइत्युक्तंनसंगच्छते // ब्रह्मशरीरसूक्ष्माचिडाचक-सा० प्रधानशब्दस्यब्रह्मण्येवमुख्यतयाप्रवृत्तत्वात्परिणामस्यापितत्रैवमुख्यतयाप्रतीत्यापत्यास्वस्वभावमजहदित्ययुक्तस्यात् // नहिपरिणममानंकूटस्थमजडंवादृष्टचरम् // स्वस्वभावमित्यत्रैकःस्वशब्दोधिकः // अन्यत्रपरिणामांगीकारेपिकार्याणांस्खोपादाने एवाभेदानचिवस्तुनिब्रह्मणि // ब्रह्मशरीरत्वाद्ब्रह्माभेदइतिचेच्छरीरंशरीरीचेतिवस्तुह यएकंवा // आद्यवस्तुद्वयमभेदश्चेतिविरुद्धम् // द्वितीयेचिदचिदीश्वररूपतत्त्वत्रयगणनाप्रतिपक्षीभवेत् // चिदचितोरीश्वरशरीरत्वात्तदभेदेनेश्वरकतत्त्वापत्तेः // किश्चा नभनन्योअभिचाकशीतीतिमन्त्रवर्णादक्षोभोंगोपाधिभूतशरीरकल्पनायाअयुक्तखाद // यस्यात्माशरीरमित्यादितूपासनार्थमितिमन्तव्यम् // यत्तुरंगाचार्येणसर्व | स्यजगतोब्रह्मशरीरत्वाच्छरीवाचकानांशरीरिण्येवमुख्यतयाप्रवृत्तिदर्शनात्सर्वखल्वि | |तिसामानाधिकरण्यनिर्देशोयुक्तइत्युक्त्वाग्रेसूक्ष्मचिदचिदिशिष्टब्रह्मरुपकारणवाचि // 23 // For Private and Personal Use Only

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