Book Title: Dwait Samrajya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युक्ता। किञ्चजीवस्यब्रह्मशरीरतयाब्रह्मात्मत्वंवदतातत्त्वमसीत्यत्रतत्पदंनिरस्तसमस्तदोषमनवधिकातिशयासंख्येयकल्याणगुणास्पदंजगदुदयविभवलयलीलंब्रह्मप्रतिपादयति // समानाधिकरणंत्वंपदंचाचिदिशिष्टंजीवशरीरंब्रह्माचष्टेइतिपदद्दयार्थनिर्णीय|| प्रकारदयविशिष्टैकपरत्वात्सामानाधिकरण्यस्येतिजीवान्तर्यामिब्रह्मणोजगत्कारणबह्माभेदाकथितस्तन्मन्दप्रज्ञरमणीयम् // लंपदस्यजीवान्तर्यामिवाचकत्वाभावात् // अन्यथावंमूर्खइत्यादौब्रह्मणोमूर्खत्वापत्तेः // अन्तर्यामिण सम्बोध्यत्वाभावादसि-|| पदासंगत्यापत्तेः // खेतकेतुजीवस्यैवसम्बोध्यत्वात् // किञ्चशरीरशरीरिणोरभेदवादिनःकिंपतिबन्धकंतत्त्वमसीत्यत्रैवजीवब्रह्मैक्यबोधे // किञ्चनिखयवचिद्रूपस्यजीवस्यान्तःप्रदेशासम्भवात्तदन्तर्यामित्वंब्रह्मणोनसंगच्छते // प्रदेशवयेवपदार्थान्तरपवेशसम्भवात् // अंतर्यामित्वेपिनजीवशरीरत्वंब्रह्मणः // यथानमणिशरीरत्वंमाला||सूत्रस्य // किञ्चतत्त्वमसीत्युपदेशवाक्यंउपदेशोह्यज्ञाननिवृत्तयेभवतिनाज्ञानब्रह्मणि|| For Private and Personal Use Only

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