Book Title: Dwait Samrajya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनाशस्यदुर्वारत्वात् // यस्मिन्देशेदेह पतेत्तत्रैवतिष्ठेघवघटस्तवमृहत् // शुद्धचि दंशस्यैवात्मतांगीकारेचैत्रोहंजानामीत्यादिप्रतीतिसहस्रेणाप्योदोदुःसाधः // चैबोहंमरिष्यामीतिप्रतीत्याऽऽत्मनाशोप्यंगीकृतःस्यात् // गतंतववैकुंठगमनमुपासनाफलम् // ननुशरीरशरीरिणोःस्वरूपस्वभाववैलक्षण्या दोपितेनभवे लोकान्तरगमनमितिचेन // भेदाभेदयोरन्यतरस्यावास्तवत्वापत्तेः // वास्तवत्वेन्यतरबुद्धिरन्यतरबुद्धिप्रतिबन्नीयात् // अप्रतिबन्धकत्वेसर्वत्रसर्वबुद्धिप्रसंगः // यथाशरीरशरीरिणो:देसत्यप्यभेदमंगीकरोषितथाघटपदयोरप्यभेदेकिंप्रतिबंधकंतब भवेत् // यथाप्रतीतितदंगीकारइतिचेकिमयुक्तास्यान्मेरुःसर्षपइतिप्रतीतिः॥किंच भेदाभेदयोःप्रतियोग्यभावरूपयो सामानाधिकरण्येवटघटाभावयोरपिसामानाधिकरण्यस्यात् // किंचसर्वेशब्दा-प्रकृतिप्रत्यययोगेनाभिधायकतयाप्रसिद्धालोकेतत्तद्याच्यतयामतीयमानतत्तसंस्थानवहस्तुमुखेनतदभिमानिजीवतदंतर्यामिपर्यतसंघा For Private and Personal Use Only

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