Book Title: Dwait Samrajya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रतःसत्तानव्यापारोविकारतः // तत्त्वभावविरोधाचतस्मात्रैवास्तिकर्मता // 49 // साधुत्वायैवपुरुषोयुष्मच्छब्दसमन्वयात् // पुरुषार्थोस्तुचैकत्वंसत्तायामन्वितंभवेत् // 150 // इतिकेचित्तनयुक्तंनसंख्यानिर्विशेषके // एकमेवाहयमितिकथमादौविशेषणम् // 55 // इतिचेदद्वितीयत्वंसंख्यापक्षेविरुध्यते // संख्यापिसद्वितीयत्वादद्वयेनविरुध्यते ॥५२॥विरोधादुभयोरेवकारोपिचविरुध्यते॥ तस्माद्भेदत्रयाभावोवाक्यार्थोन्वेतिवैसता // 53 // अभावात्सद्वितीयत्वंनाभावोनाश्रयात्पृथक् // निर्विशेषप्रकरणाल्लक्षणातत्त्वमोरपि // 54 // जडकारणताबोधबाधायेक्षादिसंकथा॥ कार्यकारणभेदापहत्यैसर्वात्मताकथा // 55 // आरोपितत्वमीक्षादेःसतिसत्यविशेषणात् // एकज्ञप्तेःसर्ववित्तिसिद्धयेतत्वमोःकथा // 55 // महावाक्यार्थबोधस्यप्रमात्वान्मोक्षयुक्तता // ननुचाव्याकृतभेदत्रयाभावोहियुज्यते // 56 // तस्माचशबलंब्रह्मप्रकृतंनतुशुद्धसत्॥इतिचेत्सत्यमितिचतव्यावृत्त्यर्थमिष्यते॥५॥ For Private and Personal Use Only

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