Book Title: Dwait Samrajya
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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |शजीवावुपस्थितौ // अनेकरूपतस्तस्मात्रोक्तदृष्टांतसंगतिः॥३९॥ नोपस्थित्यंतरं-|| सा० |तत्रधर्मत्यागेऽपिचहयोः ॥लक्षणाव्यवहारस्तुधर्मत्यागेनयुज्यते // 140 // नचवृत्त्यंतरंयेनरूपांतरमभीप्सितम् // संसर्गोवाविशिष्टोवावाक्यार्थोनात्रसंमतः // 41 // अखंडैकरसत्वेनवाक्यार्थोविदुषांमतः // प्रत्यग्बोधोयआभातिसोदयानंदलक्षणः॥ // 42 // अद्दयानंदरूपश्चप्रत्यग्बोधैकलक्षणः॥इत्थमन्योन्यतादात्म्यप्रतिपत्तिर्यदाभवेत् // 43 // अब्रह्मत्वंत्वमर्थस्यव्यावर्तेततदेवहि॥ इतिश्लोकत्रयेणार्यावाक्य|त्तावखंडताम् // 44 // अभेदंचाभेदबोधफलंचाहुर्मनीषिणः // त्वमर्थस्यचधात्वर्थेनाभेदेऽपिनकर्मता // 45 // फलाविशेषितासत्ताधात्वर्थोव्यापृतिर्नहि // आरोपितव्यापृतित्वादातुसंज्ञानबाध्यते // 46 // उपाध्यभिव्यक्तियोगादारोपोपिऽहि युज्यते // उपाध्यभिव्यक्तिकर्तृब्रह्माभेदावटादिच // 47 // कर्तृस्याद्ब्रह्मविख्यातं / // 8 // सत्तामात्रमितिश्रुतौ // अस्तीत्येवोपलब्धस्यतत्त्वभावःप्रसीदति ॥४८॥इतिश्रुति For Private and Personal Use Only

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