Book Title: Dwait Samrajya
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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 7 // योरैक्यंसुषुप्तके // अविद्योपाधिकोजीवोमायोपाधिमहेश्वरः॥१९॥ उपाधिभेदादन- स योनैकत्वमितिचेच्छृणु॥अविद्यैवहिमायास्यावचनानहरूपतः॥१२०॥अविद्यावरकत्वेनाव्याकृतंबीजरूपतः // तदेवाज्ञानमित्युक्तंप्रमाबाध्यत्वयोगतः // 21 // देहेंद्रियगणाध्यक्षःसौषुप्तानविभिद्यते // योऽहंसुप्तोऽभवंपूर्वसोऽहंव्यवहृतौस्थितः // 22 // |इतिसार्वजनीनेयंप्रत्यभिज्ञाप्रदृश्यते // बीजावस्थांयआपनोध्यस्येदंजगदात्मकः // // 23 // पुनर्ग्रसित्वाबीजाख्यइत्थमेवाप्रमंस्थितः // कूर्मागानिप्रविष्टानिकूर्मप्रोतानिकूर्मकः // 24 // प्रसारेमुखपादादिव्यवहारोनकूर्मभित् // जगत्तथाविष्टबीजं बीजमुक्तंचनिर्गमे // 25 // घटःपटोजीवईशइत्यादिव्यवहारभूः // आदृत्यकूर्म दृष्टांतसत्कार्यमुपपादितम् // 26 // सर्वाधारकालइतिवदतापीदमुच्यताम् // सत्कार्यवादोनोकस्मानांगीकृतइतिस्वयम्॥२७॥विशेषोऽन्यत्रयदृष्टंतदन्यत्रस्थितं | // 7 // तव // नित्यजात्यायाश्रयत्वेतत्तद्वयवहृतिर्भवेत् // 28 // आस्तामेतच्चसर्वात्मात्व For Private and Personal Use Only

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