Book Title: Dwait Samrajya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भेदसिध्याभवेत्तव // 87 // भेदसिद्धिस्तदेवस्याविरुद्धाक्रांतिसंभवः // किंचजीवाभिन्नईशोज्ञत्वाद्रामादिवद्भवेत्॥८८॥इत्थमेवेश्वराभिनोजीवोपिभवितुंक्षमः॥ईश्वरेप्यज्ञतापत्तिरितिवक्तुंनशक्यते।।८९॥सर्वात्मत्वादज्ञतापियुक्तैवपरमात्मनः॥१९०॥ सर्वज्ञताल्पज्ञतयोविरोधोनकथंचन / सर्वज्ञत्वव्यापकत्वमल्पज्ञत्वस्यदृश्यते // 91 // स्वाध्यस्तसर्ववेत्तृत्वंसर्वस्यापिहिविद्यते // खानध्यस्तानभिज्ञत्वमपिसर्वस्यविद्यते // 92 // यदीखरोजीवभिन्नस्त्वमेवांगीकरोषितत्॥ 93 // यद्यभिन्नस्तदास्वीयमताविप्रच्युतोभवान् // यत्रेश्वरेजीवभेदःसाध्यस्तैवेत्सिवानवा // 94 // आयेकिं विषयत्वेनाथवाखत्वेनवावद // विषयत्वेतुमिथ्यात्वंस्खत्वेभेदःकथं भवेत् // 95 // नवेत्सिद्भेदसिद्धिःकथंवाक्रियतेत्वया॥अनेनैवप्रकारेणजीवभेदोऽपिधिकृतः // 96 // उपाधिभेदग्राह्यत्वाज्जीवभेदोनवास्तवः // मणिभेदानसूत्रस्यभेदोमालासुदृश्यते // 1 चेदितिशेषः For Private and Personal Use Only

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