Book Title: Dwait Samrajya
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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० // 10 // स्तिचित्प्रो // 77 // किंतुप्राणादियोगेनजीवत्वाध्यासइष्यते // औपाधिकत्वा|न्मिथ्यातद्ब्रह्मत्वंवास्तवंमतम् // 78 // उपाधीनांतुमिथ्यात्वंवाचारम्भणवाक्यतः॥ तस्मादीश्वरभेदोनब्रह्मभेदोपिनास्तिते॥७९॥ वासुपर्णेत्यादिमत्रास्त्वद्भमेणवसार्थाः // प्रत्यक्षवदकीदृक्तेकंदमवगाहते // १८॥जीवेशयोश्चेज्जीवेशीनेंद्रियार्थी स्वयंप्रभौ // कथंभेदस्तयोःस्वीयप्रत्यक्षपथमर्हति // 81 // येनेंद्रियेणयग्राह्यंतत्रभेदोपितेनवै // विरुद्धधर्माक्रांतिश्चनहेतुरुपयुज्यते // 82 // नचप्रात्यक्षिकंज्ञानं हेतूपन्यासमर्हति // हेतूपन्यासतोभेदःसाध्यश्चेदनुमाभवेत् // 83 // दृष्टांत स्तत्रवक्तव्योघटादिःसर्वएवहि // घटादिसर्वभिन्नत्वादभेदोपिनवेत्तदा // 84 // व्यतिरेकेघटादिस्तुदृष्टान्तःस्वयमूह्यताम् // किंचेश्वरोजीवभिन्नःसर्वज्ञत्वादितित्वया // 85 // वक्तुंनशक्यतेतत्रदृष्टांताभावयोगतः // एवंजीवेपीशभेदोऽज्ञत्वावेतोरपि त्वया // 86 // दुःसाधोहेतुनातेनाभेदोपिस्याद्यथाक्रमम् // विरुद्धधर्मसिद्धिश्च // 10 // For Private and Personal Use Only

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