Book Title: Dwait Samrajya
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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलः // अविद्ययाध्यास्यदातेंद्रियैर्भुक्त्वासिभोगवान् // 109 // सर्वोपाधिनियंत्र वात्सर्वज्ञत्वाच्चसर्जनात् // ईशत्वंतवभोक्तृत्वादज्ञवाज्जीवतापिच॥११०॥ यइमं मध्वदेत्यत्रजीवंप्रक्रम्यचाग्रतः // ईशानभूतभव्यस्येत्यभेदोक्तिःसमंजसा // 11 // असंगोदासीनचितईशितृत्वंनयुज्यते // अतईशानशब्दस्यचेश्वरोऽर्थोनशुद्धचित् // // 12 // एतच्छब्देनोमयस्याध्यासाधिष्ठानमुच्यते // तदेवपृष्टंब्रह्मेतितच्छब्देनोप संहृतम् // 13 // जीवेशयोरभेदश्चेल्लक्षणातत्त्वमादिषु॥कथमाश्रीयतेयुष्मत्पूर्वाचा यर्विचारय // 14 // तत्रहेतुद्दयंविद्वित्वदध्यस्ताहिभिन्नता // शुद्धेब्रह्मणिशब्दानां शक्त्ययोगोद्वितीयकः // 15 // वदध्यस्ताभिन्नतातुलद्वोधप्रतिबंधिका // अतस्त्वबोधनायैवलक्षणाप्रोच्यतेबुधैः // 16 // सर्वनाम्नांलक्षणानतैर्थिकेष्टेतिचेच्छृणु॥ ब्रह्मशक्यंनकस्यापिशब्दस्यभवितुंक्षमम् // 17 // निर्धर्मकत्वाच्छबलमीक्षादिजग तःप्रभुः ॥तदर्थस्त्वंपदार्थोऽपिदेहेंद्रियगणान्वितः॥ 18 // अशोधितत्वाच्छोधेतुत For Private and Personal Use Only

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