Book Title: Dwait Samrajya
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |मन्येइतिचेच्छृणुबुद्धिमन् ॥सर्वान्तर्यामिताकातेययेशत्वंहिदुर्घटम् // 89 // व्यवहार नियंतृत्वमुतसत्ताप्रदाता॥ अधिष्ठानस्यधर्मोऽयंयाचसत्ताप्रदाता॥९०॥ यत्सत्तयेश्वरोऽयंतेसत्तावानस्वतस्तथा॥ स्वीयदेहेन्द्रियादीनांनियंतृत्वंतवापिहि॥९॥ प्रतिस्थलंविभिन्नत्वात्सर्वार्थोऽनेकधाभवेत् // यत्किंचित्प्रकृतंतत्तुसर्वशब्दार्थइष्यते // 92 // स्वसर्वदेहेन्द्रियादेनियंतृत्वंयतस्त्वयि ॥अतःमुघटमीशत्वंचिंतांमावहमा वह // 93 // किंचेश्वरः सर्वकर्ताभेदवादेकथं भवेत् // यच्चजीवकृतंतत्तुनेश्वरेणकृतं तव // 94 // तदभावानसर्वस्यकर्तास्यात्तदभावतः // नस्यात्सर्वज्ञतातस्यसन्तिमितापिच // 95 // अतोनेश्वरासद्धिस्तेकथंभेदःप्रसाध्यते // यदिजीवकृततेनकृतं स्यात्तत्कृतंकुतः॥९६॥ नचजीवकृतंतस्मात्सर्वेषामपिचेशता // क्षियंकुरादिकईवंधर्मिग्राहकमानतः॥९७॥ तावत्येवहिविज्ञत्वेकल्प्येसर्वज्ञताकुतः॥ एतावताल्पकर्तृत्वान्जीवकोटौनिवेशितः॥९८॥अधिकज्ञत्वकर्तृत्वेनेश्वरत्वप्रयोजके // आंशि For Private and Personal Use Only

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