Book Title: Dwait Samrajya
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेवजगदीश्वरः // पृथग्देहाभिमानेनाच्छादितेश्वरतातव॥२९॥ विचारेत्वीश्वरत्वं तेकोवावारयितुंक्षमः // नियंपरोक्षईशस्तुजीवोनित्यापरोक्षकः // 130 // तयोरैक्यंकथंचेत्तेतथाध्यासोविचारतः // त्वदध्यासाच्छक्त्ययोगाद्ब्रह्मप्रकरणादपि // 31 // लक्षणातत्त्वमोर्युक्तातथैवासिपदस्यच // लकारार्थानन्वयेनवाक्यंलक्षणयार्थवर // 32 // तदर्थोऽन्वेत्यभेदेनत्वमर्थेनत्वमर्थकः॥ असर्थेनाप्यभेदेननान्यसंसर्गसंभ||वः // 33 // अभेदस्तुनसंसर्गस्तत्त्वेषष्ठीभवेद्यतः // विशेषणेविशेष्येचधर्मत्यागाद खंडता // 34 ॥धर्मिमात्रस्यैकसत्तारूपोऽभेदोनखंडकृत् // येत्वभेदेऽपिखंडत्वभीत्याऽभेदत्यजंतिहि // 35 // धर्मिमात्रोपस्थितिरित्याहुर्मान्यायतोबुधाः // उपस्थिते प्रमात्वंचपदानांवाक्यतापिच // 36 // कथंनिर्वाह्यतेब्रह्मपदादपिभवेत्पमा // मानाभावश्चतत्त्यागेनचमानमखंडता॥३७॥ यतोबोधस्वरूपंतत्फलंबोधस्यवाभवेत् // घटोघटइतीवात्रनाभेदश्चेदलंशृणु॥३८॥ तत्त्वंपदाभ्यांशबलावी For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70