Book Title: Dwait Samrajya Author(s): Publisher: View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूतेनसर्वस्यानुभवेनहि॥प्रमाणानिहिसिध्यन्तितैःसिइंदैतमक्षतम् // 8 // इतिचेदनु भूतिस्तुनप्रामाण्यप्रयोजिका॥ मेयस्यापिचमानत्वंभवेत्तवमतेतदा // 9 // येनरूपेणयज्ज्ञातंतत्तथेतिविनिश्चयः // कर्तुनशक्यतेक्वापिरज्जुःसर्पायतेनहि // १०॥मेयसिद्धयैवमानत्वंमानसिद्धथैवमेयता॥ अन्योन्याश्रयदोषेणनसिध्येदुनयंतव // 11 // भ्रमप्रमासमानस्यानुभवस्यनकस्यचित् // 12 // साधकत्वंभवेनूनमतोमाना न्तरंवद // मानाभावात्प्रमाणानामसिद्धिरितिहेतुना // द्वैतासिद्धिर्यदिश्वेत्तावकीनमतेऽपिहि // किंमानमहयेऽस्मिश्चेहन्ध्यायास्तनयोऽपिकः // 13 // यदिस्यातनयस्तस्याःकथंवन्ध्येतिगीयते॥तनयेऽपिचवन्ध्याचेत्प्रश्नोऽयमुपपद्यते // 14 // मानमेयादिविरहेमीमांसामानगोचरा॥उपहासायतेभूयाइन्ध्यासुतइवाधुना॥१५॥ मानाभावादद्वयस्यनसिद्धिरितिचेत्तदा // पुत्राभावानसिद्धिःस्याहन्ध्यायाअपितेमते // १६॥पुत्राभावःस्वरूपंचेन्मानाभावोऽपितस्यतत् ॥शून्यवादप्रसंगश्वेच्छून्यदैत For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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