Book Title: Dwait Samrajya
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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मैवध्रुवशब्दार्थ परंध्रुवमितिश्रुतेः॥ यस्मादभिनयच्चस्यात्तस्यकार्यनतद्भवेत् // 48 // यथामृनमृदःकार्यमितिचेबुद्धिमान्भवान् // अभिन्नत्वंचकार्यस्यश्रुत्यैवांगीकृतंयतः // 49 // भवतापितदेष्टव्यंश्रुत्येकशरणेनहि // अभिन्नत्वविरोधेनकार्यत्वंनेष्यतेयदि // 50 // तदाभ्रमानुवादेनकृतार्थाःश्रुतयोऽनघाः॥ किंचप्रत्यक्षमानेनभेब्रुवचरेणहि // 51 // प्रमाणान्तरसिद्धत्वादनुवादित्वमिष्यताम् ॥भेदेऽभेदेऽपिकार्यत्वंनोपपत्रं कथंचन // 52 // व्याप्तिद्वयविरोधेनभ्रमइत्येववास्तवम् ॥आरोपितस्याधिष्ठानाभेदोरज्जुभुजंगवत् // 53 // हित्वाधिष्ठानमारोप्यमप्रसिद्धयतस्ततः ॥अधिष्ठानेसगारोप्योदोनास्तिकथंचन॥५४॥हित्वेदमर्थरजतंनप्रतीयेतकेनचित् ॥अतएवविजतीयभेदोऽपिचनिराकृतः॥५५॥हाटकस्थस्यरौप्यस्यभेदेऽप्यारोपितस्यतु // नभेदोस्तीदमर्थेहिचैकासत्तातयोर्यतः॥५६॥आरोपितंहाटकस्थमितिचेच्छृणुबुद्धिमन्अत्यत्वंकथंतत्रनिर्वाह्यभवतावद // 5 // अत्रत्यत्वंशुक्तिगतंरजतेभातिचेहद॥आप For Private and Personal Use Only

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