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४१. समस्या विचारशून्यता की
अच्छाई मनुष्य में होती है। बुराई भी मनुष्य में होती है। सामान्यतः व्यक्ति की दृष्टि वहां पहुंचती है, जहां से उसकी अपनी अच्छाई उजागर हो। वह दूसरों की ओर देखता है। उस समय उसका नजरिया बदल जाता है। अपने सन्दर्भ में दूसरे को देखने की मनोवृत्ति क्षीण हो रही है। दूसरे की बुराई देखने से मिलेगा क्या? कौन व्यक्ति कितना बुरा है? वह किस प्रकार की बुराइयां करता है? इन सवालों में उलझने से लाभ क्या है? सवाल यह होना चाहिए कि किसी भी बुराई की रोकथाम कैसे हो?
बुराई व्यक्तिगत भी होती है और सामूहिक भी होती है। उसके इतने रूप हैं कि कोशिश करने पर भी उसका मूलभूत चेहरा सामने नहीं आता। बुराई के स्रोत को खोजा जाए तो संभव है उसकी रोकथाम के उपाय भी कारगर हो सकें। जरूरी नहीं है कि उपायों की खोज करने वाला व्यक्ति शत-प्रतिशत सफल हो जाएगा। पर वह उनकी आहट को पहचान ले तो भविष्य में आने वाली समस्या का समाधान खोजने में सुविधा हो सकती है। किसी भी तथ्य को लम्बी दूरी तक देखने का दर्शन परिस्थितियों को उस मोड़ तक पहुंचा सकता है, जहां से व्यक्ति के जीवन को नई दिशा उपलब्ध हो सकती है।
कुछ लोग अपने सामने से गुजरती परिस्थितियों को देखकर भी अनदेखा करते हैं। अंधे लोगों के बीच कितनी ही देर आईना घूमता रहे, वे अपनी सूरत नहीं देख सकते। अन्धापन केवल आंखों का ही नहीं होता, विचारों का भी होता है। विचारशून्यता और वैचारिक आग्रह सत्य को स्वीकार करने में सबसे बड़ी बाधाएं हैं। विचारशून्यता इस युग की एक गंभीर समस्या है। राजनेताओं और धर्मनेताओं की ही नहीं, दार्शनिकों और साहित्यकारों की
समस्या विचारशून्यता की : ८७
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