Book Title: Diye se Diya Jale
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 204
________________ यहां की मुर्गियां सोने के अंडे देती थीं। मेरी अपनी धारणा यह है कि उस समय देश की जनता सीधा-सादा जीवन जीती थी। मोटा खाना, मोटा पहनना, श्रम, संयम और सादगी का जीवन, कृत्रिम आवश्यकताओं की कमी, चरित्र के प्रति निष्ठा, भाईचारे की भावना और मन का संतोष-ये सब ऐसी वृत्तियां हैं, जो व्यक्ति या राष्ट्र को समृद्धि के शिखर तक ले जा सकती हैं। दूसरी बात, समृद्धि या असमृद्धि कोई स्थाई स्थितियां नहीं हैं। इनमें बदलाव आता रहता है। जनसंख्या की वृद्धि, संस्कृति की विस्मृति विलासिता, सुविधाभोगी मनोवृत्ति, ईमानदारी का अभाव, कृत्रिम आवश्यकताओं का विस्तार आदि कुछ ऐसे तत्त्व हैं, जो समृद्धि के प्रत्यक्ष शत्रु हैं। नेतृत्व, रक्षा प्रणाली, व्यापारिक स्थितियां और टेक्नोलॉजी आदि का भी इसमें हाथ रहता है। हम तो इस संबंध में इतना ही कह सकते हैं कि साइन्स और टेक्नोलॉजी के साथ-साथ नीति, चरित्र, संयम और प्रामाणिकता के संस्कार पुष्ट होते रहें तो बदहाली भोगने की नौबत नहीं आएगी। जिज्ञासा-हमारे यहां जो भीषण आर्थिक विषमता है, उसे कैसे कम किया जाए? समाधान-समाज में आर्थिक विषमताएं कब कहां नहीं थीं? कोई भी समय हो और कोई भी देश, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब आदि वर्गों का अस्तित्व प्रायः सदा रहा है। इसका कारण है भीतरी आकांक्षाओं का उभार और पदार्थों की कमी। आकांक्षाएं कम हों और पदार्थ पर्याप्त हों तो व्यवस्था में समता का प्रयोग किया जा सकता है। किन्तु सामाजिक परिवेश में यह बहुत कठिन है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति आकांक्षाओं के संयम का सिद्धांत स्वीकार करे तो एक सीमा तक विषमताओं को कम किया जा सकता है। जिज्ञासा-वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था की कमजोरियों एवं नई पीढ़ी की भूमिका के बारे में आपका क्या मत है? समाधान-प्रचलित शिक्षा-पद्धति को गलत मानकर उसके परिवर्तन या सुधार पर अब तक बल दिया जाता रहा है। पर हमारे अभिमत में शिक्षापद्धति गलत नहीं, बल्कि अधूरी है। जब तक संयम, अहिंसा, सहिष्णुता और भावनात्मक विकास की बात शिक्षा के साथ नहीं जुड़ेगी, तब तक बौद्धिकता १८६ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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