Book Title: Diye se Diya Jale
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 207
________________ जिज्ञासा-पूर्ण जीवन किस तरह जिया जाता है? समाधान-शायद आप यह सवाल सामाजिक व्यक्ति के बारे में पूछ रहे हैं। समाज में रहने वाला व्यक्ति अगर अणुव्रती जीवन जीए तो वह अपने आप में पूर्ण जीवन हो सकता है। अणुव्रती जीवन दो अतियों के बीच का जीवन है। एक ओर अध्यात्म की पराकाष्ठा-संपूर्ण अहिंसा और संपूर्ण अपरिग्रह का जीवन । दूसरी ओर भोगवाद की पराकाष्ठा-बिना प्रयोजन हिंसा और आवश्यकता से अधिक संग्रह। प्रथम कोटि का जीवन निश्चय ही सब लोग जी नहीं सकते। दूसरी कोटि का जीवन किसी के लिए भी काम्य नहीं हो सकता। अणुव्रती न तो पूर्ण रूप से अहिंसक होता है और न क्रूर हत्यारा। सद्गृहस्थ का जैसा जीवन होना चाहिए, वैसे आदर्श जीवन का मॉडल होता है अणुव्रती जीवन। ऐसा जीवन जीया जा सकता है और यह सबके लिए अच्छा है। . जिज्ञासा-राष्ट्रीय एकता परिषद में आपको मनोनीत किया गया है। राष्ट्रीय एकता आपकी राय में कैसे सधेगी? समाधान-राष्ट्रीय एकता सापेक्ष शब्द है। अनेक राज्यों, शहरों, गांवों में बंटा हुआ राष्ट्र किसी अपेक्षा से ही एक हो सकता है। जब राष्ट्र में भेद हैं और उनकी उपयोगिता है तो निरपेक्ष एकता न तो सध सकती है और न वह उपयोगी होगी। सापेक्ष एकता का पहला बिंदु है देश के नागरिकों की कर्तव्यनिष्ठा। वे अपने विचारों, कार्यों और व्यवहारों से किसी का अहित न करें। किसी का हित हो सके या नहीं, कम-से-कम अहितकारी प्रवृत्तियों को हतोत्साह कर दिया जाए, यह भी एक बड़ा काम है। राष्ट्रीय एकता के विघटन का बीज देश के विभाजन के साथ ही बो दिया गया था। विगत कुछ दशकों से वह अधिक जोर पकड़ रहा है। सत्ता लिप्सा, स्वार्थी मनोभाव, अप्रामाणिकता, एकांगी चिंतन आदि कुछ ऐसी प्रवृत्तियां हैं, जो राष्ट्रीय एकता के प्रासाद की बुनियाद को हिलाने वाली हैं। सांप्रदायिकता, जातिवाद, भाषावाद, अलगाववाद आदि की मानसिकता भी एकता में बाधक है। जो लोग एकता में रस लेते हैं, उनका दायित्व है कि वे विघटनकारी प्रवृत्तियों से स्वयं बचें तथा औरों को बचाएं। अन्यथा उनकी आकांक्षा मात्र जिज्ञासा : समाधान : १८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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