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बैठकर कोई प्रयोग भले ही नहीं किया हो, पर उनके अनुभव की प्रयोगशाला बहुत बड़ी और बहुत समृद्ध थी। उन्होंने जड़ और चेतन-दोनों तत्त्वों पर बहुत काम किया। पुद्गल और जीव के बारे में उन्होंने जितनी सूक्ष्म और विशद अवधारणाएं दीं, कोई भी वैज्ञानिक अब तक भी वहां नहीं पहुंच पाया है। पुद्गल के अंतिम अविभागी अंश परमाणु के बारे में विज्ञान अब भी मौन है। आत्मा तो उसके यंत्रों का विषय बन ही नहीं सकती।
व्रत अपने आप में एक वैज्ञानिक अवधारणा है। पदार्थों की सीमा है। इच्छाएं असीमित हैं। ससीम और असीम की टकराहट के बीच भोगोपभोग की सीमा का सिद्धांत एक वैज्ञानिक सचाई से साक्षात्कार कराता है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए विज्ञान के स्वर अब मुखर हुए हैं, जबकि भगवान महावीर ने ढाई हजार वर्ष पहले ही पृथ्वी, पानी, वनस्पति आदि के संयम का सूत्र दे दिया था। एक दृष्टि से हम अध्यात्म और विज्ञान को विभक्त कर ही नहीं सकते। विज्ञान नियमों के आधार पर चलता है। अध्यात्म के भी अपने नियम हैं। विज्ञान ने पदार्थ के नियम खोजे हैं और अध्यात्म ने चेतना के नियम खोजे हैं। दोनों की खोज अब भी जारी है। ___ अणुव्रत कोई काल्पनिक तत्त्व नहीं है। भगवान् महावीर ने धर्म के वर्गीकरण में अणुव्रत शब्द का प्रयोग किया। हमने वहीं से इस शब्द को ग्रहण किया है। इसकी अपनी दार्शनिक पृष्ठभूमि है। दर्शन के परिप्रेक्ष्य में ही इसकी वैज्ञानिकता को समझा जा सकता है। विज्ञान का सम्बन्ध केवल लेबोरेटरी में होने वाले प्रयोगों से ही है तो हमें यह स्वीकार करने में भी संकोच नहीं है कि अणुव्रत की ऐसी कोई प्रयोगशाला नहीं है। इसकी एक मात्र प्रयोगशाला है मनुष्य का जीवन ।
जिज्ञासा-जितने धर्म-सम्प्रदाय हैं, वे सब अपनी-अपनी सीमा में काम करते हैं। उन सबका स्वतन्त्र अस्तित्व है। ऐसी स्थिति में सहिष्णुता-असहिष्णुता का प्रश्न ही क्यों उठाया जाता है?
समाधान-सम्प्रदाय का निर्माण किसी विशेष मान्यता पर होता है। मनुष्य अपनी मान्यता के परिप्रेक्ष्य में अधिक सोचता है। इसीलिए दूसरी मान्यता के प्रति उसके मन में बौखलाहट पैदा हो जाती है। वह इस बात को सहन नहीं कर पाता कि अपने विचारों से विरोधी विचार उसके सामने
जिज्ञासा : समाधान : १४७
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