Book Title: Diye se Diya Jale
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 182
________________ संख्या और कम हो जाएगी। किन्तु इसके साथ एक दूसरा दृष्टिकोण भी है- 'जो लोग जैन नहीं हैं, फिर भी अहिंसा में आस्था रखते हैं, उन्हें कर्मणा जैन क्यों नहीं माना जाए? जिज्ञासा-भगवान् महावीर जातिवाद को अतात्त्विक मानते थे। फिर भी उनके द्वारा प्रवर्तित धर्म-जैन धर्म आज एक जाति विशेष के कटघरे में आबद्धं क्यों हो गया? समाधान-भगवान् महावीर ने जिस धर्म का प्रवर्तन किया, वह उनके अनुयायियों द्वारा इतना धूमिल कर दिया गया कि स्वयं महावीर आकर देखें तो सोचेंगे कि क्या यह वही धर्म है, जो मेरे द्वारा प्रवर्तित है? उनका धर्म आत्मशुद्धि या आत्मशान्ति के लिए था। धर्म के आचरण से जीवन पवित्र बनता था। इस नितान्त शुद्ध धर्म में ऐसे तत्त्वों की घुसपैठ हो गई, जो उसे क्रियाकाण्डों तक ही सीमित रखते हैं। लोकरंजन के लिए या रूढ़ता के सहारे चलने वाला धर्म अपने स्वरूप की सुरक्षा कैसे कर पाएगा? कब थी धर्म में छुआछूत की भावना! कब थी धर्म पर जातिवाद की प्रतिबद्धता! कब था धर्म में द्रव्य पूजा का प्रचलन ! कब था धर्म में परिग्रह का प्रचलन ! कब था धर्म में परिग्रह का प्रवेश ! स्वयं भगवान् महावीर को कितने आडम्बर और परिग्रह से जोड़ दिया गया है। मेरा यह स्पष्ट अभिमत है कि भगवान महावीर का धर्म जातिवाद, वर्गवाद और वर्णवाद के शिकंजों में कभी बन्दी नहीं हो सकता । इस अवधारणा के आधार पर ही आचार्य भिक्ष ने सार्वभौम धर्म की घोषणा की। उनकी घोषणा के आधार पर ही हमने अणुव्रत और कर्मणा जैन का अभिक्कम प्रारंभ किया। इस अभिक्रम के माध्यम से अन्य जाति के लोग जैन धर्म से जुड़कर अपने जीवन को नई दिशा देने के के लिए कृतसंकल्प हो रहे हैं। कुछ और आचार्यों ने भी इस दृष्टि से काम किया है। अब हमारे सामने समय भी अनुकूल है। सभी जैन सम्प्रदायों के चिन्तनशील लोग पुरुषार्थ करें तो जैन धर्म को बहुत व्यापक बनाया जा सकता है। जिज्ञासा-महावीर ने जिस भूमि पर अहिंसा की अमृत वृष्टि की, उस भूमि पर हिंसा का खुला रूप देखकर कुछ लोग पूछ रहे हैं कि वहां महावीर की अहिंसा का वर्चस्व क्यों नहीं है? साम्प्रदायिक उन्माद या उग्रवाद के रूप १६४ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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