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रहता हुआ मैं साधु-साध्वियों को भी इस दिशा में प्रेरित करता रहूंगा।
जिज्ञासा-जैसा कि आपने आचार्य पद का विसर्जन किया है, क्या 'अणुव्रत अनुशास्ता' पद को लेकर भी आपका कोई चिंतन है?
समाधान-अणुव्रत अनुशास्ता कोई पद नहीं है। न तो किसी ने मुझे यह पद दिया और न मैंने इस संबोधन को पद की दृष्टि से स्वीकार ही किया। यह तो एक विशेषण है। पहले मुझे अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तक कहा जाता था। इन वर्षों में अणुव्रत अनुशास्ता शब्द अधिक प्रचलित हो गया। अनुशास्ता का अर्थ है प्रशिक्षक। अणुव्रत का प्रशिक्षण देना मेरे कार्यक्रमों का एक अंग है। इसलिए इस शब्द-प्रयोग पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यदि इसे पद माना जाता है तो मैं इससे मुक्त होने की बात भी सोच सकता हूं।
जिज्ञासा-आपने अपने युग में संप्रदाय की परिभाषा बदल दी और धर्म को नए परिवेश में प्रस्तुति दी। आपके नए विचारों से प्रभावित होकर नास्तिक कहलाने वाले लोग भी धर्म को मानने लगे। क्या आपके अनुयायी यानी तेरापंथी श्रावक धर्म एवं सम्प्रदाय के बारे में आपके विचारों से सहमत हैं? क्या वे मानव धर्म के अनुयायी होने में गौरव का अनुभव करते हैं?
समाधान-मैं इस बात को तेरापंथी या गैर तेरापंथी के साथ नहीं जोड़ता। कोई व्यक्ति तेरापंथी हो या नहीं, चिंतनशील, प्रबुद्ध और अनाग्रही है तो वह मेरे विचारों से असहमत हो नहीं पाएगा। जहां चिंतन की खिड़कियां बंद हैं, परंपराओं का आग्रह है और धर्म के उपासना पक्ष को ही महत्त्व प्राप्त है, वहां धर्म का असाम्प्रदायिक रूप मान्य नहीं हो पाता। इसलिए जो लोग जन्मजात तेरापंथी हैं, पर धर्म की अवधारणा में अपने विवेक और ज्ञान का उपयोग नहीं करते हैं, उनके बारे में कोई निश्चित राय नहीं दी जा सकती। __ इस संदर्भ में मेरा अभिमत यह है कि जन्मना धार्मिक व्यक्ति अनुयायी हो सकता है, पर उसके धार्मिक होने की गारण्टी नहीं है। किसी धार्मिक कुल में पैदा होना किसी के हाथ की बात नहीं है, पर सहज प्राप्त संस्कारों अथवा धार्मिक वातावरण के कारण कर्मणा धार्मिक बनने में सुविधा हो सकती है। मानव धर्म का जहां तक प्रश्न है, मेरी दृष्टि में तेरापंथ धर्म अपने आप में मानव धर्म ही है। पर इसने सम्प्रदाय का रूप ले लिया या इसे दे
१७६ : दीये से दीया जले
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