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महावीर जयन्ती (भगवान् महावीर का जन्म दिन), दीपावली (भगवान् महावीर का निर्वाण दिन), अक्षय तृतीया (भगवान् ऋषभ की तपस्या के पारणा का दिन) आदि जैन पर्यों को एक निश्चित और व्यवस्थित पद्धति से मनाना। खान-पान की शुद्धि-जैन शाकाहारी होता है। उसके लिए मद्य-मांस
का सेवन निषिद्ध रहे। • व्यसन-मुक्त जीवन जीना। • निरपराध प्राणी की हत्या, आत्महत्या और भ्रूण-हत्या नहीं
करना। • क्रूर हिंसा-जनित किसी भी वस्तु का उपयोग नहीं करना। • जातिवाद, छुआछूत जैसी अमानवीय प्रवृत्तियों को प्रश्रय नहीं देना।
जिज्ञासा-आमतौर पर कहा जाता है कि जैन धर्म के अनुसार शरीर को कष्ट देना धर्म है। यह वास्तविकता है या इस सम्बन्ध में आपकी अवधारणा भिन्न है?
समाधान-शरीर को कष्ट देना धर्म है, यह धारणा सही नहीं है। जैनधर्म में अज्ञान-कष्ट को कभी स्वीकृति नहीं मिली। साधना करते समय किसी प्रकार का कष्ट उपस्थित हो, उसे समभाव के साथ सहन करने का विधान है। धार्मिक व्यक्ति धर्म की आराधना करने के लिए कोई-न-कोई व्रत स्वीकार करता है। वह उपवास करे, रात्रिभोजन का परिहार करे, रात्रि में पानी पीने का परित्याग करे या अन्य कोई संकल्प ले, उसकी परिपालना में कष्ट की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। पर वह कष्ट शरीर को कष्ट देने के लिए नहीं झेला जाता। मुख्य उद्देश्य है साधना। साधना काल में कष्ट आए, उन्हें सहन नहीं करना, लक्ष्य से विमुख होना है।
जिज्ञासा-शताब्दी बीत जाने के बाद जयाचार्य द्वारा रचित 'चौबीसी' (तीर्थंकर स्तवना) को सार्वजनीन व्यापकता देने की बात आपके मानस में क्यों उभरी? ___समाधान-चौबीसी तेरापंथ समाज में काफी व्यापक रही है। मैंने अपने युग में इसको जन-जन के मुंह पर थिरकते हुए देखा हैं। इसकी सहज-सरल रचनाशैली, भक्तिप्रवणता, रागों की रोचकता, शब्द संरचना का सौष्ठव,
जिज्ञासा : समाधान : १६६
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