________________
भयानक या बीभत्स रूप में चित्रित किया गया है।
तीसरा कारण हो सकता है युग का प्रवाह। उस युग में ऐसे शब्दों या प्रतीकों का प्रयोग मान्य रहा होगा। वर्तमान परिवेश में कोई कवि ऐसे प्रयोग करे तो वह विवादास्पद बन सकता है।
जिज्ञासा-जयाचार्य ने 'चौबीसी' में गुणोत्कीर्तन को प्रधानता दी है। क्या आप अनुभव करते हैं कि तत्कालीन प्रचलित परम्पराओं के विभिन्न भक्तिमार्गों का सीधा प्रभाव उन पर पड़ा है?
समाधान-गुणोत्कीर्तना प्रमोदभावना है। साधना के क्षेत्र में मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ-ये चार भावनाएं बहुत उपयोगी हैं। गुणी व्यक्ति के गुणगान करने से निर्जरा होती है। भावों की प्रबलता में तीर्थंकर गोत्र का बंधन भी संभव है। तत्कालीन परम्पराओं या भक्तिमार्गों के प्रभाव को सर्वथा अस्वीकार क्यों करें? पर संभावना यही लगती है कि जयाचार्य की इस क्षेत्र में रुचि थी। गुणोत्कीर्तना की विधा उनके द्वारा सहज स्वीकृत थी।
जिज्ञासा-'विघन मिटै समरण कियां' -जयाचार्य की आस्था का सूत्र है। सार्ध शताब्दी तक इस आस्था से धर्मसंघ जुड़ा हुआ है। जिज्ञासा है कि समय की लम्बी दीर्घा में क्या धर्मसंघ के इतिहास में चौबीसी स्तवना द्वारा दैविक उपसर्ग, रोग एवं विघ्न-बाधाओं का शमन करने वाली जैसी चामत्कारिक घटनाओं का संग्रहणीय एवं उल्लेखनीय प्रेरक संकलन हमारे पास है?
समाधान-कष्ट की स्थिति में इष्ट का स्मरण कष्ट का निवारण करता है और मनोबल पुष्ट करता है। 'विघन मिटै समरण कियां'-जयाचार्य का यह आस्था सूत्र आज लाखों लोगों का आस्थासूत्र बन चुका है। इस आस्थासूत्र से उनको त्राण भी मिल रहा है। घटनाओं के संकलन का जहां तक प्रश्न है, यह तो रोजाना की बात है। कितने घटना-प्रसंग संकलित किए जाएंगे। सैकड़ों घटनाएं संकलित हैं भी। इस वैज्ञानिक युग में कुछ लोग ऐसी घटनाओं को अन्धविश्वास कहकर अस्वीकार कर रहे हैं। करें, पर इससे क्या अन्तर आएगा? वैज्ञानिक रिसर्च पदार्थ पर होती है। आत्मा के बारे में अब तक भी विज्ञान मौन है। जो लोग आत्मा एवं परमात्मा को मानते हैं, जिन लोगों की आस्था प्रबल है, वे चौबीसी का स्वाध्याय कर शारीरिक एवं मानसिक संक्लेश से मुक्ति का अनुभव करते हैं। इस अनुभूत सत्य को
१७२ : दीये से दीया जले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org