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भगवान् महावीर ने एक क्रान्ति की। क्या वर्तमान में उस क्रान्ति की मशाल को अधिक प्रदीप्त करने की अपेक्षा है?
समाधान-समानता का दर्जा या अधिकार की बात के साथ मेरी सहमति नहीं है। मैं कहता हूं कि नारी को अपना अधिकार मिले। अपनी स्वतंत्रता मिले । भगवान् महावीर ने यही काम किया था। जहां बराबरी का प्रश्न आता है, वहां टकराव की स्थिति बनती है। नारी और पुरुष-दोनों ही अपनी सीमाओं को समझें और अपने अधिकारों का उपयोग करें।
वर्तमान परिस्थितियों में महिला जागरण का दावा किया जा रहा है, पर मुझे ऐसा अनुभव होता है कि अभी सर्वांगीण जागरण की दिशाएं उन्मुक्त नहीं हुई हैं। उनके लिए महिलाओं को अपनी पहचान बनानी होगी। वे अपने अस्तित्व के प्रति जागरूक रहें, प्रवाहपाती न बनें, दायित्व को समझें और विवेक के साथ आगे बढ़ें। पुरुष स्वयं उनका सहयोग करेंगे। अभी तक अस्तित्व-बोध वाली महिलाएं कम हैं, दायित्व-बोध वाली तो और भी कम हैं। जब तक महिलाएं स्वयं नहीं जागेंगी, उनका सहयोग कौन करेगा? युग के साथ जो कुछ होता है, होता रहेगा। गंभीर चिन्तन के साथ करणीय कामों को प्राथमिकता दी जाए तो महिलाओं की शक्ति और अधिकार को अधिक सार्थक बनाया जा सकता है।
जिज्ञासा-जैनधर्म में जन धर्म या विश्व धर्म बनने की क्षमता है, ऐसा आपने बताया। वह कौन-सा अभिक्रम है, जिसके द्वारा यह कथन क्रियात्मक रूप ले सकता है?
समाधान-जैन धर्म में जनधर्म बनने के पर्याप्त तत्त्व हैं। यहां कुछ तत्त्वों का उल्लेख किया जा रहा है
१. जैन धर्म मानवतावादी है। जाति और रंग के आधार पर मनुष्य को विभक्त नहीं करता। एक्का मणुस्सजाई-मनुष्य जाति एक है। इस सिद्धांत में उसका विश्वास है।
२. जैन धर्म ने धर्म के सार्वभौम सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है। अपने सम्प्रदाय से बाहर जो हैं, उनके लिए भी मोक्ष अथवा परमात्मा बनने का दरवाजा बन्द नहीं किया।
१६६ : दीये से दीया जले
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