Book Title: Diye se Diya Jale
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 166
________________ आएं। हर साम्प्रदायिक व्यक्ति को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता की बात मान्य है, पर अपने से भिन्न विचारों के प्रति उसकी कोई सहानुभूति नहीं है। दूसरे सम्प्रदाय का व्यक्ति अपने सम्प्रदाय की ओर आकृष्ट होकर धर्म-परिवर्तन करता है, उसे उदारचेता, स्वतन्त्र चिन्तन का पक्षपाती, निर्भीक, साहसिक आदि उपाधियों से सम्मानित किया जाता है। किन्तु अपने सम्प्रदाय का कोई व्यक्ति सकारण धर्म-परिवर्तन करता है तो भी उसे बुरा माना जाता है। इससे सम्प्रदायवाद का विष फैलता है और धर्म जैसा शुद्ध तत्त्व विकृत हो जाता है। इसलिए सम्प्रदायों के प्रति सहिष्णु बने रहने की बात हर व्यक्ति के अपने हित में है। असहिष्णु मनोवृत्ति घृणा, स्पर्धा और ईर्ष्या के मनोभावों का सृजन करती है। जिस समय जो व्यक्ति या सम्प्रदाय शक्तिसम्पन्न होता है, जिसका जन-बल-प्रबल होता है, वह विरोधी बात पसन्द नहीं करता और दूसरों के स्वतंत्र अस्तित्व में बाधा उत्पन्न कर देता है। इसलिए सहिष्णुता का विकास आवश्यक है। जिज्ञासा-विभिन्न सम्प्रदायों का अस्तित्व सहिष्णुता के लिए कसौटी है। यदि सम्प्रदाय समाप्त हो जाये तो सहिष्णुता किसके प्रति होगी? किन्तु सम्प्रदायवाद के रहते हुए असहिष्णुता का अन्त कैसे सम्भव है? ___समाधान-मेरी दृष्टि में सम्प्रदायवाद और असहिष्णुता दो भिन्न स्थितियां नहीं हैं। मेरे सम्प्रदाय द्वारा स्वीकृत सिद्धान्त ही यथार्थ हैं, यह चिंतन सम्प्रदायवाद है और आगे जाकर यही असहिष्णुता में परिणत हो जाता है। असहिष्णुता का अन्त संभव है। वर्तमान परिस्थिति के सन्दर्भ में इसकी संभावना काफी बढ़ रही है। कोई भी समाज, राज्य या जाति असहिष्णु बनकर अपना हित नहीं साध सकती। असहिष्णुता के भयंकर दुष्परिणामों ने मनुष्य की चेतना को झकझोर डाला है। आज सहिष्णुता का मूल्य आंका जा रहा है और अतीत की अपेक्षा उसका क्षेत्र भी व्यापक बना सहिष्णुता का प्रचार शिष्ट समाज के उच्च चिन्तन की धारा है। सहिष्णुता का स्वर प्रबल होने से व्यक्ति में सिद्धान्त के अनुरूप धारणा का निर्माण हुआ है। भावी पीढ़ी के संस्कार इस विचार-सरणि से प्रभावित हैं। अतः परम्परा-सापेक्षता, सम्मान और विचार-विनिमय का क्षेत्र खुल रहा है। १४८ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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