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का त्यों है। हिंसा की सत्ता को चुनौती नहीं दी जा सकती, पर मनुष्य की हिंसक मनोवृत्ति में थोड़ी भी दुर्बलता आती है तो वह हिंसक के प्रयोग का परिणाम है। आज की मानसिकता में निःशस्त्रीकरण, शस्त्र परिसीमन और युद्ध को टालने जैसे मनोभाव अहिंसा की व्यावहारिक फलश्रुति नहीं है तो क्या है?
अणुव्रत के क्षेत्र में कोई प्रयोग नहीं हो रहा है, ऐसी बात भी नहीं है। अणुव्रत प्रशिक्षण शिविरों में अणुव्रत दर्शन को जीवनस्पर्शी बनाने का प्रशिक्षण बराबर दिया जा रहा है। अणुव्रत आचारसंहिता केवल उपदेश की वस्तु बनकर न रह जाए, इसी दृष्टि से प्रेक्षाध्यान पद्धति का आविर्भाव हुआ। जीवनविज्ञान का भी यही उद्देश्य है। सन् १९६० के वर्ष को अणुव्रत वर्ष के रूप में मनाने के पीछे भी यही दृष्टिकोण रहा है। अणुव्रत का वैचारिक पक्ष पूर्ण रूप से व्यावहारिक बन जाएगा, यह अति कल्पना है। उसे जितना व्यावहारिक बनाया जा सकता है, उसके लिए प्रयास जारी है।
जिज्ञासा-आर्थिक असदाचार के युग में आम आदमी अणुव्रत की आचारसंहिता को स्वीकार करने में कठिनाई का अनुभव करता है। क्या इस सन्दर्भ में अणुव्रत के पास कोई व्यावहारिक रास्ता है? ___समाधान-जो लोग कठिनाई का अनुभव करते हैं, उन्होंने अणुव्रत की आचारसंहिता को गहराई से समझने का प्रयास नहीं किया। प्रत्येक व्रत को उसके सही परिप्रेक्ष्य में समझा जाए तो यह कठिनाई समाप्त हो सकती है। हम जानते हैं कि आज की परिस्थितियों में कठोर व्रतों को लेकर चलना सीधा काम नहीं है। इस दृष्टि से आचारसंहिता के निर्धारण में पूरा ध्यान दिया गया है। उदाहरण के रूप में रिश्वत लेना और देना-दोनों अपराध हैं, आर्थिक असदाचार हैं । किन्तु वर्तमान युग में रिश्वत लेना जितना सरल है, न देना उतना ही कठिन है। इसलिए अणव्रत की सीमा है-'रिश्वत नहीं लूंगा।' रिश्वत देना नैतिकता नहीं है। फिर भी इसे अणुव्रत की प्रथम भूमिका में निषिद्ध नहीं माना गया। क्योंकि आम आदमी ऐसा किए बिना सुविधा से जी नहीं सकता। यही बात प्रामाणिकता की है। उसकी भी अपनी सीमा है। अणुव्रत के वर्गीय नियमों से उस सीमा का बोध किया जा सकता है।
जिज्ञासा : समाधान : १४५
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