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४०. आस्था के दो आयाम
मनुष्य की आस्था को दो आयामों में देखा जा सकता है। एक आयाम है-सुविधाभोगी मनोवृत्ति। इस मनोवृत्ति वाले व्यक्ति श्रम से दूर भागते हैं। जीवन स्तर ऊंचा पसन्द करते हैं। जीवन-स्तर से उनका अभिप्राय कोठी, कार, टी. वी., फ्रिज, कूलर, ए. सी. आदि साधनों की उपलब्धि से है। इस उपलब्धि के लिए वे गलत रास्ते पर चल सकते हैं, गलत उपाय काम में ले सकते हैं, शरारतपूर्ण ओछी हरकतें कर सकते हैं, पर अपने आपको अच्छा प्रमाणित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ते। क्योंकि उनकी आस्था मनुष्य जीवन का सुख भोगने में है।
मनुष्य की आस्था का दूसरा आयाम है- चरित्र की पराकाष्ठा। इस आस्था को जीने वाला मानता है कि आन्तरिक पतन से बाहरी पतन के दरवाजे खुल जाते हैं। जो व्यक्ति धन-वैभव या सुविधा को चरित्र से अधिक मूल्य देता है, वह अपने मन में ईमानदारी की ललक नहीं जगा सकता। इस ललक के बिना जीवन सरल और साफ-सुथरा नहीं हो सकता। जीवन की विसंगतियों से बचने, मानवीय मूल्यों को जीने और संपन्नता में छिपी हिंसक स्पर्धा से दूर हटने के लिए अपने आपको बदलने का संकल्प करना होगा। जो अभी नहीं बदल सकता, वह कभी नहीं बदल सकता-इस आस्था की प्रेरणा से ही मनुष्य चरित्र के शिखर पर आरूढ़ हो सकता है।
कुछ लोग महावीर को अपना आदर्श मानते हैं। कुछ लोगों का विश्वास बुद्ध में है। कुछ लोग गांधी के अनुयायी हैं। कुछ लोगों की आस्था इसी कोटि के किसी महापुरुष में हो सकती है। प्रश्न यह है कि क्या सही अर्थ में ऐसे महापुरुष व्यक्ति के आदर्श हैं? शाब्दिक रूप में किसी को आदर्श मानना एक बात है। महत्त्व की बात है आदर्श में अपने आपको ढालना।
आस्था के दो आयाम : ८५
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