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है समय की । आज की जीवनशैली इतनी कसी हुई है कि चरित्र की चर्चा या अभ्यास के लिए समय ही नहीं रहता । माना कि आदमी व्यस्त है । यह व्यस्तता किसके सामने नहीं है? हर आदमी को चौबीस घण्टे का समय मिलता
। हर व्यक्ति का वर्ष तीन सौ साठ या पैंसठ दिनों का होता है । समय जितना है, उतना ही है । सवाल है उसके नियोजन का । मनुष्य समय की नियमितता को अपना आदर्श बना ले तो उसके बहुत-से अधूरे काम पूरे हो सकते हैं ।
अणुव्रत चरित्र निर्माण का आन्दोलन है। इसकी आकांक्षा एक सही मनुष्य के निर्माण की है। मनुष्य का निर्माण करने के लिए प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन करना होगा । चिन्तन और अचिन्तन का संतुलन करना होगा । बाकू और मौन का संतुलन करना होगा। आवश्यकताओं और आकांक्षाओं का संतुलन करना होगा। संतुलन का आधार है संयम । संयम की साधना अखण्ड रूप में हो सकती है और खण्ड-खण्ड करके भी हो सकती है। अखण्ड संयम की आराधना हर व्यक्ति के वश की बात नहीं है । पर खण्ड-खण्ड में संयम का पालन कोई भी कर सकता है
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अणुव्रत का उद्देश्य भी यही है कि छोटे-छोटे संकल्पों की सोपान पर आरोहण करता हुआ मनुष्य संयम के शिखर का स्पर्श करे। जब तक संयम या चरित्र के प्रति आस्था है, तब तक मनुष्य बुराई से बचने का प्रयास करता रहेगा । जिस दिन आस्था का धागा टूट जाएगा, जीवन का कोई क्रम नहीं रह पाएगा । उपासना को गौण और चरित्र को मुख्य मानने वाला यह आन्दोलन मानव जाति के लिए एक दिशादर्शन है । चरित्र निर्माण का लक्ष्य और उस दिशा में प्रस्थान - इसी क्रम से व्यक्ति अपनी चारित्रिक संपदा को सुरक्षित और वृद्धिंगत रख पाएगा ।
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जीवन का बुनियादी काम : ६६
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