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५४. मैत्री के साधक तत्त्व
राष्ट्र समस्याओं से संकुल है। यह कोई नई बात नहीं है। कोई भी राष्ट्र ऐसा नहीं है, जिसके सामने समस्या न हो। संभवतः किसी भी युग में समस्याओं से मुक्त कोई राष्ट्र रहा है, इतिहास में ऐसा उल्लेख नहीं मिलता। इसलिए राष्ट्र की समस्याएं आदमी को आश्चर्य में नहीं डालतीं। एक कुत्ते ने आदमी को काट लिया, यह किसी समाचार-पत्र का संवाद नहीं बनता। क्योंकि कुत्ते आदमी को काटते रहते हैं। पर कोई आदमी कुत्ते को काट खाए तो प्रत्येक समाचार-पत्र इस संवाद को सुर्खियों में छापेगा।
एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को कोसता है, एक प्रान्त दूसरे प्रान्त से असंतुष्ट है, एक राजनीतिक दल दूसरे दल की छीछालेदर करता है, ये बातें सबके समझ में आने जैसी ही हैं। किन्तु एक हाथ दूसरे हाथ को काटे, व्यक्ति अपने हाथों अपने पांव पर कुल्हाड़ी चलाए, स्वयं स्वयं के विकास में बाधा पहुंचाए, ये बातें चौंकाने वाली हैं। ऐसी बातें देश के किसी कोने से उठें, सुनने के लिए व्यक्ति चौकन्ने हो जाते हैं। . देश में जितने राजनीतिक दल हैं, उनमें अंतर्द्वन्द्व की स्थिति पैदा हो जाए तो उनसे देश का हित कैसे सधेगा? कोई विश्वास करे या नहीं, आज देश को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। फिर भी किसी को चिन्ता नहीं है। यह चिन्ता तब तक नहीं होगी, जब तक देश की पूरी जनता के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते स्थापित नहीं होंगे। अपने भाई-बन्धुओं, सगे-संबंधियों
और परिचितों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध होना बड़ी बात नहीं है। पर संसार में किसी को अपना शत्रु नहीं मानना, शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने वालों के प्रति भी मैत्री की धाराएं प्रवाहित करना मनुष्यता का ऊंचा आदर्श है। इस आदर्श तक पहुंचने के लिए मैत्री की अनुप्रेक्षा करनी होगी।
११८ : दीये से दीया जले
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