________________
६०. मनोवृत्ति के परिमार्जन की त्रिपदी
लोग कहते हैं- 'आज का युग साइन्स और टेक्नालॉजी का युग है ।' मुझे लगता है कि इस युग में दो बातें विशेष रूप से बढ़ रही हैं- एक्सीडेंट और अपराध । शायद ही कोई दिन ऐसा जाए, जिस दिन दुर्घटना नहीं होती हो । दुर्घटना कब और कैसे हो जाती है, किसी को पता ही नहीं चलता । मौत को आना होता है तो वह कहीं भी द्वार बना लेती है । वज्रनिर्मित परकोटे को पार कर वह अपने गंतव्य तक आसानी से पहुंच जाती है । तीर्थंकरों और मनीषियों की यह अनुभवपूत वाणी पग-पग पर अपनी सचाई प्रकट कर रही है । दीपावली का अवसर । फरीदाबाद में बारूद भरे पटाकों की एक दुकान में आग लगी। आसपास कई दुकानें थीं। उनमें पटाकों की दुकानें भी थीं। अन्य सामान की दुकानें भी थीं। आग की लपटें आगे बढ़ीं। कई दुकानें उनकी चपेट में आ गईं। एक दुकान में बड़े और बच्चे सब मिलाकर पांच व्यक्ति थे। दुकान को आग न पकड़ ले, इस आशंका से उन्होंने शटर नीचे गिरा दिया। दुकान बन्द हो गई । नीचे के हिस्से में थोड़ी-सी सुराक रह गई। दुकान से बाहर बारूद का धुआं फैला । वह सुराक के रास्ते से अन्दर घुस गया। आग से दुकान को बचाने के प्रयत्न में वहां गैस ही गैस हो गई। दुकान के भीतर बन्द पांचों व्यक्तियों ने दम तोड़ दिया। अंतिम समय में उनकी क्या परिस्थिति या मनःस्थिति रही, कोई साक्षी नहीं बचा।
I
इस प्रकार के हादसे घटित होते ही रहते हैं । कहीं ट्रेन दुर्घटना, कहीं प्लेन दुर्घटना । कहीं बस- कार की टक्कर, कहीं ट्रक मारुति की भिड़ंत । कहीं ट्रक से कुचल जाना, कहीं बस के धक्के से गिर जाना । कहीं स्कूटर का उलट जाना और कहीं बस का नदी या नाले में गिर पड़ना । कहीं
मनोवृत्ति के परिमार्जन की त्रिपदी : १३१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org