Book Title: Diye se Diya Jale
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 159
________________ है ज्ञान, तप और संयम की समन्विति। अकेला ज्ञान अहंकार पैदा करता है। अकेला तप कष्टों की अंधेरी खोह में ले जाकर छोड़ता है और अकेला संयम भावनाओं का दमन करता है। अहंकार, कष्ट और दमन के रास्ते अवरोहण के रास्ते हैं। आरोहण के लिए तीनों के समायोजन की अपेक्षा है। ज्ञान का काम है प्रकाश करना। प्रकाश होने पर पता लगता है कि कहां क्या है और कहां क्या नहीं है। कहां उपयोगी चीजें हैं और कहां कचरा भरा है। कहां व्यवस्थाएं ठीक हैं और कहां अव्यवस्था हो रही है। अंधेरे में किसी चीज का सम्यक् अवबोध नहीं हो पाता, इसलिए प्रकाश जरूरी है। तप का काम है शोधन। कचरे के ढेर का शोधन उसे जलाने से होता है। आत्मा कचरे के ढेर से मलिन है। उसकी शुद्धि के लिए तप की ज्योति को प्रज्वलित करना होगा। जब तक आन्तरिक और बाह्य तप की ज्योति नहीं जलेगी, आत्मा का शोधन नहीं होगा। __तपस्या से शुद्ध आत्मा पुनः मलिन न हो, इसलिए कचरा आने के रास्तों को बन्द करना होगा। यह काम संयम का है, चारित्र का है। संयम निरोधक है। जहां संयम खड़ा है, वहां किसी अवांछित या असामाजिक तत्त्व की घुसपैठ नहीं हो सकती। इस समग्र चर्चा का सार इन चार पंक्तियों में आ जाता है-- णाणं पयासगं, सोहगो तवो संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हपि समाजोगे, मोक्खो जिणसासणे भणिओ॥ विकास का अन्तिम शिखर : १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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