Book Title: Diye se Diya Jale
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 160
________________ ६५. अणुव्रत का रचनात्मक रूप किसी भी आन्दोलन के मुख्यतः दो रूप होते हैं-- प्रचारात्मक और रचनात्मक । अणुव्रत का कौन-सा रूप उजागर हो रहा है ? इस प्रश्न पर विचार करते समय उसका प्रचारात्मक रूप उभरकर सामने आता है। जाति, सम्प्रदाय, देश, भाषा, वेशभूषा आदि से अप्रतिबद्ध एक जागृत विचारधारा का नाम है अणुव्रत। इसकी प्रतिष्ठा एक असाम्प्रदायिक धर्म के रूप में हो चुकी है। मानवीय मूल्यों के प्रति आस्थाशील लोगों की आकांक्षा अणुव्रत से ही पूरी हो सकती है। इसलिए इसके प्रचार-प्रसार में कहीं किसी प्रकार का अवरोध नहीं है। प्रचार उपयोगी तत्त्व है, पर आचार का मूल्य सर्वोपरि है। अणुव्रत की विचारधारा व्यक्ति, परिवार और समाज के आचरण में उतरे, यह उसका रचनात्मक स्वरूप है। अणुव्रत का प्रचारात्मक कार्य ठीक गति से चल रहा है। वह चलने का है। उसके रचनात्मक रूप को बल मिले, यह अपेक्षा तीव्रता से अनुभव की जा रही है। इस वर्ष अणुव्रत समिति, लाडनूं ने यह बीड़ा उठाया है। उसका लक्ष्य है-- लाडनूं तहसील में अणुव्रत आचारसंहिता को लोकव्यापी बनाना। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए अणुव्रती कार्यकर्ताओं ने अभियान शुरू कर दिया है। वे लाडनूं के विभिन्न मोहल्लों और आसपास के गांवों में जाते हैं, लोगों से मिलते हैं, अणुव्रत के बारे में चर्चा करते हैं, लोगों की समस्याएं सुनते हैं और उनका हल निकालने का प्रयास करते हैं। इससे ग्रामीण लोगों में अणुव्रत के प्रति आकर्षण पैदा हुआ है। वे कहते हैं-- 'हमारे यहां वोट लेने वाले तो बहुत बार आते हैं, पर हमारी समस्याओं पर ध्यान देने वाले पहली बार आए हैं।' लाडनूं के निकट एक गांव है-- कासन । अणुव्रत समिति, लाडनूं ने उसे १४२ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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