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६२. आवश्यक है दो भाइयों का मिलन
महान् वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन के सामने एक प्रश्न आया--"विज्ञान ने मनुष्य को शारीरिक श्रम से मुक्त किया है, अनेक प्रकार की सुविधाएं दी हैं, फिर भी मनुष्य सुखी क्यों नहीं हुआ ? आइंस्टीन नें उत्तर दिया--' मनुष्य ने विज्ञान का उपयोग अक्लमन्दी से नहीं किया ।'
विज्ञान की प्रगति से सारा संसार चकाचौंध हो रहा है। प्रगति के नए-नए आयाम खुलते जा रहे हैं। हर नया आयाम मानव जाति के प्रवाह को नई दिशा दे रहा है । फिर भी मनुष्य अशान्त है, क्लान्त है, व्यथित है । क्योंकि सुख और शान्ति का एकमात्र साधन विज्ञान को मान लिया गया। जबकि विज्ञान का सम्बन्ध बौद्धिक विकास से है । बुद्धि पदार्थ को जानती है । उसके बारे में खोज करती है और उसके उपयोग की विधि बताती है । किन्तु मनुष्य जिन दुर्बलताओं से आक्रान्त है, उनसे मुक्त होने का उपाय नहीं सुझाती ।
अध्यात्म बहुत ऊंचा तत्त्व है । वह चेतना के तल तक पहुंचता है । आत्मा में छिपी हुई शक्तियों को जगाने का रास्ता बताता है । पर उसे रोटी की चिन्ता नहीं है । वह मनुष्य की दैनिक समस्याओं को समाहित नहीं करता । एक भूखा आदमी, समस्याओं से घिरा हुआ आदमी आत्मा के अज्ञात रहस्यों को खोलने का प्रयास कैसे करेगा ? संसार और मोक्ष, पुनर्जन्म और पूर्वजन्म, कर्म का बन्ध और उसके फल का भोग आदि गंभीर विषयों पर सोचने की. मानसिकता कैसे बनेगी?
विज्ञान और अध्यात्म जीवन के दो छोरों को छू रहे हैं। एक को केवल बौद्धिक या भौतिक विकास की चिन्ता है। दूसरा केवल आध्यात्मिक विकास की बात करता है । ये दोनों जब तक निरपेक्ष रहेंगे, मनुष्य सुखी नहीं हो
१३६ : दीये से दीया जले
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