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५५. दही का मटका और मेंढक
आज राष्ट्र का जैसा वातावरण है, बहुत लोग निराशा में श्वास ले रहे हैं। उन्हें प्रलय की संभावना बढ़ती हुई नजर आ रही हैं। उनकी दृष्टि में जमाने की स्थितियां और अधिक जटिल होंगी। इस सन्दर्भ में हमारा चिन्तन भिन्न है। स्थितियां जैसी भी हैं, उनको अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यह संसार है। इसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। ऐसा कुछ न हो तो संसार ही क्या? जो कुछ हो रहा है, उसे हम खुली आंखों से देखें। उस पर तटस्थ समीक्षा करें। अपने दायित्व को समझें और जागरूकता के साथ उसके निर्वाह का प्रयत्न करें।
रात्रि के समय संसार पर अन्धकार का साम्राज्य रहता है। प्रतिदिन सूरज उदित होता है। वह अन्धकार को छिन्न-भिन्न कर देता है। काल के अज्ञात बिन्दु से वह निरन्तर पुरुषार्थ कर रहा है। क्या उसने अन्धकार को पूरी तरह से लील लिया? क्या रात को अंधेरा नहीं होता है? दिन के साथ रात जुड़ी हुई है। सूरज कभी निराश नहीं होता। फिर मनुष्य के मन पर निराशा का कुहासा क्यों छाए? । - राम, कृष्ण, महावीर और गांधी के चित्र हमारे सामने हैं। इनमें से प्रत्येक महापुरुष ने अपने युग को उजालों से भरने का प्रयास किया। इसी तरह रावण, कंस, गोशालक और गोडसे के चित्र भी हमारे सामने हैं। उन्होंने उजालों को ढकने की चेष्टा करके ही विराम नहीं लिया, उन पर कीचड़ उछालने की कोशिशें भी की। हर युग में विरोधी व्यक्तियों का अस्तित्व रहा है। हमारी सोच का आधार विधायक हो। हम उन स्थितियों में क्यों उलझें, जो मनुष्य को दीन हीन और दुर्बल बनाने पर आमादा हैं? ___ मानवीय आचरण के सर्वोत्तम प्रतीक हैं करुणा और संवेदना। इनके
१२० : दीये से दीया जले
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