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४६. जीवन का बुनियादी काम
एक महत्त्वाकांक्षी युवक ने भावी जीवन की विस्तृत रूपरेखा बनाई। विकास की अनेक योजनाएं बनाकर वह अपने गुरु के पास गया। उसने
अपनी फाइल गुरु को सौंपते हुए कहा- 'गुरुदेव ! मैंने अपना भावी कार्यक्रम निर्धारित किया है। मैं आपसे मार्गदर्शन लेने आया हूं। इन योजनाओं की क्रियान्विति के लिए मुझे प्राथमिक रूप में क्या तैयारी करनी है?
गुरु ने शिष्य की योजनाओं पर एक विहंगम दृष्टि डाली। फाइल उसे लौटाकर वे बोले-'इसमें प्रथम योजना का कोई उल्लेख ही नहीं है। जब तक वह पूरी न हो जाए, और कुछ सोचना व्यर्थ है।' युवक अनमना हो गया। उसने पूछा---'गुरुदेव ! वह कौन-सी योजना है? गुरु ने कहा- 'वह योजना है स्वाभव निर्माण और चरित्र निर्माण की। जब तक स्वाभव और चरित्र का निर्माण नहीं होता, कोई व्यक्ति बड़ा आदमी नहीं बन सकता।' ___वर्तमान युग की सबसे बड़ी कठिनाई यही है कि मनुष्य सब कुछ बनना चाहता है, पर मनुष्य बनने की बात नहीं सोचता। वह नित नई योजनाओं का निर्माण करता है, पर चरित्र-निर्माण की योजना बनाने के लिए उसके पास समय नहीं होता। वह अपने आसपास रहने वाले सब लोगों में बदलाव देखना चाहता है, पर अपने स्वभाव को बदलने का संकल्प नहीं करता। वह सबको अपने अनुकूल बनाने का सपना संजोता है, पर स्वयं किसी के अनुकूल होने की मानसिकता नहीं बनाता। ऐसी स्थिति में उसके द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति कैसे होगी?
चरित्र निर्माण जीवन का बुनियादी काम है। इसके लिए चरित्रनिष्ठ व्यक्तियों का संपर्क आवश्यक है। चरित्र को उदार बनाने वाले कार्यक्रमों को समझना और उनमें अपनी सक्रिय भागीदारी रखना जरूरी है। पर समस्या
६८ : दीये से दीया जले
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