________________
४७. साफ आईना : साफ प्रतिबिम्ब
और
1
स्वस्थ जीवन का आधारभूत तत्त्व है 'सम्यक् दृष्टिकोण' । जीवन जीना सम्यक् दर्शन के साथ जीना - इन दोनों स्थितियों में बहुत अन्तर है । जीते तो सभी हैं, किन्तु सही दृष्टि, सही लक्ष्य, सही दिशा और सही गति के साथ जीना उपलब्धियों के साथ जीना है । दृष्टि सही नहीं होगी तो सही लक्ष्य का निर्धारण कैसे होगा ? लक्ष्य निर्धारित किए बिना सही दिशा में प्रस्थान की संभावना ही क्षीण हो जाएगी । लक्ष्य स्पष्ट हो गया, किन्तु दिशा उलटी हो गई तो लक्ष्य की दूरी कैसी सिमटेगी ? दिशा सही है, पर चरण गतिशील नहीं हैं तो 'घाणी के बैल' की तरह किसी एक ही केन्द्रबिन्दु की परिक्रमा होती रहेगी ।
मनुष्य बहुत समझदार प्राणी है । वह बैल को कोल्हू में जोतता है तो उसकी आंखों पर पट्टी बांध देता है । क्यों? उसे यह अहसास न हो कि वह निरन्तर एक ही स्थान पर चक्कर लगा रहा है । पशुविज्ञानियों का अभिमत है कि यदि बैल को उक्त तथ्य ज्ञात हो जाए तो वह उसी समय गश खाकर गिर पड़े। मनुष्य की भी यही स्थिति है । वह निरंतर गतिशील रहकर भी लक्ष्य की दूरी को एक इंच भी कम नहीं कर पाएगा, यदि उसका दृष्टिकोण सम्यक् नहीं है । इसलिए जरूरी है जीवन में सम्यक् दर्शन । मोक्ष का आरक्षण इसी तत्त्व के सहारे से संभव है ।
I
सम्यक् दर्शन क्या है? जीवन के प्रति सम्यक् दृष्टिकोण का विकास कैसे हो सकता है ? जीवन का लक्ष्य क्या है? निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के उपाय क्या हैं? लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में प्रस्थित होने पर भी गत्यवरोध क्यों होता है? क्या अवरोध को तोड़ा जा सकता है ? इत्यादि अनेक प्रश्न हैं, जो जिज्ञासु लोगों के मस्तिष्क में कौंधते रहते हैं ।
१०० : दीये से दीया जले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org