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५३. ध्वंस की राजनीति
ध्वंस और निर्माण-दोनों आवश्यक हैं। ध्वंस के बिना नए निर्माण की संभावनाएं कम हो जाती हैं। पर देखना यह है कि ध्वंस किसका और कहां हो ? निर्माण के साथ भी कुछ अपेक्षाएं जुड़ी हुई हैं। मनुष्य में दो प्रकार के भाव होते हैं-विधायक और निषेधात्मक। रचनात्मक दृष्टिकोण, पोजिटिव थिंकिंग या विधायक भाव निर्माण के प्रतीक हैं। विघटन की मनोवृत्ति, नेगेटिव एटिट्यूड या निषेधात्मक भाव ध्वंस के प्रतीक हैं। निर्माण और ध्वंस के लिए उत्पाद और विनाश शब्द भी प्रयुक्त होते हैं। धौव्य तत्त्व उत्पाद और विनाश का सहचरी है। वस्तु की सत्ता त्रैकालिक है। वह निर्माण के बाद ही नहीं, ध्वंस के बाद भी अपने अवशेष छोड़ती है।
भारतीय संस्कृति उदारवादी संस्कृति है। वह सबको आत्मसात् करना जानती है। उसने अपनी धरती पर अन्य संस्कृतियों को बद्धमूल होने का अवसर दिया है। भारतीय दार्शनिकों ने नास्तिक मत को भी एक स्वतंत्र दर्शन के रूप में मान्यता देकर प्रमाणित कर दिया कि उनका चिन्तन कितना व्यापक है और दृष्टिकोण कितना स्पष्ट है। भारतीय ऋषि-मुनियों ने तो चोर-डाकू जैसे असामाजिक तत्त्वों की वृत्तियों का परिष्कार कर उनको भी समाज के साथ जुड़कर जीने का अधिकार दिया है। अर्जुनमालाकार, दृढ़प्रहारी, रत्नाकर, रोहिणेय जैसे दुर्दान्त हत्यारे, डाकू और चोर सही दिशाबोध पा अपना रास्ता बदल सन्त-संन्यासी बन गए। इतिहास के ये प्रसंग भारतीय संस्कृति की उदारता को ही उजागर करने वाले हैं। ___ मनुष्य कुछ भी करता है, उसके दो रूप होते हैं-क्रियात्मक और प्रतिक्रियात्मक । मनुष्य अपने स्वतंत्र चिन्तन से क्रिया करे, यह स्वाभाविक स्थिति है। किन्तु जब वह प्रतिक्रिया में फंस जाता है, करणीय और अकरणीय
ध्वंस की राजनीति : ११५
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