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४५. शिक्षा और संस्कार
शिक्षा एक प्रकार की जन्मघुट्टी है। जन्म के साथ ही बच्चे का जन्मघुट्टा दी जाती है। विज्ञान के अनुसार जीन्स में व्यक्तित्व के बीज निहित हैं। जनप्रवाद जन्मघुट्टी में व्यक्तित्व की संभावनाएं देखता है। जन्मघुट्टी देने वाले व्यक्ति के गुण-दोषों का संक्रमण बच्चे में होता है, यह भी एक मान्यता रही है। जन्मघुट्टी क्या है ? कैसे दी जाती है ? कौन देता है ? कैसे देनी चाहिए? आदि मुद्दों को लेकर कभी कोई आयोग नहीं बैठा। जन्म के बाद बच्चे को मां का दूध मिलता है। उसके बारे में आज तक कभी कोई वैज्ञानिक विश्लेषण हुआ है क्या ? मां के दूध में कौन-से तत्त्व होते हैं? उसमें और क्या मिलाना चाहिए ? आदि प्रश्नों पर कभी कोई व्यापक बहस हुई हो, सुनने या पढ़ने में नहीं आया। मां का दूध बच्चे के लिए प्राकृतिक खुराक मानी गई है। उससे बच्चे का पोषण होता है। जो माताएं आधुनिक कहलाने के व्यामोह में बच्चे को अपने दूध से वंचित रखती हैं, वे उसके हितों का विघटन करती हैं, ऐसा भी कहा जाता है।
शिक्षा की जन्मघुट्टी या मां के दूध से तुलना की जाए तो उसे तर्क-वितर्कों और वितण्डावादों में क्यों उलझाया जाता है? भारत की आजादी के बाद शिक्षा के विषय में कितने आयोग बैठे, कितनी रिपोर्ट बनीं, प्रश्न आज भी ज्यों का त्यों उलझा हुआ है। कहीं आयोग काम नहीं करते। कहीं रिपोर्ट नहीं बनती। कहीं रिपोर्ट पढ़ी नहीं जाती। कहीं उसकी क्रियान्विति नहीं होती। अ से लेकर ह तक कहीं कुछ भी नहीं होता। तब फिर एक आयोग बैठता है। अब तक कहीं कुछ क्यों नहीं हुआ, यह समीक्षा करने के लिए बैठने वाला आयोग भी जब
शिक्षा और संस्कार : ६५
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