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४२. आज की खाद से कल का निर्माण
समय के पांव कभी रुकते नहीं हैं। मनुष्य कुछ करेगा तो समय बीतेगा और कुछ नहीं करेगा तो भी समय बीतेगा। समय को थामकर रखने की शक्ति या कला किसी के पास नहीं है। अतीत और भविष्य के बीच का क्षण कार्यकारी होता है। अतीत की स्मृति हो सकती है, पर उसे वर्तमान में नहीं लाया जा सकता। भविष्य की कल्पना की जा सकती है, पर कल्पना को जीया नहीं जा सका। जीने के लिए आज का दिन होता है। आज की खाद से ही कल का निर्माण संभव है। इसलिए आज को सही ढंग से जीने की अपेक्षा है। ___मनुष्य में दो प्रकार के भाव होते हैं-विधायक भाव और निषेधात्मक भाव। विधायक भावों में जीने वाला व्यक्ति यत्र-तत्र अच्छाई देखता है। युधिष्ठिर ने पूरे शहर की परिक्रमा की, उसे एक भी व्यक्ति बुरा नहीं मिला। ऐसे व्यक्ति किसी दूसरे पर दोषारोपण नहीं करते । दो व्यक्तियों से संबंधित घटना में यदि कोई दुर्बल बिन्दु होता है तो उसे वे अपने साथ जोड़ते हैं। वे न तो अत्यधिक आशावादी होते हैं और न निराशा की गिरफ्त में आते हैं। वे चिन्तनपूर्वक काम करते हैं। सफल होने पर वे उसी पथ से आगे बढ़ते हैं और असफलता की स्थिति में रास्ता बदलकर चलते हैं। किन्तु उसकी जिम्मेवारी किसी भी निमित्त पर नहीं डालते।
निषेधात्मक भावों की प्रेरणा से मनुष्य का दृष्टिकोण सम्यक् नहीं रह पाता। वह हमेशा ही अतीत को वर्तमान से अच्छा मानता है। वर्तमान कैसा ही क्यों न हो, वह उसमें दोष ही देखता है। किसी भी क्षेत्र में असफल होने पर वह सारा दोष व्यवस्था के सिर पर मढ़ देता है। आत्मनेपद की भाषा में सोचना उसका स्वभाव नहीं होता। परिवर्तन की अपेक्षा भी वह दूसरों से ही
आज की खाद से कल का निर्माण : ८६
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