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आदर्श के गुणगान ही पर्याप्त नहीं है। आदर्श को सांचा मान अपनी वृत्तियों को ठोंक-पीट कर उसके अनुरूप बनाने वाला ही एक दिन आदर्श बन सकता है। इसके लिए जीवन की जटिलताओं और कष्टों से परिचित होना जरूरी है। कम-से-कम व्यक्ति को यह ज्ञात हो कि जीवन कैसे जीया जाता है? इस सचाई का सामना करने से डरे हुए लोग कभी महावीर, बुद्ध या गांधी नहीं बन सकते। ___ चरित्र मनुष्यता का सबसे बड़ा मानदण्ड है। चरित्रबल क्षीण होने से व्यक्ति कितना दरिद्र हो जाता है, इसका अनुभव वही कर सकता है। चरित्र के साथ क्षीण होती शरीर और मन की शक्ति व्यक्ति को पूरी तरह से अक्षम बना देती है। उसका आत्मविश्वास टूट जाता है। वह सोचता है कि अनैतिकता के बिना जीना संभव ही नहीं है। यह चिन्तन सन्देह की ऐसी बदली है, जो यथार्थ के सूरज को ढंक लेती है। इससे व्यक्ति के मन में जो अंधेरा उतरता है, उसे दूर धकेलना बहुत कठिन हो जाता है।
आस्था के पहले आयाम में जीने वाले लोगों से किसी प्रकार की आशा व्यर्थ है। किन्तु जो लोग दूसरे आयाम में जीते हैं, उनका दायित्व है कि वे मानवीय मूल्यों, सभ्यता और संस्कृति को सुरक्षित रखने का संकल्प अपने बलबूते पर करें। ऐसे लोग कभी परिस्थितियों की अनुकूलता के लिए प्रतीक्षा नहीं करते। समाज या राष्ट्र के सुन्दर भविष्य का निर्माण आस्था के दूसरे आयाम पर ही निर्भर है।
८६ : दीये से दीया जले
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