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सम्प्रदाय और कांग्रेस
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उदारताके साथ महासभामें मिल जाना अनिवार्य होगा । महासभा राजकीय संस्था होनेसे धार्मिक नहीं, या सबका शंभु-मेला होनेके कारण अपनी नहीं, दूसरोंकी है-यह भावना, यह वृत्ति अब दूर होने लग गई है। लोग समझते जाते हैं कि ऐसी भावना केवल भ्रमवश थी।
पर्युषण पर्वके दिनोंमें हम सब मिलें और अपने भ्रम दूर करें, तभी यह ज्ञान और धर्मका पर्व मनाया समझा जायगा । आप सब निर्भय होकर अपनी स्वतंत्र दृष्टि से विचार करने लगें, यही मेरी अभिलाषा है । और उस समय चाहे जिस मतमें रहें, चाहे जिस मार्गसे चलें, मुझे विश्वास है, आपको राष्ट्रीय महासभामें ही हरेक संप्रदायकी जीवन-रक्षा मालूम पड़ेगी; उसके बाहर कदापि नहीं ।
पर्युषण-व्याख्यानमाला
बम्बई, १९३८
-अनुवादक भंवरमल सिंघी
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