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विकासका मुख्य साधन
जब ऐसा अनुभव प्रकट होता है तब अपने आपके प्रति और दूसरोंके प्रति जीवन-दृष्टि बदल जाती है । फिर तो ऐसा भाव पैदा होता है कि सर्वत्र त्रिअंशी जीवन-शक्ति ( सच्चिदानन्द ) या तो अखंड या एक है या सर्वत्र समान है। किसीको संस्कारानुसार अभेदानुभव हो या किसीको साम्यानुभव, पर परिणाममें कुछ भी फर्क नहीं होता । अभेद-दृष्टि धारण करनेवाला दूसरोंके प्रति वही जवाबदेही धारण करेगा जो अपने प्रति । वास्तवमें उसकी जवाबदेही या कर्तव्य-दृष्टि अपने परायेके भेदसे भिन्न नहीं होती, इसी तरह साम्य दृष्टि धारण करनेवाला भी अपने परायेके भेदसे कर्तव्य-दृष्टि या जवाबदेहीमें तारतम्य नहीं कर सकता।
मोहकी कोटिमें आनेवाले भावोंसे प्रेरित उत्तरदायित्व या कर्तव्य-दृष्टि एकसी अखण्ड या निरावरण नहीं होती जब कि जीवन शक्तिके यथार्थ अनुभवसे प्रेरित उत्तरदायित्व या कर्तव्य-दृष्टि सदा एक-सी और निरावरण होती है क्यों कि वह भाव न तो राजस अंशसे आता है और न तामस अंशसे अभिभूत हो सकता है । वह भाव साहजिक है, सात्विक है ।
मानवजातिको सबसे बड़ी और कीमती जो कुदरती देन मिली है वह है उस साहजिक भावको धारण करने या पैदा करनेका सामर्थ्य या योग्यता जो विकासका-असाधारण विकासका मुख्य साधन है । मानवजातिके इतिहासमें बुद्ध महावीर आदि अनेक सन्त महन्त हो गये हैं, जिन्होंने हजारों विघ्न-वाधाओंके होते हुए भी मानवताके उद्धारकी जवावदेहीसे कभी मुंह न मोड़ा। अपने शिष्यके प्रलोभनपर सॉक्रेटीस मृत्युमुखमें जानेसे बच सकता था पर उसने शारीरिक जीवनकी अपेक्षा आध्यात्मिक सत्यके जीवनको पसन्द किया और मृत्यु उसे डरा न सकी। जीसिसने अपना नया प्रेम-सन्देश देनेकी जवाबदेहीको अदा करनेमें शूलीको सिहासन माना। इस तरहके पुराने उदाहरणोंकी सचाईमें सन्देहको दूर करनेके लिए ही मानो गाँधीजीने अभी अभी जो चमत्कार दिखाया है वह सर्वविदित है । उनको हिन्दुत्व-आर्यत्वके नामपर प्रतिष्ठाप्राप्त ब्राह्मणों और श्रमणोंकी सैकड़ों कुरूढ़ि पिशाचियाँ चलित -न कर सकीं। न तो हिंदू-मुसलमानोंकी दण्डादण्डी या शस्त्राशस्त्रीने उन्हें कर्तव्यचलित किया और न उन्हें मृत्यु ही डरा सकी। वे ऐसे ही मनुष्य थे जैसे हम ।
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