Book Title: Dharma aur Samaj
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania
Publisher: Hemchandra Modi Pustakmala Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ विचार-कणिका १६७. सामूहिक भी है या नही, और नहीं है तो कौन-सी असंगतियाँ या अनुपपत्तियाँ उपस्थित होती हैं और ऐसा हो तो उस दृष्टिसे ही समग्र मानव-जीवनके व्यवहारकी रचना करना चाहिए, इस बातपर कोई गहरा विचार करनेके लिए तैयार नहीं। सामूहिक कर्मफलके नियमकी दृष्टिसे शून्य सिर्फ वैयक्तिकः कर्मफल-नियमके कारण मानव-जीवनके इतिहासमें आज तक क्या क्या बाधाएँ आईं और उनका निवारण किस दृष्टिसे कर्मफलका नियम माननेपर हो सकता है, मैं नहीं जानता कि इस विषयमें किसीने इतना गहरा विचार किया हो। किसी एक भी प्राणीके दुःखी होनेपर मैं सुखी नहीं हो सकता, जब तक विश्व दुःखमुक्त न हो तब तक अरसिक मोक्षसे क्या लाभ ? यह महायान-भावना बौद्धपरंपरामें उदित हुई थी। इसी प्रकार प्रत्येक संप्रदाय सर्व जगतके क्षेम-कल्याणकी प्रार्थना करता है और समस्त विश्वके साथ मैत्री बढ़ानेकी ब्रह्मवार्ता भी करता है किन्तु वह महायानी भावना या ब्रह्मवार्ता अंतमें वैयक्तिक कर्मफलवादके दृढ संस्कारोंसे टकराकर जीवनमें अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं हुई। पूज्य केदारनाथजी और मशरूवाला दोनों कर्मफलके नियमको सामूहिक दृष्टिसे सोचते हैं। मेरे जन्मगत और शास्त्रीय संस्कार वैयक्तिक कर्मफल-नियमके हैं, इससे मैं भी उसी प्रकार विचार करता था; किन्तु जैसे जैसे उसपर गभीरतासे विचार करता हूँ वैसे वैसे प्रतीत होता है कि कर्मफलके नियमके विषयमें सामूहिक जीवनकी दृष्टिसे ही सोचना जरूरी है और सामूहिक जीवनकी जवाब-देहियोंको खयालमें रख कर जीवनके प्रत्येक व्यवहारकी घटना और आचरण होना चाहिए । जब वैयक्तिक दृष्टिका प्राधान्य होता है तब तत्कालीन चिंतक उसी दृष्टिसे अमुक नियमोंकी रचना करते हैं, इससे उन नियमोंमें अर्थ-विस्तार संभावित ही नहीं, ऐसा मानना देश-. कालकी मर्यादामें सर्वथा बद्ध हो जाने जैसा है । जब सामूहिक जीवनकी दृष्टिसे कर्मफलके नियमकी विचारणा और घटना होती है तब भी वैयक्तिक दृष्टि लुप्त नहीं हो जाती। उल्टा सामूहिक जीवनमें वैयक्तिक जीवन पूर्णरूपसे समाविष्ट हो जानेसे वैयक्तिक दृष्टि सामूहिक दृष्टि तक विस्तृत और अधिक शुद्ध होती है । कर्मफलके नियमकी सच्ची आत्मा तो यही है कि कोई भी कर्म निष्फल नहीं होता और कोई भी परिणाम बिना कारण नहीं होता । जैसा परिणाम वैसा ही उसका कारण होना चाहिए । अच्छा परिणाम चाहनेवाला यदि अच्छा कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227